गौरवगाथा: पढ़ाई में मन नहीं लगा, तो बन गया गरुड़ कमांडो, अब मिलेगा शौर्य चक्र

आज हम आपको एक वीर जवान की गौरवगाथा बता रहे हैं। कभी उसका पढ़ाई में मन नहीं लगता था। इसलिए वो गरुड़ कमांडो बन गया और उसे शौर्य चक्र मिलेगा।

New Delhi, Feb 01: कुछ जवानों का साहस और शौर्य देश के लिए गौरवगाथा बन जाता है। आज हम आपको एक जवान के बारे में बताने जा रहे हैं। ये वो जवान है जिसे शौर्य चक्र से सम्मानित किया जाना है। गरुण कमांडो देवेंद्र सिंह के बारे में कहा जाता है कि दुश्मनों के लिए वो काल से कम नहीं है। देश के सबसे साहसी कमांडो में उनका नाम शुमार किया जाता है।

बांदीपोरा में बने आतंकियों के काल
नवंबर 2017 में देवेंद्र सिंह ने जम्मू-कश्मीर के बांदीपोरा जिले में आतंकियों से हुई मुठभेड़ में अदम्य साहस दिखाया था। इसके लिए उन्हें शौर्य चक्र से सम्मानित किया जाना है। वायुसेना के इस गरुड़ कमांडो के बारे में कुछ ऐसी बातें है, जो उसके साहस की कहानी को बयां करती हैं। गरुड़ कमांडो देवेंद्रसिंह के साहस की ये कहानी आपको देशभक्ति के जज्बे से भर देगी।

पहले अपने साथी को बचाया
कश्मीर के बांदीपोरा में आतंकियों से मुठभेड़ चल रही थी। इस दौरान देवेंद्र के साथी को गोली लग गई। वक्त बहुत कम ता, इसलिए देवेंद्र ने पहली अपने साथी को सही जगह पर ले जाने का फैसला किया। गोलियों से बचते बचाते वो खुद को और अपने साथी को एक सुरक्षित जगह पर ले आए। इसके बाद देवेंद्र ने हुंकार भरी और आतंकियों के काल बन गए।

आतंकियों पर कहर बनकर टूटे
उन्होंने वापस मोर्चा संभालते हुए आतंकियों पर जवाबी हमला किया। इस मुठभेड़ में 6 आतंकियों को मौत की नींद सुला दिया गया। इसके अलावा देवेंद्र उस टीम का भी हिस्सा बने थे जिन्होंने 150 भारतीयों को जुबा से एयरलिफ्ट किया था। जुबा से 150 भारतीयों का रेस्क्यू किया गया था। इसके बाद हवाई जहाज को युगांडा एयरपोर्ट पर उतारा गया।

350 भारतीयों को करवाया एयरलिफ्ट
युगांडा एयरपोर्ट से भी करीह 200 भारतीयों को लिया गया। रात 10 बजे के करीब विमान को रवाना किया गया। देवेंद्र एक वीर और साहसी गरुड़ कमांडो हैं। गरूड़ कमांडो बिल्कुल उसी तरह होते हैं , जैसे आर्मी के पास पैरा कमाडोज होते हैं और नेवी के पास मारकोज कमांडो होते हैं। एयरफोर्स के पास गरुड़ कमांडोज की टीम है। ये डायरेक्ट एक्शन ले सकते हैं।

ऐसे होते हैं गरूड़ कमांडो
गरुड़ कमांडोज हवाई हमला कर सकते हैं। सर्च और रेस्क्यू ऑपरेशन भी कर सकते हैं। ये युद्ध और शांति दोनों ही वक्त में काम आते है। ये कमांडो अपने पूरे कार्यकाल में गरुड़ कमांडोज ही रहते हैं। गरुड़ कमांडो देवेंद्रसिंह की इच्छा बचपन से ही सेना में जाने की थी। 12वीं कक्षा की पढ़ाई के दौरान उनका मन पढ़ाई में नहीं लगता था। उन्होंने मार्शल आर्ट में ब्लैक बेल्ट हासिल कर लिया था।

वायुसेना में ऐसे आए
साल 2006 में उनका वायुसेना में चयन हो गया। फिलहाल देवेंद्र सिंह दिल्ली में सेवारत हैं। देवेंद्र सिंह राजस्थान के पाली जिले के रहने वाले हैं।  पिलोवनी गांव में देवेंद्रसिंह के पिता हनुमानसिंह शिक्षक हैं। इसके अलावा मां कमला देवी गृहिणी हैं। अब देवेंद्र सिंह को वीरता का पुरुस्कार मिलेगा, जिससे वो और उनके परिवार समेत गांव वाले भी गौरवान्वित हैं।