‘मुझे कभी-कभी मंडेला में अपने नेहरू की छवि नजर आती है’

दक्षिण अफ्रीका और जिंबाब्वे को साथ-साथ ही आजादी मिली थी। दोनों ही रंगभेद से जूझ रहे थे। मंडेला और मुगाबे दोनों ने ही अपने अपने देश में जम कर लड़ाई लड़ी।

New Delhi, Jul 18 : आज नेल्सन मंडेला की जन्मशती है। वह होते तो सौ साल के होते। हमने महात्मा गांधी को नहीं देखा। मार्टिन लूथर किंग को भी नहीं देखा। लेकिन हमने मंडेला को तो देखा। इतिहास की महानतम घटनाओं में से एक मंडेला को जेल से छूटते हुए देखा। दक्षिण अफ्रीका को रंगभेद से बाहर आते देखा। उसे सही मायनों में आजाद होते देखा।

मंडेला तो मंडेला थे। उन जैसा कोई हुआ ही नहीं। एक शख्स 27 साल जेल में रहता है। या उसे कैद रखा जाता है। गोरों की जेल में अपने बेहतरीन साल गुजार लेने के बावजूद उनके मन में कहीं कोई बदले की भावना नहीं होती। वह उसके बाद भी शांति की ही बात करते हैं। माफ कर देने की बात करते हैं। एक बेहतर समाज बनाने का सपना देखते हैं। और वह सपना देखते ही नहीं बनाते भी हैं। तमाम तरह के भेदभाव से परे वह एक समाज गढ़ना चाहते हैं। वह गोरों की दादागीरी के खिलाफ लड़ते हैं। उसे खत्म करना चाहते हैं। लेकिन उसकी जगह कालों की दादागीरी थोपना नहीं चाहते।

यही एक फर्क है जो मंडेला को मंडेला और मुगाबे को मुगाबे बनाता है। दक्षिण अफ्रीका और जिंबाब्वे को साथ-साथ ही आजादी मिली थी। दोनों ही रंगभेद से जूझ रहे थे। मंडेला और मुगाबे दोनों ने ही अपने अपने देश में जम कर लड़ाई लड़ी। रंगभेद के खिलाफ जंग में ये दो जबर्दस्त नायक थे। लेकिन जब सत्ता मिली तो मंडेला ने क्या किया और मुगाबे ने क्या किया? मंडेला तमाम कड़वाहट भुलाकर अपने देश को जोड़ने और बनाने में लगे थे। और मुगाबे बदले की भावना से राज चला रहे थे। मंडेला ने अपने देश को लोकतंत्र दिया और मुगाबे ने तानाशाही। मेरे एक दोस्त उसे कालों की तानाशाही कहते थे और खुश होते थे। माफ करो और सबको साथ लेकर चलो की सोच ने मंडेला के देश को बना दिया। और बदला लो और फौलादी हाथों से राज करो ने मुगाबे के देश को बिगाड़ दिया।

यह कुछ-कुछ हिंदुस्तान और पाकिस्तान जैसा ही हुआ। हमारी खुशकिस्मती थी कि आजादी के दौर के हमारे तमाम नेता सबको साथ लेकर एक लोक का तंत्र बनाना चाहते थे। पाकिस्तान में सबको साथ लेकर चलने की और लोकतंत्र कायम करने की कोई ठोस कोशिश ही नहीं हुई। गांधी नेहरू का भारत आज कहां चला गया है? और जिन्ना का पाकिस्तान कहां खड़ा है? उस पर कोई बात करने की जरूरत ही नहीं है।
मुझे कभी-कभी मंडेला में अपने नेहरू की छवि नजर आती है। नेहरू की ही तरह उन्होंने भी अपने देश को बनाने की कोशिश की। एक ऐसा देश जो समता, शांति, लोकतंत्र और विविधता की बात करता है। एक मामले में मंडेला मुझे नेहरू से आगे नजर आते हैं। नेहरू अपने परिवार का मोह नहीं छोड़ पाए थे। मंडेला ने वह भी छोड़ दिया था। मंडेला धीरे-धीरे सब छोड़ते चलते हैं। आखिर में सत्ता भी छोड़ देते हैं। उन्हें महात्मा कहने का मन करता है। गांधीजी के बाद शायद उन्हें ही महात्मा कहा जा सकता है। सादर नमन महात्मा मंडेला।

(वरिष्ठ पत्रकार नेल्सन मंडेला के फेसबुक वॉल से साभार, ये लेखक के निजी विचार हैं)