चाय बेचकर दिनभर के चंद सौ – दौ सौ रुपए कमाने वाले रमेश कुमार के इस काम ने सभी को हैरान कर दिया । स्थानीय व्यापारियों ने बाद में उन्हें उनके इस काम के लिए सम्मानित भी किया ।
New Delhi, Oct 17 : चाय बेचकर दिनभर में ज्यादा से ज्यादा 250 रुपए कमाने वाले किसी शख्स को 50 हजार रुपए की गड्डी पड़ी मिल जाए तो, आप बताइए वो क्या करेगा । बहरहाल, जो रमेश कुमार नाम के चायवाले ने किया शायद वो ही सबको करना चाहिए । रमेश कुमार उर्फ मुन्ना नाम के इस शख्स की ईमानदारी आपको भी उनका कायल बना देगी । 500 रु के नोटों की गड्डी भी उनके ईमान को डिगा नहीं पाई । उन्होने ना सिर्फ उस शख्स की मदद की जिसकी रकम उन्हें मिली थी बल्कि उसे वहां से चाय पिलाकर भी विदा किया ।
ये है पूरा मामला
मामला सोमवार दोपहर बाद का है जब बर्रा के व्यापारी अभिषेक नयागंज में लाल फाटक स्थित बाजार खरीदारी करने गए थे । अभिषेक लाल फाटक के बाहर ही अपनी स्कूटी खड़ी कर थैला लेकर अंदर जाने लगा तो इसी बीच उनकी 500 रुपये के नोटों की गड्डी नीचे गिर गई । वहीं बगल में रमेश कुमार अपनी चाय की दुकान पर काम कर रहे थे । 50 हजार रुपये की ये गड्डी रमेश की नजर में आ गई, उन्ळोने उसे अपने पास रख लिया ।
व्यापारी को लौटाई नोटों की गड्डी
रमेश कुमार अपने चाय के ठेले पर ही काम करते रहे, कुछ ही देर में अभिषषेक नाम का वही व्यापारी पैसे ढूंढते हुए पहुंचा । वो वहां कुछ ढूढ़ते नजर आए । रमेश कुमार ने पूछा तो उन्होने बताया कि वो खरीदारी करने आया था। और उसकी 50 हजार रुपये की गड्डी गिर गई है । रमेश ने उनसे पूछा कि कितने वाले नोट थे तो अभिषेक ने बता दिया कि 500 रुपये के। इतना सुनते ही पर रमेश ने जेब से नोटों की गड्डी निकालकर अभिषेक में रख दी ।
ईमानदारी ने किया हैरान
आज के जमाने में जब पैसों के लिए इनसान क्या कुछ नहीं कर जाता, एक चाय वाले की ऐसी ईमानदारी देख अभिषेक को विश्वास ही नहीं हुआ । उन्होने, चायवाले रमेश कुमार को एक हजार रुपए ईनाम के तौर पर दिए। अगले दिन जब स्थानीय व्यापारियों को इस बारे में पता चला तो सभी ने रमेश कुमार को उनकी ईमानदारी के लिए समानित किया ।
बहुत मेहनती हैं रमेश
चाय के छोटे से ठेले पर दिन रात मेहनत कर रमेश बामुश्किल 200 से 250 रुपए कमा पाते हैं । उसी में 5 बच्चों की परवरिश भी करनी होती है । 3 बेटी और दो बेटों के पिता रमेश कुमार किसी तरह अपना परिवार चलाते हैं लेकिन उन्हें किसी चीज का मलाल नहीं है । बच्चों को पढ़ा लिखाकर कुछ बनाना ही उनका मकसद है । रमेश कुमार ईमानदारी की मिसाल बन गए हैं ।