लोहड़ी की लख-लख बधाईयों के साथ जानिए क्‍यों गाते हैं इस दिन दूल्‍हा भट्टी के गाने, आग जलाने के पीछे का कारण

लोहड़ी की ढेरों बधाईयों के साथ जानिए क्‍या है इस पर्व की मान्‍यता । क्‍यों मनाया जाता है ये त्‍यौहार, क्‍यों इस दिन आग जलाकर उसके चारों तरफ घूम- घूमकर गाने गाए जाते हैं ।

New Delhi, Jan 12 : पूरे उत्‍तर भारत में लोहड़ी का पर्व हर्षोल्‍लास के साथ मनाया जाता है । ये त्‍यौहार वैसे तो पंजाब प्रांत का लोक पर्व है जिसे सिख बड़े ही उत्‍साह के साथ मनाते हैं, लेकिन क्‍योंकि भारत में सभी त्‍यौहारों को धूमधाम से मनाने की परंपरा रही है इसलिए इसे देश के कई हिस्‍सों में मनाया जाता है । इस दिन घरों के बाहर लोग लोहड़ी जलाते हैं, लकडि़यों के जलते हुए ढेर के चारों ओर लोग घूमते हैं, गाने गाते हैं, रेवड़ी, मंगफली , फुल्‍ले आग में डालते हैं और साथ मिलकर खाते हैं ।

लोहड़ी की क्‍या है मान्‍यता
पारंपरिक तौर पर लोहड़ी का पर्व फसलों की बुवाई और कटाई से जुड़ा एक त्यौहार है । अलाव जलाकर उसके चारों ओर लोग घूमते हैं, इसके  चारों ओर लोग डांस करते हैं । विवाहित स्त्रियों के मायके से उनके लिए फल, मिठाईयां, वस्‍त्र आदि आते हैं । जिनके घर में शिशु का जन्‍म हुआ होता है वो मोहल्‍ले और छोटे बच्‍चों में रेवडि़या बांटते हैं । इस दिन दुल्‍हा भट्टी के शौर्य और वीरता की गाथाएं गाई जाती हैं ।

लोहड़ी के दिन क्‍यों जलाते हैं आग ?
कजस प्रकार होलिका दहन के पीछे प्रह्लाद की कहानी है उसी प्रकार लोहड़ी के अलाव के पीछे एक प्राचीन कहानी है । ये आग महाराज दक्ष की पुत्री सती की याद में जतालाई जाती है । जिन्‍होने अपने पति भगवान शिव को पिता के घर यज्ञ में ना बुलाए जाने पर उनका अपमान होता देख अग्नि में कूदकर खुद को भस्‍म कर लिया था । सती की मृत्‍यु का समाचार सुन शिव ने भी रौद्र वीरभद्र का अवतार लिया और यज्ञ को ही भस्‍म कर दिया ।

पौष की सर्द रात को विदाई
हालांकि लोहड़ी की आग जलाने के पीछे ये भी मान्‍यता हे क्‍योंकि ये पौष महीने की आखिरी रात होती है और सबसे सर्द मानी जाती है । इस रात को सभी लोग आराम से काट सकें इसके लिए ठंड से बचने के लिए एक बड़े से अलाव की व्‍यवस्‍था की जाती है । सर्द रात को विदा कर अगले दिन माघ की सुबह का गर्मजोशी के साथ स्‍वागत किया जाता है ।

कौन है दुल्‍हा भट्टी ?
कहानी के अनुसार मुगल काल में अकबर के शासन के दौरान दुल्ला भट्टी नाम का एक जवान पंजाब में रहा करता था । भट्टी ने अमीर सौदागरों को बेची जाने वाली लड़कियों की रक्षा की थी । लड़कियों की शादी हिंदू लड़कों से करवाई और उन्‍हें बचा लिया । दुल्‍हा भट्टी को उसके काम के बाद खूब प्रशंसा मिली और उसे नायक की उपाधि से सम्‍म‍ानित किया गया । दुल्‍हा भट्टी की याद में लोहड़ी की आग के चारों ओर ये गाना गाया जाता है – सुंदर मुंदरिये ! हो तेरा कौन बेचारा, हो दुल्ला भट्टी वाला, हो दुल्ले घी व्याही, हो सेर शक्कर आई,  हो कुड़ी दे बाझे पाई, हो कुड़ी दा लाल पटारा, हो ………

लोहड़ी का क्‍या अर्थ है ?
लोहड़ी को पहले तिलोड़ी के नाम से जाना जाता था, ये शब्‍द तिल तथा रोड़ी यानी गुड़ की रोड़ी शब्दों के मेल से बना है । धीरे-धीरे ये शब्‍द बदलकर लोहड़ी के रूप में जाना जाने लगा । लोहड़ी के अगले दिन पड़ने वाले त्‍यौहार मकर संक्रांति के दिन भी तिल-गुड़ खाने और बांटने का महत्व है । वहीं पंजाब के कई इलाकों मे लोहड़ी को लोही या लोई भी कहा जाता है । इस दिन सभी एक दूसरे को लोहड़ी की बधाईयां देते हैं ।