आडवाणी के चुनाव ना लड़ने के फैसले से विरोधी हो गये थे पस्त, एक-एक ईंट जोड़ ऐसे बनाया बीजेपी को नंबर वन

आडवाणी जी की चुनाव ना लड़ने के ऐलान ने उन दिनों रंग लाया, वो खुद चुनाव नहीं लड़े, लेकिन पार्टी के लिये खूब प्रचार किया।

New Delhi, Aug 30 : बीजेपी आज देश ही नहीं बल्कि दुनिया की सबसे बड़ी राजनीतिक पार्टी है, अप्रैल 2018 में पार्टी के मौजूदा राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह ने दावा किया था कि 11 करोड़ से ज्यादा कार्यकर्ता भारतीय जनता पार्टी के सदस्य हैं। हालांकि पार्टी को यहां तक पहुंचाने में कईयों ने अपनी जवानी खपाई है, बीजेपी के कद्दावर नेता लाल कृष्ण आडवाणी ने इसकी मजबूत नींव रखी औरक दीवारों के लिये ईंटें जोड़ी, कुछ साल पहले तक बीजेपी में आडवाणी जी का ओहदा सबसे ऊपर माना जाता था। आइये आपको उनसे जुड़ी कुछ दिलचस्र बातें बताते हैं।

मंडल के सामने कमंडल
बात साल 1989 की है, तब बीजेपी और वाम दलों के समर्थन से केन्द्र में वीपी सिंह की सरकार बनी थी, जब वीपी सिंह ने पिछड़ों के लिये मंडल आयोग की सिफारिशों को लागू करने का ऐलान किया था, तो बीजेपी की चिंता बढ गई, पार्टी के सामने जनाधार बचाने का संकट आ गया, जिसके बाद आडवाणी जी ने मंडल के जबाव में कमंडल पेश किया था, अपनी पार्टी के विस्तार के लिये उन्होने राम मंदिर का मसला उठाया, वो गुजरात के सोमनाथ मंदिर से अयोध्या के लिये रथ लेकर निकले थे। आज के पीएम नरेन्द्र मोदी तब आडवाणी जी के रथ के सारथि थे।

गिरफ्तारी के बाद गिरवा दी सरकार
राम मंदिर के मसले पर देश भर में भारतीय जनता पार्टी के पक्ष में माहौल बनने लगा था, तब आडवाणी रथ यात्रा लेकर बिहार के समस्तीपुर पहुंचे थे, जहां लालू सरकार ने उन्हें गिरफ्तार करा दिया था, जिसके बाद बीजेपी ने वीपी सिंह सरकार से समर्थन वापस ले लिया है, नतीजा केन्द्र सरकार गिर गई। फिर कांग्रेस के समर्थन से चंद्रशेखर की सरकार बनी, तो आडवाणी विपक्ष के नेता चुने गये, लेकिन ये सरकार भी सिर्फ चार महीने ही चली।

हिंदुत्व के मुद्दे पर बढे आगे
साल 1991 के चुनाव में बीजेपी राम मंदिर का मुद्दा उठाया, जिसके बदौलत पार्टी 120 सीटें जीती, अब बीजेपी देश में दूसरे नंबर की पार्टी बन गई थी। राम के नाम से हुए फायदे के बाद भारतीय जनता पार्टी ने राष्ट्रवाद का मुद्दा उठाया। पार्टी ने देशभर में तिरंगा यात्रा निकाला, उनका मकसद अगले साल 26 जनवरी को कश्मीर के लालचौक पर राष्ट्रीय ध्वज फहराना था, ये लक्ष्य भी आडवाणी जी की अगुवाई में पूरा किया गया। बीजेपी हिंदुत्व के मुद्दे पर आगे बढती रही।

चुनाव ना लड़ने का दिया वचन
फिर आडवाणी जी का नाम हवाला कांड में आया, उन पर सवाल उठे, जिसके बाद उन्होने तुरंत लोकसभा की सदस्यता से इस्तीफा दे दिया और घोषणा की, कि जब तक वो मामले में पाक-साफ होकर बरी नहीं हो जाएंगे, तब तक कोई चुनाव नहीं लड़ेगे। तब लाल कृष्ण आडवाणी ने कहा था कि ये मेरे खिलाफ लगाये गये आरोप राजनीतिक रुप से प्रेरित है, जब तक ये झूठा आरोप नहीं हटता, तब तक मैं संसद की सीढियां नहीं चढूंगा।

कट्टर हिंदूवादी नेता की छवि
बीजेपी में आडवाणी जी का दबदबा जबरदस्त रहा, हालांकि राम जन्मभूमि आंदोलन की वजह से उन्हें कट्टर हिंदू नेता के तौर पर देखा जाने लगा था, लेकिन आडवाणी जी की चुनाव ना लड़ने के ऐलान ने उन दिनों रंग लाया, वो खुद चुनाव नहीं लड़े, लेकिन पार्टी के लिये खूब प्रचार किया। 1996 में बीजेपी 161 सीटों पर जीत कर पहली बार देश की नंबर वन पार्टी बनी, अटल जी तब पीएम बनें थे, हालांकि बहुमत ना होने की वजह से 13 दिन में ही उनकी सरकार गिर गई थी।