बिना रन बनाये ही युवराज सिंह ने जीत लिया दिल, 11 साल के रॉकी की कहानी जान आप भी हो जाएंगे भावुक

Yuvi Indore

युवराज सिंह ने 10 साल से कैंसर से लड़ रहे अपने 11 साल के नन्हें फैंस से ना सिर्फ मुलाकात की, बल्कि उनके माता-पिता का दर्द समझते हुए उनका हौंसला भी बढाया।

New Delhi, May 11 : कैंसर को हराकर क्रिकेट के मैदान में वापसी करने वाले स्टार क्रिकेटर युवराज सिंह ने फिर से एक बार साबित कर दिया, कि वो रियल लाइफ में भी हीरो हैं। युवी ने 10 साल से कैंसर से लड़ रहे अपने 11 साल के नन्हें फैंस से ना सिर्फ मुलाकात की, बल्कि उनके माता-पिता का दर्द समझते हुए उनका हौंसला भी बढाया। आपको बता दें कि युवी के इस फैन को बोन मेरो ट्रांसप्लांट होना है, इसके लिये वो अगले 6 महीने तक अस्पताल में भर्ती रहेगा।

युवराज सिंह ने दिया गिफ्ट
युवराज सिंह को बेहद पसंद करने वाला 11 साल का मासूम रॉकी इंदौर का रहने वाला है, गुरुवार शाम को इंदौर के होलकर स्टेडियम में रॉकी ने अपने मम्मी-पापा और बहन के साथ युवी से मुलाकात की, Neha yuvi2रॉकी को देख युवराज सिंह कुछ देर बोल नहीं सके। कैंसर जैसी गंभीर बीमारी से जूझने के बावजूद 11 साल के लड़के का हौंसला देख स्टार क्रिकेटर भी उनके फैन हो गये। युवी ने उन्हें अपनी टी-शर्ट, स्कूल बैग और कैप गिफ्ट की।

माता-पिता का बढाया हौसला
युवी ने रॉकी के माता-पिता से कहा कि बच्चे के सामने घबराना नहीं, मेरी तरह रॉकी भी कैंसर से जीतेगा। yuvraj singh IPLआपको बता दें कि रॉकी की जिंदगी में तीसरी बार कैंसर का खतरा मंडरा रहा है। सिर्फ 1 साल की उम्र में ही उसे कैंसर का पता चला था, इलाज के बाद ढाई साल की उम्र में वो ठीक हो गया था, लेकिन बाद में फिर उसे इस बीमारी ने जकड़ लिया। अब बोन मेरो ट्रांसप्लांट ही अंतिम विकल्प है।

अस्पताल में भर्ती होगा रॉकी
आज रॉकी को बोन मेरो ट्रांसप्लांट के लिये इंदौर के एक निजी अस्पताल में भर्ती कराया जाएगा। पिता निशांत दूबे खुद ही अपने बेटे को बोन मेरो देंगे। yuvraj-singh-meetingबोन मेरो ट्रांसप्लांट के बाद अगले 6 महीने तक उसे अस्पताल में भर्ती रहना होगा। युवराज सिंह ने भी रॉकी को गुडलक कहा ।

युवी के 6 छक्कों ने बनाया दीवाना
रॉकी भी बड़ा होकर युवराज सिंह की तरह क्रिकेट खेलना चाहता है, टी-20 विश्वकप में युवी के 6 लगातार गेंदों पर 6 छक्के ने रॉकी को उनका फैन बना दिया। Yuvraj singh2हालांकि बीमारी की वजह से वो आम बच्चों की तरह क्रिकेट तो नहीं खेल पाता। लेकिन क्रिकेट के प्रति उसकी दीवानगी किसी से कम नहीं है।

युवी ने जीता कैंसर से जंग
जब साल 2011 में युवराज सिंह को पता चला कि उन्हें कैंसर हैं, तो बाकी लोगों की तरह ही उनके दिल में भी बस ये ख्याल नहीं था, Yuvraj Singh indoreकि अब वो जिंदा रह पाएंगे या नहीं, उन्हें बस इस बात का डर था कि क्या वो दोबारा क्रिकेट खेल पाएंगे ? क्रिकेट के प्रति उनका जूनून ही था, कि उन्होने कभी भी हार नहीं मानी और तमाम चुनौतियों से आगे बढते रहे।

भगवान विश्वकप दे दे
विश्वकप 2011 के दौरान उन्हें पता चला कि उन्हें कैंसर है, उनका शरीर साथ नहीं दे रहा था, युवी ने अपनी ऑटोबायोग्राफी टेस्ट ऑफ माय लाइफ में लिखा है, yuvraj-singh cupकि उस पूरे टूर्नामेंट में मुझे उल्टियां हो रही थी, सांस लेने में तकलीफ हो रही थी, लेकिन मुझे विश्वकप के आगे कुछ भी नहीं दिख रहा था, मुझे नींद नहीं आती थी, इस वजह से मुझे कई बार नींद की गोलियां भी दी जाती थी। ताकि मैं मैच के लिये तरोताजा रहूं, मेरे लिये जीत बहुत ज्यादा जरुरी थी, मैंने अपने स्टाफ मेंबर से फाइनल मुकाबले से पहले कहा था, कि भगवान चाहे, तो मेरी जान ले ले, लेकिन मुझे विश्वकप दे दे।