मकर संक्रांति पर बन रहे हैं ये दुर्लभ संयोग, 14 जनवरी को क्‍या करें और क्‍या ना करें ?

साल में कुछ तारीख ऐसी होती हैं जो बहुत ही शुभ होती हैं, ऐसी ही तिथि है 14 जनवरी, जानिए मकर संक्रांति से जुड़ी वो बातें जो आपको जरूर पता होनी चाहिए ।

New Delhi, Jan 10 : 14 जनवरी से हिंदू नव वर्ष की शुरुआत हो रही है । इस दिन पूरे देश में मकर संक्रांति मनाई जाती है । इस बार ये पर्व बहुत ही दुर्लभ संयोग लेकर आ रहा है, मकर संक्रांति के दिन सर्वार्थ सिद्धि और परिजात योग भी बन रहा है । इन दोनों योग को ज्योतिष में शुभ माना गया है । ज्योतिषविदों के अनुसार ऐसा संयोग 6 साल बाद बन रहा है, साथ ही ये भी कि इस बार  संक्रांति रविवार को पड़ रही है, इस दिन रवि प्रदोष का भी संयोग बन रहा है ।

दो दिन मनाया जाएगा त्‍योहार, ये है शुभ योग
इस बार ये त्‍यौहार दो दिन मनाया जाएगा । ज्‍योतिष के जानकारों के अनुसार 14 जनवरी की दोपहर 1:47 बजे सूर्यदेव का प्रवेश मकर राशि में होगा। इसके बाद 15 जनवरी को संक्रांति सुबह 5:11 बजे तक रहेगी। इसलिए इसे दो दिन मनाया जा रहा है । शास्त्रों में उत्तरायण के समय को देवताओं का दिन तथा दक्षिणायन को देवताओं की रात कहा गया है । इस तरह मकर संक्रांति एक तरह से देवताओं की सुबह मानी जाती है।

स्‍नान-दान के लिए 3 घंटे 55 मिनट का समय
इस वर्ष बन रहे अद्भुत यो आपको स्‍नान का दोगुना फल प्रदान करेंगे । संक्रांति पर्व पर मूल नक्षत्र, सिंह लग्न और ध्रुव योग के संयोग शुभ फल देने वाले हैं । आपको इस वर्ष पुण्‍य काल के रूप में 3 घंटे 55 मिनट का समय मिलेगा । पुण्‍य काल में स्‍नान-दान अधिक प्रभावशाली होता है । इस दिन किसी भी नदी में स्नान का अपना विशेष महत्‍व है साथ ही दान करने से जीवन के सारे कष्‍ट मिट जाते हैं ।

क्‍यों कहते हैं मकर संक्रांति ?
भगवान सूर्य अभी धनु राशि में हैं, 14 जनवरी को ये मकर राशि में प्रवेश करेंगे । सूर्य के राशि बदलने की प्रक्रिया को संक्रांति कहा जाता है। क्‍योंकि ये मकर राशि में प्रवेश करते हैं इसलिए ये पर्व मकर संक्रांति के नाम से मनाया जाता है । इस दिन से ही सूर्य की उत्तरायण गति भी प्रांरभ होती है। इसलिए इस पर्व को उत्तरायणी भी कहा जाता है ।

खरमास की समाप्ति, शुरू होंगे शुभ कार्य
मकर संक्रांति पर सूर्यदेव दक्षिणायन से उत्तरायण की ओर आते हैं और इसके बाद खरमास समाप्‍त होता है। 14 जनवरी से खरमास की समाप्ति होगी और नए मास की शुरुआत होगी । खरमास में जिन शुभ कार्यों को करने पर रोक लग जाती है वो सभी  संक्रांति के दिन से शुरू हो जाते हैं । 14 जनवरी से शुभ दिनों की शुरुआत हो जाती है । इस दिन से विवाह आदि संस्‍कार होने शुरू हो जाते हैं ।

कैसे मनाएं संक्रांति ?
सभी लोगों के लिए नदी में स्‍नान करना संभव नहीं हो पाता । इसीलिए मकर संक्रांति को इस तरह से घर पर मना सकते हैं । प्रातःकाल शरीर पर हल्‍दी का उबटन मलें और गंगाजल मिश्रित पानी से स्‍नान कर लें । अगर आपके घर गंगा जल नहीं है तो दूध और दही को नहाने के पानी में मिलाकर स्‍नान करें । स्नान के बाद अपने घर में स्थित मंदिर की पूजा करें । भगवान को मीठे का भेग लगाए ।

संक्राति पर क्‍या ना करें ?
इस बार संक्रांति का पुण्यकाल 3 घंटे 55 मिनट का है, इस समय में कोई भी गलत काम नहीं करना चाहिए । ऐसे काम जो अवैध हों उन्‍हें नहीं करना चाहिए । इसके अलावा दांत मांजना, किसी से कठोर बोलना, फसल या वृक्ष को काटना, गाय –  भैंस का दूध निकालना ये काम बिलकुल नहीं करने चाहिए । दंपति इस बात का ख्‍याल रखें, उन्‍हें इस पुण्‍य काल में शारीरिक संबंध नहीं बनाने है । ऐसा करने से आपको पुण्‍य फल की प्राप्ति नहीं होगी ।

संक्रांति पर करें इन चीजों का दान
मकर संक्रां‍ति के पर्व को खिचड़ी का पर्व भी कहा जाता है । इस दिन दान का विशेष महत्‍व है । गरीब लोगों को दक्षिणा और खिचड़ी का दान करें । चावल और दाल अलग-अलग भी दान कर सकते हैं । इस दिन स्नान, दान, जप, तप, श्राद्ध और अनुष्ठान का बहुत महत्व है । संक्राति पर किया गया दान 100 गुना अधिक फलीभूत होता है । इस दिन घी, कंबल का दान करना भी शुभ माना जाता है  ।

संक्रांति पर तिल का दिन
मकर संक्राति के दिन तिल का दान करना विशेष फलदायी है । तिल शनि का प्रिय है । संक्रांति से सूर्य एक माह तक शनि की राशि मकर में रहते हैं । शनि को न्याय का देवता कहा गया है ये व्‍यक्ति को पूर्व जन्म के पापों का प्रायश्चित करवाते हैं ।  संक्राति के दिन तिल का दान करना पूर्व जन्म के पापों और ऋण से मुक्ति दिलाता है ।

ये भी हैं महत्‍व
विष्णु धर्मसूत्र के अनुसार  संक्रांति के दिन पितरों की आत्मा की शांति के लिए तिल का दान करना चाहिए । शास्‍त्रों के अनुसार कपिल मुनि के आश्रम पर जिस दिन मां गंगा आई थीं, वह मकर संक्रांति का ही दिन था। मां गंगा के जल से राजा भगीरथ के पूर्वजों को स्वर्ग की प्राप्ति हुई थी। महाभारत काल में भीष्म पितामह ने सूर्य के उत्तरायण होने पर ही स्वेच्छा से अपने शरीर का त्याग किया था। इसी दिन मां दुर्गा ने राक्षस महिषासुर का वध करने के लिए  संक्रांति के दिन धरती पर कदम रखा था। साथ ही भगवान विष्णु ने  संक्रांति के दिन ही मधु कैटभ से युद्ध की घोषणा की समाप्ति की थी।