घी – तेल से नहीं इस मंदिर में पानी से जलता है दिया, 50 सालों से हो रहा है चमत्‍कार, रहस्‍य कोई नहीं जानता

हेडर पढ़कर चोंक गए होंगे, सोच में पड़ गए होंगे, भला ऐसे कैसे हो सकता है । घी – तेल से नहीं तो फिर पानी से कैसे ये दिया जल रहा है । ये खबर एकदम पक्‍की है, आगे पढ़ें इस रहस्‍यमयी मंदिर के बारे में ।

New Delhi, Aug 08 : हिंदुस्‍तान को कभी चमत्‍कारों का देश कहा जाता था । यहां रहने वाले ऋषि – मुनि, साधु-संत सभी की बहुत महिमा थी । कई ऐसे मंदिर और तीर्थ स्‍थल भी थे और अब भी हैं जिनकी ख्‍याति पूरी दुनिया में फैली हुई है । कुछ चमत्कार अब भी होते रहते हैं । हालांकि विज्ञान की इस आधुनिक दुनिया में इन पर भरोसा करना जरा मुश्किल काम है लेकिन फिर भी हम आज आपको एक ऐसे मंदिर के बारे में बताने जा रहे हैं जहां एक चमत्‍कार पिछले 5 वर्षों से हो रहा है ।

मध्‍यप्रदेश में है मंदिर
ये चमत्‍कारी मंदिर मध्यप्रदेश के गड़ियाघाट में है । माताजी के इस मंदिर को अनोखी घटना के लिए जाना जाता है । ये मंदिर कालीसिंध नदी के  किनारे बना हुआ है । बताया जाता है कि इस मंदिर में दीपक जलाने के लिए घी या तेल की जरूरत नहीं होती बल्कि यहां दिया नदी के पानी से ही जल जाता है । मंदिर में हो रहे इस चमत्‍कार को देखने के लिए लोग दूर-दूर से आते हैं ।

50 सालों से हो रहा है चमत्‍कार
मंदिर में हो रहे इस चमत्‍कार को देखने के लिए दूर-दूर से लोग यहां आ रहे हैं । पिछले 50 सालों से इस मंदिर में इसी तरह पानी से दीपकजलाए जा रहे हैं । इस मंदिर से जुड़ा एक वीडियो भी सोशल मीडिया पर वायरल हो चुका है । इसे लाखों लोग देख चुके हैं । पानी से दयिा जलने का ये चमत्‍कार इस मंदिर में 5 दशकों से हो रहा है ।

गाडि़या गांव में है माताजी का मंदिर
मध्‍यप्रदेश में कालीसिंध नदी के किनारे बना ये मंदिर आगर-मालवा के नलखेड़ा गांव से करीब 15 किमी दूर गाड़िया गांव के पास स्थित है । गड़ियाघाट वाली माताजी के नाम से मशहूर यह मंदिर आसपास के लोगों के लिए ही नहीं दूर दराज के लोगों के लिए भी चर्चा का विषय है । मंदिर में पानी से दिया जलाने के पीछे पुजारी को दिखाई दिया एक स्‍वप्‍न है जिसकी कहानी इस प्रकार है ।

मंदिर के पुजारी ने बताया स्‍वप्‍न का राज
मंदिर में पूजा-अर्चना करने वाले पुजारी सिद्धूसिंह जी बताते हैं कि, पहले यहां हमेशा तेल का दीपक जला करता था, लेकिन करीब पांच साल पहले उन्हें माता ने सपने में दर्शन देकर पानी से दीपक जलाने के लिए कहा। सुबह उठकर जब उन्होंने पास बह रही कालीसिंध नदी से पानी भरा और उसे दीए में डाला। दीए में रखी रुई के पास जैसे ही जलती हुई माचिस ले जाई गई, वैसे ही ज्योत जलने लगी। पहले तो पुजारी खुद भी डर गए लेकिन फिर गांव वोलों को ये बात बताई ।

मॉनसून में नहीं जलता पानी से दिया
बतसाया जाता है कि पानी से जलने वाला ये दीपक बारिश के मौसम में नहीं जलता है । बारिश के समय कालीसिंध नदी का वाटर लेवल बढ़ जाता है और ये मंदिर पानी में डूब जाता है ।  जिससे यहां पूजा करना संभव नहीं होता ।  इसके बाद सितंबर-अक्टूबर में आने वाली शारदीय नवरात्रि के पहले दिन यहां दोबारा घटस्‍थाापना होती है और ज्‍योत जला दी जाती है । अगले बारिश के मौसम तक ये ज्‍योति यहां अखंड रूप से जलती रहती है ।