पूजा में क्‍यों नहीं किया जाता लोहे के बर्तन का इस्‍तेमाल ?

पूजा में सोने-चांदी के बर्तनों का ही इस्‍तेमाल क्‍यों किया जाता है, क्‍यों लोहे, एल्‍यूमिनियम और स्‍टील के बर्तन प्रयोग में नहीं लाए जाते हैं । आगे पढ़ें धर्म से जुड़ी ये रोचक बातें ।

New Delhi, Feb 22 : पीतल का दिया और तांबे की थाली, चांदी की कटोरी ओर सोने की चम्‍मच, कुछ ऐसे ही बर्तनों का प्रयोग किया जाता है पूजा-अचर्ना के दौरान । भगवान को भोग लगाना हो या फिर उनकी आरती उतारनी हो तांबा, पीतल, कांसा, सोना या फिर चांदी जैसी धातु का ही प्रयोग किया जाता है । लेकिन क्‍या आप जानते हैं ऐसा क्‍यों है, क्‍यों लोहा, एलूमीनियम या फिर स्‍टील की धातु के बने बर्तनों को पूजा में प्रयोग नहीं किया जाता । क्‍यों इन धातु के बने पात्रों में पूजा करना अशुभ माना गया है ।

ये धातुएं हैं अपवित्र
पूजा-पाठ के कामों में लोहा, स्टील और एल्युमीनियम से बने पात्रों को रखना अशुभ माना गया है । ये धातुएं अपवित्र धातु मानी जाती हैं । भगवान के पूजन में पात्रों के प्रयोग का पूरा ध्‍यान रखना चाहिए । अपवित्र धातुओं का प्रयोग करने से आपकी पूजा विफल हो सकती है । इसीलिए जिन धातुओं को अपवित्र माना गया हो उनका प्रयोग गलती से भी ना करें ।

पवित्र धातुओं के शुभ फल
पूजा में पात्रों का गहरा प्रभाव पड़ता है । शास्त्रों में कहा गया है, हर धातु का व्‍यक्ति पर अलग-अलग प्रभाव पड़ता है । सोना, चांदी, पीतल और तांबे के बर्तन जहां शुभ फल देते हैं वहीं कुछ धातुएं अशुभ मानी गई हैं । सोना जहां सर्वश्रेष्ठ धातु माना गया है वहीं लोहे जैसी धातु को निम्‍न श्रेणी में रखा गया है । इन धातुओं की कीमत में आसमान और पाताल जितना फर्क होता है ।

ये है वजह
सोना सर्वश्रेष्‍ठ और लोहा निकृष्‍ट धातु क्‍यों माना जाता है । दरअसल सोना एक ऐसी धातु हैं जिसमें कभी जंग नहीं लगता, यानी ये किसी भी चीज के प्रभाव में आकार अपना मूल स्‍वभाव नहीं त्‍यागती है । इसी वजह से देवी-देवताओं की मूर्तियां, आभूषण आदि सभी सोने से ही बनाये जाते हैं । वहीं लोहा एक ऐसी धातु है जिस पर हवा, पानी तक का असर पड़ता है, सबसे मजबूत होने के बाद भी जंग खाकर ये नष्‍ट हो जाता है ।

सोने के बाद चांदी को माना जाता है शुभ
सोने जैसी महंगी धातु का प्रयोग हर कार्य में कर पाना सभी के लिए संभव नहीं । इसीलिए सोने के बाद चांदी को ये स्‍थान दिया गया है । चांदी पवित्र और शीतल धातु मानी गई हे । इसका प्रयोग ठंडक प्रदान करता है । चांदी ओर सोने की धातु केवल जल के प्रयोग से शुद्ध हो जाती है । इसके बाद इन्‍हें पूजा में इसतेमाल किया जा सकता है ।

तांबे का प्रयोग
सोने-चांदी के बाद तांबे के बर्तनों का प्रयोग भी पूजा के कर्मो में होता रहा है । इस धातु के लोटे या आचमनी का प्रयोग किया जाता है । इस पात्र में जल भरकर सूर्य को अर्घ्‍य देने की परंपरा रही है । ये धातु बैक्‍टीरिया नाशक मानी गई है । पूजा में रखी आचमनी का जल ग्रहण करने के बाद पूरे घर में छिड़काव करने को कहा जाता है । तांबे के बर्तन में रात को पानी रखकर सुबह पीने से बहुत लाभ होते हैं ।

पीतल
अग्नि तत्व की धातु कही जाने वाली पीतल में कुछ अंश जल तत्व के भी पाए जाते हैं । ये धातु बृहस्पति और चंद्रमा से संबंधित मानी जाती है । इस धातु को भी शुभ माना गया है । इस धातु के बने दीपक का प्रयोग शुभ माना गया है ।
कांसा – कांसे की थालियां मंदिर में प्रयोग में लाई जाती है । कांसा एक मिश्रित धातु है, ये भी औषधीय गुणों से भरपूर मानी जाती है । ये बुध की धातु कही गई है । सभी राशियों के लोगों के लिए कांसा शुभ फल देने वाला माना गया है ।

ये हैं अपवित्र धातुएं
पूजा और धर्म कर्म के कार्यो में लोहा, स्टील और एल्युमीनियम का प्रयोग नहीं करना चाहिए । लोहा जहां जंग खाकर नष्‍ट हो जाता है वहीं ऐसी स्थिति में ये लोगों को नुकसान भी पहुंचा सकता है । इसी प्रकार एलू‍मीनियम के बर्तन से भी कालिख निकलती है । जो इस धातु को अपवित्र बनाती है । इन धातुओं को प्रयोग करना पूर्जा के कामों में अशुभ माना गया है ।