इन 6 कामों से होती है उम्र कम, महाभारत में बताई गई है ये बातें

पद का अहंकार, अपनी प्रशंसा सुनने वाला, खुद को बलवान, बुद्धिमान, त्यागी और महात्मा समझने वाला अभिमान का शिकार हो जाते हैं।

New Delhi, Nov 09 : धर्म ग्रंथों के मुताबिक मनुष्य की आयु 100 साल निश्चित की गई है, हालांकि आज कल कोई भी मनुष्य अपनी पूर्ण आयु जी नहीं पाता, बहुत कम ही लोग ऐसे होते हैं, जो 100 साल या उससे ज्यादा जीते हैं। महाभारत में भी एक प्रसंग है, जब राजा धृतराष्ट्र महात्मा विदुर से इंसानों की उम्र घटने को लेकर सवाल पूछते हैं, तो विदुर ने उम्र कम होने के 6 दोषों के बारे में धृतराष्ट्र को बताया।

धृतराष्ट्र ने महात्मा विदुर से पूछा
शतायुरुक्तः पुरुषः सर्ववेदेषु वै यदा
नाप्नोत्यथ च तत् सर्वमायुः केनेह हेतुना
यानी – जब सभी वेदों में पुरुष को सौ साल की आयु वाला बताया गया है, तो फिर किस वजह से वो अपनी पूर्ण आयु नहीं जी पाते।

विदुर ने क्या कहा ?
अतिमानो अतिवादश्च तथात्यागो नराधिप
क्रोधश्चात्मविधित्सा च मित्रद्रोहश्च तानि षट् ।।
एत एवासयस्तीक्ष्णाः कृन्तन्याययूंषि देहिनाम्
एतानि मानवान् ध्नन्ति न मृत्युर्भद्रमस्तु ते ।।
यानी – अत्यंत अभिमान, ज्यादा बोलना, त्याग का अभाव, स्वार्थ, मित्रद्रोह, क्रोध, ये 6 तीखी तलवारें हैं, जो इंसान की आयु को कम करती है, इससे ही मनुष्यों की आयु कम होती जाती है।

अभिमान और ज्यादा बोलने वाला
पद का अहंकार, अपनी प्रशंसा सुनने वाला, खुद को बलवान, बुद्धिमान, त्यागी और महात्मा समझने वाला अभिमान का शिकार हो जाते हैं, अभिमानी श्रेष्ठ को भी हीन समझता है और उसकी बातें नहीं मानता, अभिमानियों के कई शत्रु हो जाते हैं, इसके साथ ही जो इंसान ज्यादा या व्यर्थ की बातें करता है, वो सत्य का पूरी तरह से पालन नहीं करता है, कई बार ऐसी बातें भी कर बैठता है, जिनका परिणाम बुरा होता है, ऐसे लोग बुद्धिमानों को प्रिय नहीं होते और दूसरे लोगों पर उसकी बातों का प्रभाव भी नहीं होता। असंयमित वाणी से उम्र कम होती है।

गुस्सा और त्याग का अभाव
इंसान का सबसे बड़ा दुश्मन गुस्सा है, गुस्से में इंसान अपने कर्मो के परिणाम को भूल जाता है, जिससे उसका पतन होने लगता है। त्याग का अभाव होने की वजह से ही रावण, दुर्योधन का पतन हुआ। सांसारिक सुख इंसान की आयु को काटते हैं। इंसान को जीवन में सदैव ध्यान रखना चाहिये, कि हम इस संसार में कुछ लेने नहीं बल्कि दूसरों को सुख देने के लिये आए हैं।

स्वार्थ और मित्रद्रोही
स्वार्थ यानी की लोभ ही अधर्म का मूल कारण है, स्वार्थी इंसान अपना काम साधने के लिये बड़े से बड़ा पाप करने में भी शर्म महसूस नहीं करते, वर्तमान परिदृश्य में देखा जाए, तो स्वार्थ की वजह से ही दुनिया में पाप कर्म बढ रहे हैं। मित्रद्रोही पुरुषों को अधम कहा जाता है, पतन की ओर जाते हुए कई पुरुषों का उत्थान मित्रों ने किया है, मित्रद्रोही मनुष्य का जीवन नरक के समान होता है।