जेएनयू कांड के आरोपी देशद्रोही हैं या भगत सिंह- जल्दी बताइए सरकार !

सोमवार को ख़बर आई कि उन्हीं आरोपी छात्रों में से एक पर दिल्ली में गोली चल गई। निकम्मा कानून और स्वार्थी सियासत भले ऐसे लोगों को सज़ा न दिलवा सके।

New Delhi, Aug 14 : जेएनयू में अफजल गुरु और मकबूल भट्ट जैसे कुख्यात आतंकवादियों की बरसी मनाए जाने की घटना और “भारत तेरे टुकड़े होंगे” और “बंदूक के दम पर आज़ादी” जैसे नारे बेहद विचलित करने वाले थे। अब तक वहां से कोई ऐसा सबूत नहीं आया है कि ये घटनाएं वहां नहीं हुई थीं और जिन छात्रों पर आरोप लगे, उनकी इनमें किसी भी प्रकार की संलिप्तता नहीं थी। इसलिए जब राहुल गांधी, सीताराम येचुरी और अरविंद केजरीवाल जैसे नेता जेएनयू कांड के आरोपी छात्रों की देशद्रोहपूर्ण अभिव्यक्ति की आज़ादी के लिए खूंटा गाड़कर खड़े हो गए, तो हमने उनकी पुरज़ोर आलोचना की थी।

लेकिन ढाई साल के बाद भी इस मामले में अंधेरा पूरी तरह कायम है। दिल्ली के तत्कालीन पुलिस कमिश्नर बीएस बस्सी ने पूरे सबूत होने का दावा किया था, लेकिन आज तक भी पुलिस और सरकार उन लोगों को सामने क्यों नहीं ला पाई, जो जेएनयू में देश-विरोधी नारे लगाकर भाग गए? हो सकता है कि नारे लगाने वाले बाहरी हों, लेकिन कार्यक्रम आयोजित करने वाले तो बाहरी नहीं हो सकते, तो फिर उन भीतरी लोगों के गुनाहों को अब तक साबित क्यों नहीं किया जा सका? साथ ही, उन भीतरी लोगों को शिकंजे में लेकर उन बाहरी लोगों को क्यों नहीं पकड़ा गया?
आज हालात ये हैं कि देशद्रोह की उस घटना के लिए देश जिन लोगों के ख़िलाफ़ कार्रवाई चाहता था, उनमें से कई लोग हमारे माननीय नेता बन जाने के कगार पर खड़े हैं। आने वाले दिनों में उनमें से कई देश की संसद और विधानसभाओं में पहुंचकर देश के लोगों का मुंह चिढ़ाने वाले हैं। पहले कांग्रेस के कुछ नेताओं ने भगत सिंह से उनकी तुलना की, अब बीजेपी के एक असंतुष्ट सांसद ने भी उन्हें भगत सिंह करार दिया है। सवाल है कि क्या देश ऐसे ही वाहियात बयानों पर डिबेट देखने-सुनने के लिए अभिशप्त है?

सोमवार को ख़बर आई कि उन्हीं आरोपी छात्रों में से एक पर दिल्ली में गोली चल गई। निकम्मा कानून और स्वार्थी सियासत भले ऐसे लोगों को सज़ा न दिलवा सके, लेकिन विश्वस्त सूत्रों से हमें जो जानकारी मिल रही थी और जिस तरह के बयान उस आरोपी छात्र ने स्वयं टीवी चैनलों के शुरुआती पैनल डिस्कशन में दिए थे, उससे उस आरोपी छात्र की उस मामले में संलिप्तता को लेकर देश की अधिकांश जनता के मन में कोई संदेह नहीं है।
सवाल है कि जिस व्यक्ति को सबूत इकट्ठा करके कानून द्वारा सज़ा दिलाई जानी चाहिए थी, वह व्यक्ति खुलेआम घूमते हुए सभाओं-सेमिनारों में भाषणबाज़ी कैसे कर पा रहा है? अगर उसके साथ कल कोई घटना-दुर्घटना हो गई, तो इसके लिए कौन ज़िम्मेदार होगा? देश की राजनीति जिस गंदे मोड़ पर खड़ी है, उसे देखते हुए उसे ख़तरे की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता। ऐसे हालात में देश को बदनाम करने वाली कोई भी घटना हो सकती है, मसलन

1. अगर उस आरोपी छात्र नेता के अपने ही सियासी आका चुनाव से पहले सियासी लाभ लेने के लिए उसे नुकसान पहुंचाने की कोई साज़िश रच लें तो क्या होगा?
2. अगर भारत को बदनाम करने के लिए आतंकवादी या अलगाववादी तत्व ही उसे नुकसान पहुंचाने का कोई प्लान तैयार कर लें तो क्या होगा?
3. अगर उसके ख़िलाफ़ कार्रवाई न हो पाने से हताश कोई कट्टर राष्ट्रवादी या हिन्दुत्ववादी ही उसे नुकसान पहुंचाने का फ़ैसला कर ले तो क्या होगा?
4. यह भी नहीं भूलना चाहिए कि हैदराबाद विश्वविद्यालय में मुंबई बम ब्लास्ट मामले के दोषी याकूब मेमन के समर्थन में आंदोलन करने वाले कथित दलित छात्र रोहित वेमुला द्वारा जिस तरह की संदिग्ध परिस्थितियों में आत्महत्या करने की बात कही गई, वह वास्तव में हत्या या आत्महत्या के लिए उकसाने की घटना भी हो सकती है। अगर ऐसी ही कोई साज़िश जेएनयू कांड के किसी आरोपी के साथ भी रच दी गई, तो क्या होगा?

दरअसल, कानून जब निकम्मा हो जाता है और गुनहगारों को सज़ा दिलवाने में नाकाम होने लगता है, तो कुछ भी हो सकता है। आज गाय के नाम पर भीड़ द्वारा हिंसा की जो घटनाएं हो रही हैं, कमोबेश वह भी ऐसी ही स्थितियों का परिणाम हैं। गाय को राजनीतिक मुद्दा बनाकर लोगों की भावनाओं को तो उभार दिया गया, लेकिन गोहत्या को रोकने के लिए कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया। नतीजा यह कि गाय के नाम पर आए दिन हिंसा की घटनाएं हो रही हैं।
जेएनयू देशद्रोह कांड के मामले में कानून के निकम्मेपन के पीछे हमारे सूत्र कई तरह की बातें कह रहे हैं। मसलन,

1. इस घटना में एक बड़े कम्युनिस्ट नेता की बेटी भी शामिल थी, इसलिए उस कम्युनिस्ट नेता और उसकी तरफ से अन्य अनेक नेताओं के अनुनय-विनय और दबाव में आकर पूरे मामले की जांच को किसी भी नतीजे पर न पहुंचने के लिए शिथिल कर दिया गया।
2. इस घटना में देश को सांप्रदायिक आधार पर ध्रुवीकृत करने की पूरी क्षमता थी और है, इसलिए इसमें सभी राजनीतिक पक्षों को अपना-अपना लाभ दिखाई दे रहा है।3. इस घटना के आरोपी कुछ छात्र नेताओं को राजनीति में भी आगे बढ़ने देने की योजना बनाई गई है, ताकि उन नामों के इर्द-गिर्द ध्रुवीकरण का खेल अभी लंबा चलता रहे।

अगर ऐसी कोई बात है तो दुर्भाग्यपूर्ण है। हम समझते हैं कि जांच एवं न्याय की प्रक्रिया पूरी करके कानून जेएनयू कांड के आरोपियों को अविलंब या तो दोषी या फिर निर्दोष घोषित करे, वरना किसी दिन कोई अप्रिय घटना घट गई, तो राजनीति भले अपना उल्लू सीधा कर लेगी, लेकिन देश की जनता एक बार फिर से उल्लू बन जाएगी और देश को बदनामी के सिवा कुछ भी नहीं मिलेगा।

(वरिष्ठ पत्रकार अभिरंजन कुमार के फेसबुक वॉल से साभार, ये लेखक के निजी विचार हैं)