बिहार- ईमानदारी का ईनाम- पूर्व सीएम के परिजन मजदूरी कर गुजारा करने को विवश

वैसे तो किसी पूर्व मुख्यमंत्री के परिजन का मेहनत मजदूरी करना कोई बुरी बात नहीं है। आखिर हम ऐसा क्यों मानते हैं कि एक बार सीएम बनने के बाद किसी नेता के सात पीढ़ियों के इंतजाम हो जाये।

New Delhi, Sep 21 : यह तस्वीर पूर्णिया शहर के मधुबनी बाजार की है। यहां मजदूर वैसे ही खड़े हैं, जैसे किसी भी शहर में काम की तलाश में खड़े होते हैं। इस लिहाज से इस तस्वीर में कोई नयापन नहीं है। मगर जब आप घेरे में नजर आ रहे दो लोगों का परिचय जानेंगे तो हैरत में पड़ जाएंगे। ये दोनों उस व्यक्ति के वंशज हैं, जो व्यक्ति तीन दफा बिहार का मुख्यमंत्री रह चुका है।

जी हां, उनका नाम भोला पासवान शास्त्री है और आज उनकी जयंती है। मैं पहले भी अपने भाई बासुमित्र के साथ उनके गांव जा चुका हूँ और उनके परिजनों की बदहाली की कहानी लिख चुका हूँ। उनके पास रहने को घर नहीं है, राशनकार्ड नहीं बना है, भूमिहीन हैं। वगैरह। इस लिहाज से हम उनके परिजनों से ठीक से परिचित हैं, खासकर मेरा भाई जो कई बार उनके गांव जा चुका है।
इसलिये, पिछले दिनों जब उसने इन दोनों को मजदूरों की कतार में खड़ा देखा तो हैरत से भर उठा। आज उसकी रिपोर्ट दैनिक भास्कर में छपी है।

वैसे तो किसी पूर्व मुख्यमंत्री के परिजन का मेहनत मजदूरी करना कोई बुरी बात नहीं है। आखिर हम ऐसा क्यों मानते हैं कि एक बार सीएम बनने के बाद किसी नेता के सात पीढ़ियों के इंतजाम हो जाये। यह अच्छी बात है भोला पासवान शास्त्री ने इस तरह नहीं सोचा, जब कि तीन बार सीएम बनने के अलावा वे इंदिरा सरकार में केंद्रीय मंत्री भी रहे थे। इसके बावजूद उनकी मौत के बाद उनके खाते में इतने पैसे भी नहीं थे कि उनका अंतिम संस्कार किया जा सके। पूर्णिया के तत्कालीन डीएम ने उनका अंतिम संस्कार करवाया था।

यह जिक्र इसलिये मौजू है कि क्या आज के राजनेता इन लोगों से कुछ सीखना चाहेंगे? आज तो एक बार विधायक बनने और ही ताउम्र अच्छे खासे पेंशन का इंतजाम हो जाता है। पूर्व सीएम को ताउम्र सरकारी बंगला मिलता है। और राजनीतिक कनेक्शन उसे कभी पैसों की कमी नहीं होने देते। जाहिर है इस धन प्रधान युग में ऐसे लोगों की कहानी सिर्फ हैरत जगाने के काम आएगी, अनुकरणीय नहीं हो सकती। फिर भी लिखना तो अपना फर्ज है।

(वरिष्ठ पत्रकार पुष्य मित्र के फेसबुक वॉल से साभार, ये लेखक के निजी विचार हैंं)