कांग्रेसी इस कला में माहिर हैं, कांख भी छुपी रहे और मुट्ठी भी तनी रहे

फिर अपने कांग्रेसी तो जनेऊ भी पहनते हैं , मंदिर-मंदिर परिक्रमा करते हुए मुस्लिम टोपी भी पहनते हैं , इफ्तार आदि भी खाते-खिलाते हैं ।

New Delhi, Jul 24 : मसला कोई भी हो पर कांग्रेसी , वामपंथी और वामपंथी लेखक तथा मुस्लिम समाज के लोगों का सामूहिक कदम ताल देख कर सचमुच बहुत मजा आता है । मजाल क्या है एक भी कदम किसी का एकलय न हो । ऐसा कदमताल देख कर तो बैंड वाले भी एक बार अपनी धुन बजाना भूल जाएं । लेकिन इन के कदम तो बस आंख मूंद कर एक ताल में ही रहते हैं । तब , जब कि तीनों में अंतर्विरोध भी गज़ब के हैं ।

वामपंथी धर्म को अफीम मानते हैं । जब कि वहीं मुस्लिम समाज के लोग मज़हब के आगे किसी को नहीं जानते , मानते और सुनते हैं । मज़हब के आगे सब कुछ भाड़ में । बड़े-बड़े पढ़े-लिखे मुसलमानों की भी यही दयनीय स्थिति देख रहा हूं । इन पढ़े-लिखे और अपने को प्रगतिशील बताने वाले मुसलमानों को भी मदरसा , शरिया अदालत , तलाक़, हलाला , गाय का मांस खाने आदि के समर्थन में कुतर्क करते या ख़ामोश समर्थन करते पाता हूं । और इन सब मसलों पर वामपंथी दोस्तों की उतनी ही गहरी चुप्पी ।

फिर अपने कांग्रेसी तो जनेऊ भी पहनते हैं , मंदिर-मंदिर परिक्रमा करते हुए मुस्लिम टोपी भी पहनते हैं , इफ्तार आदि भी खाते-खिलाते हैं । यानी कांख भी छुपी रहे और मुट्ठी भी तनी रहे । कांग्रेसी इस कसरत में पूरी तरह अभ्यस्त हैं ।

ऐसे , जैसे कोई मदारी रस्सी पर चल रहा हो । जैसे कोई एक साथ दो नाव की सवारी गांठ रहा हो । खैर , वह एक फ़िल्मी गाना है न , आंख मारे , ओ लड़का आंख मारे ! जैसे फ़िल्मी गाने पर भी इन सभी लोगों का सामूहिक क़दमताल अदभुत है । कई बार इन का रिदम देख कर लगता है , गोया बैले डांस देख रहे हों । फिर इस बैले डांस पर , इस कदमताल पर इन से किसी तथ्य , किसी तर्क पर बात करना दीवार में सिर मारना ही शेष रहता है । फिर इस कदमताल और बैले डांस पर भला कैसे न कुर्बान जाऊं ! आख़िर यह भी एक आर्ट है । और मैं तो आर्ट कोई भी हो , उस का दीवाना ठहरा ।

(वरिष्ठ पत्रकार दयानंद पांडेय के फेसबुक वॉल से साभार, ये लेखक के निजी विचार हैं)