‘हरिवंश : कुढ़ और चिढ़ में बहुत से लोगों का चश्मा तक टूट गया है’

हरिवंश जैसे ईमानदार , पारदर्शी और पढ़े-लिखे पत्रकार के लिए नफ़रत और तंज का घिनौना नाला बदबू मारता हुआ , बहुत तेज़ी से बह रहा है ।

New Delhi, Aug 10 : हरिवंश जी के आज राज्य सभा के उप सभापति बनने पर राजनीतिक चश्मों की जो प्रतिक्रिया है , वह तो है ही पर अपने पत्रकार और लेखक साथियों का हाल बहुत बुरा देख रहा हूं । देख रहा हूं कि कुढ़ और चिढ़ में बहुत से लोगों का चश्मा तक टूट गया है । ख़ास कर कमिटमेंट कम्पार्टमेंट की तो लाइट ही चली गई है , चश्मा फूट ही गया था । फिर तो सहसा अंधे का हाथी देखने वाली जो प्रतिक्रियाएं हैं सो ख़ूब दिलचस्प हैं । किसी के हाथ में सूड़ है , किसी के पूंछ , किसी के हाथ में कान , किसी के हाथ पांव पर , किसी के हाथ दोनों पांव के बीच। सब अपना-अपना मज़ा , बदमज़ा बताने को आतुर हैं सो अलग । किसी को उन के ठाकुर तत्व से मुश्किल है , किसी को उन के आज ही ठाकुर हैं जानने का रंज है । किसी को उन की मौकापरस्ती पर रंज । किसी को प्रभात खबर के दुरूपयोग पर ऐतराज है । कोई नीतीश का चिंटू बता रहा है , कोई उन के मोदी की गोदी में चले जाने पर तबाह है । कोई उन के राज्य सभा में सोने के कितने साल शेष हैं पर अटकल ले रहा है । कोई उन्हें मार गुस्से में राष्ट्रपति की कुर्सी पर बैठाने का तंज ले कर उपस्थित है ।

मतलब पौधा एक माली हज़ार । और इन सभी मालियों का मकसद लेकिन एक ही है कि इस पौधे को कैसे और किस तरह सीधे एसिड डाल कर सुखा दिया जाए ताकि यह वृक्ष न बन पाए । कुछ ऐसे हैं जो बधाई तो भरपेट दे रहे हैं लेकिन रंज उन को भी है कि नरेंद्र मोदी के आशीर्वाद से क्यों बने । कोई घुमा कर उन्हें पहले ही से फासिस्ट और हिप्पोक्रेट बता रहा है । अजीब रामधुन चल रही है , जिस में संपुट में बारंबार रावण का उच्चारण सुनाई दे रहा है । जिस का कुल भाष्य और निष्कर्ष यही है कि हरिवंश नारायण सिंह नाम का यह व्यक्ति राज्य सभा का उप सभापति नहीं , रावण बन गया है । कमिटमेंट कम्पार्टमेंट में रहते-रहते यह विघ्न-संतोषी लोग इतने हताश और उदास हैं कि उन की इस हताशा और उदासी को किसी थर्मामीटर से नहीं नापा जा सकता । इन के बढ़े तापमान से शायद थर्मामीटर फूट जाए । राजीव शुक्ला जैसे दलाल और हिप्पोक्रेट पत्रकारों के लिए इन्हीं कमिटमेंट कम्पार्टमेंट के लोगों से प्रशंसा के फूल झरते हैं । लेकिन हरिवंश जैसे ईमानदार , पारदर्शी और पढ़े-लिखे पत्रकार के लिए नफ़रत और तंज का घिनौना नाला बदबू मारता हुआ , बहुत तेज़ी से बह रहा है । गोया उन के राज्य सभा का उप सभापति बन जाने से प्रलय आ गई हो ।

खैर इन विघ्न-संतोषी लोगों की राय अपनी जगह है । मेरी राय कुछ और है और इन विघ्न-संतोषी लोगों से बिलकुल जुदा है । हरिवंश जी के राज्य सभा के छ साल में से चार साल बीते हैं अभी । हरिवंश जी की यह पहली छलांग है । आगे एन डी ए 2019 के चुनाव में अगर सफल हो जाता है , नीतीश कुमार एन डी ए में बने रहते हैं तो हरिवंश जी की दूसरी छलांग उन्हें किसी बड़े मुकाम तक ले जाने वाली है , यह लिख कर रख लीजिए । जो आदमी राज्य सभा के पहले ही कार्यकाल में उप सभापति बन सकता है , उस की आगे की राह कितनी सरपट और स्पष्ट है , यह समझा जा सकता है । बाक़ी सोने के लिए कभी नहीं जाने गए हैं हरिवंश जी । जागने और जगाने के लिए हम उन्हें जानते हैं ।

सहसा हाथी को छू लेने वाले इन दिव्य दृष्टि वाले मित्रों ने राज्य सभा में हरिवंश के भाषण नहीं सुने हैं , प्रभात ख़बर में लिखे उन के लंबे-लंबे लेख नहीं पढ़े हैं । उन के पत्रकारीय जीवन , उन के अध्ययन और उन की लेखकीय दृष्टि से वह परिचित नहीं हैं । उन की शुचिता , सादगी और सरलता से परिचित नहीं हैं । इस लिए ऐसा-वैसा कह देने में विघ्न-संतोषी मित्रों को कोई कठिनाई नहीं हो रही । कोई संकोच नहीं हो रहा । राज्य सभा में उन के भाषण किस तरह पूरी तैयारी के साथ होते हैं , यह सुनने वाले हम जैसे लोग जानते हैं । अपने राज्य सभा के अभी तक के कार्यकाल में उन के जीवन से सादगी और पारदर्शिता नहीं गई । बल्कि और आ गई । गनर-पनर ले कर वह नहीं चलते । सांसद निधि का सदुपयोग उन्हों ने जिस शुचिता के साथ किया है , लोग सोच नहीं सकते । आज राज्य सभा में पक्ष और प्रतिपक्ष में नरेंद्र मोदी , अरुण जेटली , रविशंकर प्रसाद , गुलाम नबी आज़ाद से लगायत संजय राऊत और रामगोपाल यादव तक ने एक सुर से हरिवंश जी का जो चौतरफा यशोगान किया है , तरह-तरह से किया है , इतने विस्तार से किया है , लगता है विघ्न-संतोषी लोगों ने वह भी नहीं सुना । हरिवंश जी का भावुकता में भीगा भाषण भी आज राज्य सभा में नहीं सुना । कुछ न्यूज़ चैनलों पर उन का इंटरव्यू भी नहीं सुना । जो सुना होता तो शायद इतने सारे भ्रमजाल वाले फंदों का यह मायावी स्वेटर यह विघ्न-संतोषी लोग नहीं बुनते ।

(वरिष्ठ पत्रकार दयानंद पांडेय के फेसबुक वॉल से साभार, ये लेखक के निजी विचार हैं)