शीला दीक्षित के साथ फिर हो गया खेल, आप से गठबंधन और पूर्व सीएम को किनारे लगाने की तैयारी

अरविंद केजरीवाल बार-बार कांग्रेस के सामने गठबंधन के लिये गिड़गिड़ा रहे हैं, हालांकि बार-बार कांग्रेस ने उन्हें मना कर रही थी।

 New Delhi, Mar 19 : लोकसभा चुनाव की उल्टी गिनती शुरु हो गई है, लेकिन दिल्ली कांग्रेस की तमाम गतिविधियां इन दिनों थम सी गई है, आप से गठबंधन को लेकर दिल्ली कांग्रेस दो खेमों में पूरी तरह से बंटा नजर आ रही है, दिल्ली कांग्रेस के कई कार्यकर्ता पार्टी नेतृत्व के इस फैसले से नाराज हैं, कहा जा रहा है कि राहुल गांधी केजरीवाल से गठबंधन के पक्ष में हैं, जबकि प्रदेश अध्यक्ष शीला दीक्षित खुलकर विरोध कर रही है।

कांग्रेस पत्ते नहीं खोल रही
अरविंद केजरीवाल बार-बार कांग्रेस के सामने गठबंधन के लिये गिड़गिड़ा रहे हैं, हालांकि बार-बार कांग्रेस ने उन्हें मना किया है, इसके बावजूद आम आदमी पार्टी कांग्रेस नेतृत्व को मनाने में लगी हुई है, कहा जा रहा है कि राहुल गांधी के इशारे पर ही कांग्रेस प्रभारी पीसी चाको ने दिल्ली में सर्वेक्षण कराया था, कि अगर आप के साथ मिलकर चुनाव में उतरा गया, तो क्या असर होगा और बिना गठबंधन चुनाव में गये, तो क्या नुकसान होगा।

शीला दीक्षित नाराज
पीसी चाको द्वारा सर्वेक्षण कराये जाने से शीला दीक्षित नाराज थी, उन्होने कहा था कि उनसे इस बारे में जब पूछा गया, तो उन्होने हाईकमान को दो टूक शब्दों में कहा था कि गठबंधन से कांग्रेस को कोई फायदा नहीं होगा, इसलिये वो गठबंधन के बिल्कुल भी पक्ष में नहीं है, हालांकि अब ऐसा लग रहा है कि कांग्रेस अध्यक्ष पार्टी की वरिष्ठ नेता को नजरअंदाज कर रहे हैं।

एक-दो दिन में गठबंधन फाइनल
कहा जा रहा है कि आप संयोजक ममता बनर्जी और चंद्रबाबू नायडू के जरिये सीधे राहुल गांधी से मुलाकात के लिये समय मांग रहे थे, इतना ही नहीं आप को पूरा भरोसा था, कि अगर केजरीवाल राहुल गांधी से मिल लिये, तो फिर आप की शर्तों पर गठबंधन होगा। दिल्ली में बीजेपी का रथ रोकने के लिये तीन-तीन-एक का फॉर्मूला दिया गया है, यानी तीन पर कांग्रेस, तीन पर आप और एक सीट पर साझा उम्मीदवार।

शीला दीक्षित को किनारे लगाने की तैयारी
आपको बता दें कि इससे पहले यूपी विधानसभा चुनाव के दौरान भी कांग्रेस ने शीला दीक्षित को मुख्यमंत्री उम्मीदवार घोषित किया, फिर समाजवादी पार्टी के साथ गठबंधन कर लिया, कुछ ऐसी ही स्थिति एक बार फिर देखने को मिल रही है, पार्टी ने हाल ही में उन्हें प्रदेश अध्यक्ष बनाकर संगठन को संभालने की जिम्मेदारी दी, लेकिन उसके बाद उनकी राय को ही तरजीह नहीं दी जा रही है।