आडवाणी – संघ कार्यकर्ता से डिप्टी पीएम तक, कभी चुनाव ना लड़ने के फैसले से विरोधियों को कर दिया था चित्त

आडवाणी पर कभी कोई दाग नहीं लगा, साल 1996 चुनाव से ठीक पहले कांग्रेस की नरसिंह राव की सरकार ने विपक्ष के कुछ नेताओं को हवाला कांड में फंसाने की कोशिश की थी।

New Delhi, Nov 08 : बीजेपी के भीष्म पितामह लाल कृष्ण आडवाणी आज 91वां जन्मदिन मना रहे हैं, पीएम नरेन्द्र मोदी ने खुद उनके घर जाकर उन्हें जन्मदिन की बधाई दी, इसके साथ ही बीजेपी राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह ने भी उन्हें जन्मदिन पर बधाई दी। आडवाणी का भारतीय राजनीति में क्या योगदान है, शायद बताने की जरुरत नहीं है, वो कई बार बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष रह चुके हैं, जब भी बीजेपी के इतिहास की चर्चा होगी, तो आडवाणी जी के बिना वो चर्चा अधूरी रहेगी, आइये उनके जन्मदिन के मौके पर उनसे जुड़ी कुछ बातें आपको बताते हैं।

कौन हैं लाल कृष्ण आडवाणी ?
देश के सातवें डिप्टी प्राइम मिनिस्टर आडवाणी जी वाजपेयी सरकार में अपनी सेवाएं दे चुके हैं, उनका जन्म अविभाजित भारत के सिंध प्रांत में 8 नवंबर 1927 को कृष्णचंद डी आडवाणी और ज्ञानी देवी के घर हुआ था, वो 1998 से 2004 तक एनडीए सरकार में गृहमंत्री थे, आडवाणी बीजेपी के सह-संस्थापक और वरिष्ठ नेता हैं, जो 10वीं और 14वीं लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष रहे, एल के आडवाणी ने साल 1942 में आरएसएस वालंटियर के रुप में काम शुरु किया था, और राजनीति के शिखर पर पहुंचे ।

2 से 182 का सफर
हिंदुत्व के मसले पर बीजेपी को 2 सीटों से 182 सीटों तक पहुंचाने वाले लाल कृष्ण आडवाणी का महत्वपूर्ण रोल था, साल 1980 में बीजेपी की स्थापना के बाद 1986 तक आडवाणी पार्टी के महासचिव रहे, फिर 1986 से 1991 तक उन्होने राष्ट्रीय अध्यक्ष की जिम्मेदारी संभाली, इस दौरान उन्होने साल 1990 में राम मंदिर आंदोलन के दौरान सोमनाथ से अयोध्या के लिये रथयात्रा निकाली। हालांकि उन्हें बीच में ही गिरफ्तार कर लिया गया, लेकिन इस रथ यात्रा से उनका राजनैतिक कद काफी बड़ा हो गया। 90 के दशक में उनकी लोकप्रियका चरम पर थी, साल 1992 में बाबरी विध्वंस के बाद जिन लोगों को अभियुक्त बनाया गया, उनमें एल के आडवाणी का भी नाम शामिल है।

वाजपेयी को किया पीएम उम्मीदवार घोषित
राम मंदिर आंदोलन के दौरान आडवाणी की लोकप्रियता चरम पर थी, साथ ही संघ भी उनके पीछे पूरी तटस्थता से खड़ा था, लेकिन इसके बावजूद उन्होने साल 1995 में अटल बिहारी वाजपेयी को प्रधानमंत्री पद का दावेदार घोषित किया, हालांकि कुछ लोगों को इस पर हैरानी भी हुई, लेकिन आडवाणी करीब पचास सालों तक अटल जी से कंधे से कंधा मिलाकर काम करते रहे, वो पार्टी और सरकार में नंबर दो की हैसियत रखते थे।

चुनाव ना लड़कर विरोधी खेमे में मचा दी खलबली
दशकों तक राजनीतिक जीवन जीने के बावजूद आडवाणी पर कभी कोई दाग नहीं लगा, साल 1996 चुनाव से ठीक पहले कांग्रेस की नरसिंह राव की सरकार ने विपक्ष के कुछ नेताओं को हवाला कांड में फंसाने की कोशिश की थी, लेकिन उनका ये दांव उल्टा पड़ गया, क्योंकि आडवाणी ने तब इस्तीफा देकर कहा था कि जब तक वो बेदाग होकर नहीं निकलेंगे, तब तक चुनाव नहीं लड़ेंगे, इसके साथ ही उन्होने देश में घूम-घूम कर प्रचार किया था, जिससे पार्टी को बेहद फायदा मिला था।