पंजाब के ‘संकटमोचक’ अपने ही राज्य में फंसे, जानिये हरीश रावत की नाराजगी की Inside Story

harish rawat

हरीश रावत ने अपने ट्वीट में नुमाइंदों का जिक्र किया है, उनके करीबियों का कहना है कि हरीश रावत का इस शब्द के जरिये देवेन्द्र यादव पर निशाना था, जो प्रदेश के प्रभारी है।

New Delhi, Dec 23 : उत्तराखंड में जब चुनाव में कुछ ही दिन बचे हैं, तो हरीश रावत की बगावत ने कांग्रेस के लिये मुश्किलें खड़ी कर दी है, बुधवार को हरीश रावत ने कई ट्वीट्स पर हाईकमान पर इशारों ही इशारों में निशाना साधा, उन्होने कहा जिनके आदेश पर मुझे तैरना है, उनके ही कुछ नुमाइंदे मेरे हाथ-पैर बांध रहे हैं, उन्होने अपने ट्वीट्स में किसी पर भी सीधे तौर पर निशाना नहीं साधा, लेकिनव इशारों में सबकुछ कह गये, हरीश रावत के इन ट्वीट्स ने उत्तराखंड से पंजाब तक उनके विपक्षियों को बड़ा मौका दे दिया, कैप्टन अमरिंदर सिंह ने रावत की टिप्पणियों पर कहा, आपने जो बोया था, वही काट रहे हैं। दरअसल हरीश रावत की कैप्टन को मुख्यमंत्री पद से हटाने में बड़ी भूमिका मानी जाती थी, खैर यहां बात हरीश रावत की नाराजगी की हो रही है, तो आइये इसकी इनसाइड स्टोरी आपको बताते हैं।

प्रदेश प्रभारी से नाराज हैं हरीश रावत?
हरीश रावत ने अपने ट्वीट में नुमाइंदों का जिक्र किया है, उनके करीबियों का कहना है कि हरीश रावत का इस शब्द के जरिये देवेन्द्र यादव पर निशाना था, जो प्रदेश के प्रभारी है, रावत के एक करीबी नेता ने कहा कि पार्टी के प्रभारी देवेन्द्र यादव 2 से 3 लोगों के जरिये सब चीजें चला रहे हैं, दरबारियों को तवज्जो मिल रही है, राज्य के नेताओं को किनारे लगा दिया गया है, समस्या की जड़ यही है, रावत समर्थकों का कहना है कि लंबे समय  से उन्हें साइडलाइन करने की कोशिश की जा रही है, उन्होने कहा कि रावत की इच्छा के बिना ही उन्हें पंजाब का प्रभारी बना दिया गया, जबकि उत्तराखंड और पंजाब में एक साथ ही विधानसभा चुनाव होने हैं।

क्यों रावत ने चुनाव से पहले खोला मोर्चा
हरीश रावत गुट के एक नेता ने बताया कि पंजाब के संकट को जिस तरह से हरीश रावत ने संभाला था, उसे देखते हुए उन्हें अपने गृह राज्य में अधिक ताकत देनी चाहिये थी, लेकिन ऐसा नहीं हुई, रावत कैंप का कहना है कि उनके समर्थकों को टिकट बंटवारे में तवज्जो ना मिलने का डर है, ऐसे में पहले ही दबाव बनाने की रणनीति के तहत रावत ने लीडरशिप के खिलाफ मोर्चा खोला है, रावत को लगता है कि यदि उनके समर्थकों को टिकट कम मिले, तो जीत के बाद उनके सीएम बनने की राह में रोड़ा अटक सकता है, यही वजह है कि वो अपने समर्थकों के लिये लामबंदी करने में जुटे हैं।

पहले भी दो बार झटके
हरीश रावत हमेशा से कांग्रेस और गांधी परिवार के करीबी रहे हैं, लेकिन उन्हें दो झटके झेलने पड़े थे, 2002 में वो पहली बार सीएम बनने की रेस में थे, लेकिन तब पार्टी ने वरिष्ठ नेता एनडी तिवारी को मौका दिया था, इसके बाद 2012 में फिर से सीएम बनने की उम्मीद जगी थी, लेकिन तब काफी जूनियर और कम जनाधार वाले नेता विजय बहुगुणा को मौका दिया गया, हालांकि 2013 की बाढ के संकट से सही ढंग से नहीं निपट पाने के आरोपों के बाद बहुगुणा को हटा दिया गया था, तब जाकर रावत को सत्ता मिल पाई थी, उस कार्यकाल में हरीश रावत काफी लोकप्रिय रहे, लेकिन 2017 में सत्ता से ही पार्टी बाहर हो गई, इस बार जीत की स्थिति में वो पूरे 5 साल के कार्यकाल की उम्मीद लगाये बैठे थे, लेकिन फिर से हालात उनके हाथ से बाहर जाते दिख रहे हैं।