कलाकारों की कलाकारी की कद्र कीजिए, लेकिन इमोशनल अत्याचार से बचिये

अपने पत्रकारीय जीवन मे फ़िल्म, राजनीति ,साहित्य के सैकड़ो धुरंधर मिले लेकिन मैं खुद में उनके प्रति पागलपन पैदा ही नही कर सका ।

New Delhi, Aug 15 : कैटरीना कैफ ने रांची के रविवार को सुन्न कर दिया । लोगो का पागलपन सुस्ताते रांची को भी अनसुआ दिया। दक्षिण के राज्यो में जिस तरह फ़िल्म और राजनीति के हस्ती लोगों के लिए पूजा पाठ की हैसियत रखती है वही दमित इच्छा झारखंड के फिलिम शौकीनों में दिखा। यह पागलपन है। ईश्वर की कृपा से मैं रांची से बाहर था वरना इस कोंचू भीड़ देख के ही टेंसनिया जाता। दिल्ली में एक जज साहब की बेटी की शादी में प्रियंका चोपड़ा आयी हुई थी । मजा तो तब आया जब प्रियंका को कोई भाव ही नही दे रहा था। सब अपने मे मगन थे ।यह अच्छा भी लगा कि आदमी को आदमी जैसा ही बरताव किया जा रहा है ।

अपने पत्रकारीय जीवन मे फ़िल्म, राजनीति ,साहित्य के सैकड़ो धुरंधर मिले लेकिन मैं खुद में उनके प्रति पागलपन पैदा ही नही कर सका । अगर मुझे सबसे अधिक मौलिक और दिलचस्प व्यक्ति लगे तो वह थे अब्दुल कलाम। उनके साथ बैठना और समय बिताना सबसे आनंददायक लगा था। दरअसल अपने डीएनए में ही फिल्मी कलाकारों के प्रति भारी उदासीनता है। 1980 में पिताजी एक बार मुम्बई – बंगलोर गए हुए थे। ऑफिसियल टूर था इसलिए वे ट्रैन में फर्स्ट क्लास में यात्रा कर रहे थे। ट्रैन जहां भी रुकती थी लोगो का हुजूम इनकी बोगी को घेर लेता था। लोग खिड़कियां खड़खड़ाने लगते , शोरगुल शुरू हो जाता ,कुछ लोग भीतर घुसने की कोशिश करते। कुल मिलाकर स्टेशनों में अफरा तफरी मच जाती ।मेरे पिताजी इस मामले को बड़ी हैरत और उत्सुकता से देख रहे थे ।उन्होंने सामने वाले सहयात्री से पूछा कि आखिर मामला क्या है ।

भीड़ हमारी बोगी को क्यों घेर लेती है । सामने वाले ने गंभीर ,नाराज और भारी भरकम आवाज में कहा — लगता है आप फिल्में नही देखते हैं। वे मुझे देखना चाहते हैं क्योंकि मैं राजकुमार हूँ फ़िल्म अभिनेता राजकुमार।— पिताजी ने तसल्ली की सांस ली और करवट बदल कर सो गए। में सोचता हूँ कि राजकुमार पर क्या बीती होगी ? वही पिताजी एच ई सी के शहीद मैदान में कवि सम्मेलन सुनने के लिए हम भाइयो के साथ सीट “मड़ियाने ” के लिए शाम से कवायद करने लगते थे। ऐसा नही कि वे फ़िल्म देखते ही नही थे , दिखाते भी थे लेकिन मतलब वाली फिल्में । मसलन – हक़ीक़त , दोस्ती , विष्णु पुराण आदि आदि। इन फिल्मों के हीरो हीरोइन कभी स्टारडम को प्राप्त नही हुए।

पिताजी के साथ एकलौता ‘ मसाला ‘ फ़िल्म अनमोल मोती देखा था वह भी गलती से । बहरहाल, मैं बताना यह चाहता हूँ कि पारिवारिक संस्कार सामाजिक वैल्यू इतने समृद्ध थे कि कैटरीना जैसो को देखने के लिए तब भीड़ नही उमड़ती थी । रांची के ओरमांझी में ” नाच उठे संसार ” फ़िल्म की शूटिंग हुई थी जिसमे हेमा मालिनी और शशि कपूर जैसे स्टार थे लेकिन उस समय भी लोगो ने पागलपन नही दिखाया । आज हम सपने गढ़ रहे है और उसे पाने की कोशिश कर रहे हैं। कोई सार्थकता नही , कोई उद्देश्य नहीं। वह आपको अपनी फिल्मों में अभिनय से तो मोह रही है लेकिन इनके लटके झटके इनकी बेवजह की मार्केटिंग ही है जिसमे लोग पागल हुए जा रहे हैं । इनकी कलाकारी की कद्र कीजिये , में भी उनकी अभिनय क्षमता को सलाम करता हूँ लेकिन इस बहाने हो रहे इमोशनल अत्याचार से तो बचिए और शहर को भी जाम और पागलपन से बचाइए। यकीन मानिए वे कल्याण ( जेवेलर्स ) का कल्याण करेगी न कि आपका।

(वरिष्ठ पत्रकार योगेश किसलय के फेसबुक वॉल से साभार, ये लेखक के निजी विचार हैं)