यहां रहस्यमयी बीमारी से मर रहे हैं तेंदुए, निराश हुए भारत को चाहने वाले प्रकृति प्रेमी

देशभर के वैज्ञानिक हैरान हैं कि आखिर यहां तेंदुओं को कौन सी रहस्यमयी बीमारी हो गई है। दुनियाभर के वैज्ञानिकों में इस बात को लेकर हैरानी है।

New Delhi, Mar 15: तेंदुआ…जिसे जंगल का सबसे तेज शिकारी कहा जाता है। अब वो ही शिकारी खुद ही गंभीर रोगों का शिकार हो रहा है। जी हां बताया जा रहा है कि पहाड़ों में तेंदुआ एक रहस्यमयी बीमारी का शिकार हो रहा है। इस बीमारी की वजह से बेजुबान जानवर बेमौत मर रहे हैं, जिस वजह से दुनियाभर के वैज्ञानिक सोच में पड़ गए हैं कि आखिर ये क्या हो रहा है।

ये है मौत की वजह
जांच में पता चला है कि पर्वतीय क्षेत्र के जंगलों में तेंदुओं की मौत की बड़ी वजह श्वसन तंत्र का संक्रमण है। जी हां डॉक्टर्स का कहना है कि निमोनिया की वजह से यहां लगातार तेंदुए बेमौत मर रहे हैं। ये ग्राफ लगातार बढ़ रहा है, जहा इस पर एक नजर डालिए। इसी साल चार जनवरी को बागेश्वर के गैरखेत कपकोट में एक तेंदुए की मौत हो गई थी।

लगातार हो रही है मौत
इसके बाद 16 जनवरी को अल्मोड़ा के भेटुली ताकुला में एक और तेंदुए की मौत हो गई। इसके बाद पिथौरागढ़ के वर्षायत डीडीहाट में भी तेंदुए की मौत हो गई। ये तीन मौत तो सिर्फ बानगी भर हैं। अगर पूरे पर्वतीय इलाकों को छोड़ दें और रानीखेत डिवीजन की तरफ फोकस करें, तो साल 2014 में यहां आठ तेंदुए मौत के मुंह में समा गए थे।

ये है 2015 का आंकड़ा
इसके बाद रानीखेत डिवीजन में ही 2015 में सात तेंदुओं की मौत हो गई। जांच में पता कि सभी तेंदुओं की मौत की वजह ठंड और श्वसन तंत्र का संक्रमण रहा, यानी निमोनिया लगातार तेंदुओं की मौत की वजह बन रहा है। इसके अलावा गढ़वाल क्षेत्र की बात करें, तो यहां 2016 में नारायणबगढ़ में दो तेंदुओं की मौत हुई थी। इसी साल चमोली और रुद्रप्रयाग में भी दो-दो तेंदुओं की मौत हुई।

2016 में भी नहीं थमी मौत
रिपोर्ट कहती है कि साल 2016 में ही द्वाराहाट में दो और रानीखेत से कुछ दूर बणारसी गधेरे में एक निमोनियाग्रस्त गुलदार ने दम तोड़ दिया। यानी रिपोर्ट पर बारीकी से नजर डालें तो 2017 में भी 10 से ज्यादा गुलदार इस बीमारी की वजह से बेमौत मारे गए। लगातार पोस्टमार्टम रिपोर्ट सामने आ रही हैं और इनमें निमोनिया की ही पुष्टि हो रही है।

घट रहे हैं जंगल
वैज्ञानिक कहते हैं कि जंगल लगातार घट रहे हैं। इस वजह से जंगली जानवरों के सामने भोजन की समस्या पैदा हो रही है। जंगल का सबसे तेज शिकारी अब शिकार से पेट नहीं भर पा रहा है। इस वजह से तेंदुए की रोग प्रतिरोधक क्षमता लगातार घट रही है। वैज्ञानिक कहते हैं कि पेट खाली होने की वजह से तेंदुए निमोनिया से नहगीं लड़ पा रहे हैं।

वन्य जीव विशेषज्ञों ने बताई खास बात
वन्य जीव विशेषज्ञ कहते है कि पहाड़ में वन क्षेत्रों की स्थिति अब कुछ ज्यादा अच्छी नहीं रही। गुलदार के लिए वासस्थल के दायरे घट रहे हैं और जलस्रोत कम हो रहे हैं। जंगलों के दोहन से जलस्रोत लगभग सूख चुके। आबादी की ओर घुसपैठ करना अब वन्यजीवों की मजबूरी बन रहा है। इस वजह से तेंदुए इस रहस्यमयी बीमारी की चपेट में आ रहे हैं।