साम्प्रदायिकता का इंटरनेट कनेक्शन !

समाज में हर दिन बढ़ रही इस साम्प्रदायिकता ने मुझे अंदर तक हिलाकर रख दिया। इसे दूर करने के लिए मैंने एक वरिष्ठ से उपाय पूछा तो उन्होंने कहां, ये काम तो तुम खुद एक दिन में कर सकते हो।

New Delhi, Oct 22 : घर से निकला तो ये देखकर चौंक गया कि एक लड़की फोन पर बात कर रही है। इससे पहले मैंने कभी किसी लड़की को फोन पर बात करते नहीं देखा था। मुझे लगता था फोन का इस्तेमाल लड़कियां सिर्फ सेल्फी लेने के लिए करती है। बगल में ही एक सब्ज़ी की रेहड़ी पर एक मुस्लिम भाई लौकी खरीद रहा था। ये देखकर बेहद अफसोस हुआ कि आज साम्प्रदायिकता इतनी बढ़ गई है कि इन्हें लौकी खानी पड़ रही है। हमदर्दी के नाते मैंने आगे बढ़कर पूछा, भाईजान आप किसके दबाव में ऐसा कर रहे हैं। मुझे झिड़कते हुए वो बोले-क्या बक रह हैं आप। किसका दबाव होगा। मुझे लौकी पसंद है इसलिए खरीद रहा हूं।

थोड़ा और आगे बढ़ा, तो देखा ट्रैफिक सिग्नल पर ग्रीन लाइट के बाद आरेंज राइट होने पर एक शख्स रुकने के बजाए गाड़ी भगाकर ले गया। मैंने पीछा कर उसकी गाड़ी रोकी और डांटते हुए कहा, तुम जैसे लोगों की वजह से ही साम्प्रदायिकता बढ़ रही है। जब ऑरेंज लाइट हुई तो तुम्हें रुकना चाहिए था मगर तुम लोग तो भगवा को सम्मान ही नहीं देना चाहते। जब तक तुम सामने वाले का सम्मान नहीं करोगे तो वो तुम्हारा कैसे कर सकता है। मेरा इतना कहना था कि उसने अपनी जेब से एक् क्लिनिक का पता निकालकर दिया और मेरे कंधे पर हाथ रखते हुए मुझे भरोसा दिलाया कि अगर मैं एक हफ्ते तक पूरा ट्रीटमेंट लूं तो पूरी तरह ठीक हो जाऊंगा।

इस गंभीर स्थिति पर बात करने के लिए मैंने सामने से बाइक पर आ रहे एक युवक को रोकना चाहा। मगर उसकी जल्दी देखकर लग रहा था कि वो भी सरकार के विरोध में अपना राशनकार्ड या आधारकार्ड लौटाने जा रहा है।

समाज में हर दिन बढ़ रही इस साम्प्रदायिकता ने मुझे अंदर तक हिलाकर रख दिया। इसे दूर करने के लिए मैंने एक वरिष्ठ से उपाय पूछा तो उन्होंने कहां, ये काम तो तुम खुद एक दिन में कर सकते हो। तुम आज ही अपना इंटरनेट कनेक्शन कटवा दो। अगले दो दिन फेसबुक पर न बैठो। न खुद लिखोगे और न किसी का लिखा पढ़ पाओगे। और तुम महसूस करोगे कि समाज में पुराना भाईचारा और मोहब्बत आहिस्ता-आहिस्ता फिर से लौट आई है!

(वरिष्ठ पत्रकार नीरज बधवार के फेसबुक वॉल से साभार, ये लेखक के निजी विचार हैं)