यूपीए पर भारी न पड़ जाये तीसरा मोर्चा

सबसे बड़ा सवाल यह है कि अगर तीसरा मोर्चा बन गया और कांग्रेस अपने अंतर्विरोध और सुस्ती में ही उलझी रही तो इसका नतीजा क्या होगा ?

New Delhi, Jul 02 : कर्नाटक में सरकार बना कर और उप चुनावों में भाजपा को धूल चटा कर यूपीए ने संकेत दिया था कि वह जल्द संयुक्त विपक्ष का ऐसा मोर्चा बनायेगी जो 2019 में कांग्रेस के लिए सरदर्द साबित होगी. कुछ दिनों तक इसको लेकर उत्साह का माहौल भी रहा. मगर इन दिनों यूपीए अपनी चिरपरिचत सुस्ती में डूबी है और संयुक्त विपक्ष के बदले तीसरा मोर्चा आकार लेने लगा है.

वैसे तो तीसरा मोर्चा भारतीय राजनीति की ऐसी परंपरा है, जो हर बड़े चुनाव के वक्त फुनगियां छोड़ने लगती है. मगर जहां अब तक तीसरा मोर्चा बनाने का जिम्मा यूपी और बिहार के समाजवादी नेताओं का रहा था, इस बार यह कवायद दक्षिण से शुरू हो रही है. तमिलनाडु, आंध्रप्रदेश, केरल के राजनीतिक दलों के लिए भाजपा आज भी उतनी बड़ी चुनौती नहीं है. ओड़िशा और बंगाल की सत्ताधारी पार्टियां भाजपा की ताकत को जरूर महसूस कर रही है, मगर वे इसके लिए कांग्रेस के साथ जाने के लिए तैयार नहीं है. जबकि कर्नाटक में कांग्रेस के साथ सरकार बना चुकी जेडीएस के नेता देवैगोड़ा को 2019 में फिर से अपने लिए संभावना नजर आ रही है. और उन्हें दिल्ली के केजरीवाल भी स्वाभाविक सहयोगी लग रहे हैं.

तो इस तरह द्रमुक, अन्नाद्रमुक, केरल की पार्टियां, तेलगू देशम, जद एस, तृणमूल कांग्रेस, बीजू जनता दल जैसी पार्टियां तीसरे मोर्चे की तैयारी में जुटी है. केजरीवाल इनके स्वाभाविक सहयोगी हो सकते हैं. जबकि यूपीए का फोकस अभी यूपी और बिहार में ही है. यूपी में सपा और बसपा जरूर साथ आ गये हैं. बिहार में कांग्रेस की पसंद जदयू है और राजद किसी भी सूरत में जदयू को इस गठजोड़ में शामिल नहीं करना चाहती. कांग्रेस अभी यूपी-बिहार के मामलों से ही उबर नहीं पा रही इस मुकाबले में तीसरा मोर्चा कहीं अधिक एकजुट होता नजर आ रहा है. इनके बीच आपस में कंफ्यूजन भी कम है.

महाराष्ट्र में शिवसेना और राकांपा दोनों भाजपा के विरोध में है, मगर क्या दोनों एक साथ किसी गठबंधन का हिस्सा बन सकती हैं, यह बड़ा सवाल है. मगर सबसे बड़ा सवाल यह है कि अगर तीसरा मोर्चा बन गया और कांग्रेस अपने अंतर्विरोध और सुस्ती में ही उलझी रही तो इसका नतीजा क्या होगा. जानकार मानते हैं कि त्रिकोणीय मुकाबले का लाभ हर हाल में भाजपा को होगा. भाजपा को हराना है तो आमने-सामने की ही लड़ाई लड़नी होगी. मगर क्या यूपीए तीसरा मोर्चा बनाने में जुटी पार्टियों को कंविंस कर पायेगा कि सभी लोग एक धड़े में आकर खड़े हों. यह भी लाख टके का सवाल है.

(वरिष्ठ पत्रकार पुष्य मित्र के ब्लॉग से साभार, ये लेखक के निजी विचार हैं)