‘राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ एक ऐसा संगठन रहा है और कभी किसी बात की जिम्मेदारी नहीं लेता है’

संघ प्रमुख ने कहा था– बुद्धिजीवियों का समाज पर कोई असर नहीं होता है। समाज उन लोगों के पीछे चलता है जो आम आदमी से थोड़े से उपर होते हैं।

New Delhi, Sep 19 : संघ प्रमुख के हाल के दिनों में दिये गये किसी भी बयान को मैं गंभीरता से लेने को तैयार नहीं हूं। वजहें नीचे हैं–
1. भागवत ने कहा– देश की विविधता को सेलिब्रेट किया जाना चाहिए। अगर इस देश में मुसलमानों के लिए जगह नहीं है तो इसका मतलब यह है कि हिंदुत्व भी नहीं है। मैं इस बयान को गंभीरता से लेता, अगर भागवत जी कहते कि मैने यह बात विश्व हिंदू परिषद और बजरंग दल जैसे अपने अनुषंगी संगठनों को समझा दी है और वे मेरी बात पर अमल करेंगे। यह बयान वैसा ही जैसे उनके पट शिष्य मोदी ने कहा था– मैं एक हाथ में कुरान और दूसरे में कंप्यूटर देखना चाहता हूं। उसके बाद राष्ट्रीय लिचिंग महोत्सव शुरू हुआ था।

2. भागवत जी ने कहा– कांग्रेस ने देश को बहुत से महापुरुष दिये। उन्हे बताना चाहिए था कि वे कौन से कांग्रेसियों को महापुरुष मानते हैं और किन्हे नहीं। आज़ादी की लड़ाई कांग्रेस की भूमिका की भागवत जी ने सराहना की। अगर नहीं भी करते तो क्या फर्क पड़ता? मैं उनके बयान को गंभीरता से तब लेता जब वे आजादी के आंदोलन में अपने संगठन की भूमिका पर प्रकाश डालते।
3. अमेरिका में दस दिन पहले दिये गये भागवत जी के भाषण में गीर वन का शेर जंगली कुत्तों से घिरा था। आखिर दस दिन में ह्रदय परिवर्तन कहां से हो गया? ऐसी मीठी बानी प्रधानमंत्री मोदी समेत सभी प्रचारक समय और ज़रूरत के हिसाब बोलते आये हैं।

4. भागवत जी ने कहा– आरएसएस का राजनीति से कोई लेना-देना नहीं है। केशव कुंज में मौजूदा सरकार के केंद्रीय मंत्री लाइन लगाकर पावर प्वाइंट प्रेजेंटशन दे चुके हैं। ऐसे में संघ के राजनीतिक या गैर-राजनीतिक होने पर कोई बहस वक्त की बर्बादी है।
5. अलग-अलग मुद्धों पर संघ प्रमुख के नये-पुराने बयान मिलाकर देख लीजिये। आपको संविधान की जय-जयकार भी मिलेगी और हिंदू राष्ट्र भी मिलेगा। विश्व शांति मिलेगी और बाबुबल से दोबारा अंखड भारत बनाने का संकल्प भी। आधुनिक समाज की वकालत भी मिलेगी और इस बात की दलील भी की अगर पत्नी अपने पति की इच्छाएं पूरी ना करे तो उसे छोड़ देना चाहिए। आपको जो अच्छा लगता हो अपने हिसाब से चुन लीजिये।

6. ऐतिहासिक रूप से संघ एक ऐसा संगठन रहा है और कभी किसी बात की जिम्मेदारी नहीं लेता है। राम-मंदिर आंदोलन इसका सबसे बड़ा उदाहरण है। बाबरी मस्जिद गिरी तो वाजपेयी और आडवाणी समेत संघ दीक्षित सभी नेताओं ने कहा– उन्मादी लोगो की भीड़ ने ढांचे को गिरा दिया, हमें इसका दुख है। भीड़ में उन्माद भरने वाले आडवाणी की नैतिकता की सीमा थी या उनकी चालाकी जिसपर समर्थक मुदित होते हैं, इस बात पर भी बहस का भी कोई फायदा नहीं है।
6. संघ हमेशा से अलग-अलग चेहरे रखता आया है। इसके नेता संवाद नहीं करते बल्कि प्रवचन देते हैं। देश के प्रधानमंत्री भी अब केवल प्रवचन देते हैं, सवालों के जवाब नहीं। इसलिए व्याख्या आप अपनी ज़रूरत, समझ और सुविधा के हिसाब से कर सकते हैं। भागवत जी के किसी भी बयान में कुछ नया नहीं है। अलबत्ता पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी के संघ मुख्यालय के कार्यक्रम में भागवत ने जो कहा था, उसे मैं गंभीरता से ज़रूर लेता हूं।
7. संघ प्रमुख ने कहा था– बुद्धिजीवियों का समाज पर कोई असर नहीं होता है। समाज उन लोगों के पीछे चलता है जो आम आदमी से थोड़े से उपर होते हैं। आम आदमी से थोड़ा उपर वाला आदमी ही संघ की असली ताकत है। भागवत जी ने ठीक कहा कि हम मुक्त नहीं युक्त भारत चाहते हैं। सरकारी कर्मचारी और अध्यापक से लेकर दुकानदार तक भागवत जी के` युक्त भारत’ के लोग हर गली, हर मुहल्ले नहीं बल्कि हर घर में हैं। यही लोग असली ओपिनयन मेकर हैं।

(वरिष्ठ पत्रकार राकेश कायस्थ के फेसबुक वॉल से साभार, ये लेखक के निजी विचार हैं)