“धर्म के आधार पर लड़ने से रुका एक दिन का प्रदूषण”

एक दिन की आतिशबाजी से लाखों लोगों को रोजगार मिलता है। उनका धंधा चलता है पर उन गरीबों की चिन्ता किसी को नहीं है।

New Delhi, Nov 10 : दीवाली पर पटाखे मत चलाइए, होली पर पानी मत बर्बाद कीजिए, बकरीद पर कुर्बानी मत दीजिए। धर्म के नाम पर लड़िए-लड़ाइए और इसी का नतीजा है कि एक दिन का प्रदूषण रोक दीजिए। पूरे साल वाले पर आंखें मूंदे रहिए। ऑड ईवन का विरोध कीजिए, मजाक उड़ाइए। दिल्ली में मेट्रो का किराया नहीं बढ़ाने की दिल्ली सरकार की अपील के बावजूद किराया बढ़ा दिया गया। बदले में मोरसाइकिल मेट्रो से सस्ती है।

एक दिन की आतिशबाजी से लाखों लोगों को रोजगार मिलता है। उनका धंधा चलता है पर उन गरीबों की चिन्ता किसी को नहीं है। दूसरी ओर, प्रदूषण कम करने के लिए 15 साल से पुरानी गाड़ियां नहीं चलने दी जाएंगी तो फायदा गाड़ी बनाने वालों को ही होगा। बसों का किराया और माल भाड़ा बढ़ जाएगा। 365 दिन के प्रदूषण पर एक दिन का प्रदूषण यूं ही भारी नहीं हो गया है। यह हिन्दू – मुस्लिम को लड़ाने का नतीजा है। आप कहेंगे कुर्बानी बंद हो तो प्रदूषण और बर्बादी रोकने की मांग भी होगी ही। मुझे नहीं पता ऐसी मांग के पीछे कौन है। यह मांग राजनीतिक है या स्वतःस्फूर्त पर सच यही है कि मांग पूरी हो रही है। बचपन में हमलोग सुनते थे कि भविष्य में ये हो जाएगा, वो हो जाएगा। पर ये कभी नहीं सुना कि होली बिना पानी के या दीवाली बिना पटाखों के हो जाएगी। मैं नहीं मानता एक दिन का प्रदूषण इतना ज्यादा है कि इसे रोकने की जरूरत हो।

रोकना ही हो तो बहुत सारी रोक के बाद दीवाली में पटाखों पर प्रतिबंध का नंबर आना था। पर यह अपेक्षाकृत जल्दी आया तो आपसी लड़ाई के कारण। नेताओं के लिए यह आसान भी है और इसमें वे काम करते दिखते भी हैं। पटाखा बनाने वालों के मुकाबले रिश्वत हो या चंदा – कार बनाने वाले ज्यादा देंगे। आसानी से देंगे। आप हिन्दू मुसलमान कीजिए। उनके बहकाने में ही बह जाइए। वो पटाखा प्रदूषण करके पैसे कमाएंगे। चैन भी पाएंगे। रोकने के लिए डीजल गाड़ियों पर कार्रवाई हो रही है। 15 साल से पुरानी गाड़ियां जब्त हो रही हैं। 25-30 साल पहले दिल्ली की सड़कों पर डीजल गाड़ियां कम होती थीं। पेट्रोल पंपों पर डीजल नहीं मिलता था और डीटीसी की डीजल बसों का अपना पंप था। फिर जरूरत के अनुसार सार्वजनिक परिवहन का विकास नहीं हुआ। निजी बसें चलाई गईं और गाड़ियों की बिक्री बढ़ाने के हर संभव उपाय किए गए।

सही-गलत सब!
यहां तक कि गाड़ियों से प्रदूषण कम करने के लिए ऑड ईवन की बात आई तो विकल्प यह बताया गया कि लोग दो गाड़ियां रख लेंगे। गाड़ियां बन रही हैं, बिक रही हैं और अब तो ओला उबर रेडियो टैक्सी की भरमार है। साल के 365 और सप्ताह के सातो दिन, रोज 24 घंटे चलने वाले इन प्रदूषणों पर कार्रवाई नहीं हो सकती। इन्हें एक दिन रोकने का उपाय नहीं हो सकता है और साल में एक दिन की जाने वाली आतिशबाजी पर रोक। मैं नहीं कह रहा कि रोक गलत है पर यह पर्याप्त नहीं है। बाकी के उपाय कौन करेगा? कैसे होगा? सब कुछ सुप्रीम कोर्ट करे। या जो सुप्रीम कोर्ट करे वही होगा। बाकी कुछ नहीं? मैं चकित हूं कि मस्जिद के लाउडस्पीकर पर एतराज करने वाले आतिशबाजी पर रोक को भी स्वीकार कर ले रहे हैं। आज जिसे प्रदूषण कहा जा रहा है उसके बारे में तो यही कहा जाता रहा है कि इससे कीड़े मकौड़े मरते हैं और यह जरूरी होता था। अब यह बदलाव। मेरा मानना है कि राजनीतिकों ने समझा दिया है।”

(संजय कुमार सिंह के फेसबुक वॉल से साभार, ये लेखक के निजी विचार हैं)