इंदिरा गांधी हार कर भी हीरो रहीं

ये इंदिरा जी का ही कमाल था जो पिछड़ी जातियां पैसे के मामले में इतनी संपन्न हो गईं कि नौकरियों में आरक्षण की मांग करने लगीं तथा उसे पाया भी।

New Delhi, Oct 31 : आज से 34 साल पहले मैं दिल्ली में था। ठीक 11 बजे एक्सप्रेस बिल्डिंग पहुंच कर अपने कागज-पत्तर मेज पर रखे ही थे कि केबिन के बाहर से कुछ लोगों की जोर-जोर की आवाजें आने लगीं। भागकर अपने केबिन से बाहर आया। देखा जार्ज वर्गीज के कमरे के बाहर भीड़ लगी है। मैने एक से पूछा क्या हुआ तो उसने बताया कि इंदिरा गांधी को गोली मार दी गई है। आवाक रह गया। कभी सोचा नहीं जा सकता था कि इंदिरा गांधी जैसी शख्सियत को कोई मार सकता है। असीम शक्ति थी उनके पास और उनकी लोकप्रियता व उनका इकबाल ऐसा कि चाहे कोई आए इंदिरा गांधी के बगैर प्रधानमंत्री के पद की कल्पना नहीं की जा सकती थी। मैने तो जब से पढऩा शुरू किया था और नौकरी भी कर ली बस रेडियो में यही सुनते आ रहे थे और हर रोज अखबारों में यही पढ़ते आ रहे थे कि प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी ने कहा…..!

हम भूल ही गए थे कि इंदिरा गांधी के अलावा कोई पीएम बन भी सकता है। उन्होंने प्रीवीपर्स समाप्त किया और हजारों-हजार राजे रजवाड़ों, ठाकरों तथा सामंती मानसिकता वाले लोगों को अपना दुश्मन बनाया पर किसी में हिम्मत नहीं थी कि उनके सामने खड़ा हो सके। उन्होंने एक झटके में बैंकों का राष्ट्रीयकरण कर दिया और सारे जमे-जमाए मंझोले किस्म के पूंजीपति ढेर कर दिए।

उन्होंने पंजाब से भिडरांवाले का आतंक जड़ से खत्म कर दिया। और बता दिया कि इंदिरा गांधी के लिए सारे धर्मावलंबी समान हैं। उन्होंने गरीबी हटाओ का नारा दिया और इसी का प्रतिफलन था कि गांवों में पिछड़ी जातियों को उपज का वाजिब मूल्य मिला तथा वे स्वयं अपनी उपज शहर जाकर बेचने लगे।

यह इंदिरा जी का ही कमाल था जो पिछड़ी जातियां पैसे के मामले में इतनी संपन्न हो गईं कि नौकरियों में आरक्षण की मांग करने लगीं तथा उसे पाया भी। आज दलित अगर सत्ता तक पहुंच पाए तो इंदिरा गांधी के गरीबी हटाओ अभियान के तहत ही। अगर कोई चाय वाला आज पीएम की कुर्सी तक पहुंचने का दावा करता है तो निश्चित तौर पर इसका श्रेय इंदिरा गांधी को जाना चाहिए क्योंकि गरीब आदमियों को वाणी देने का काम इंदिरा जी ने किया था। इंदिरा जी को देखने के लिए लोग व्यग्र हो जाते थे। वे हार कर भी हीरो रहीं और जीतने के बाद तो खैर हीरो थी हीं। ऐसी हीरो की पुण्य तिथि पर उन्हें मेरा प्रणाम।

(वरिष्ठ पत्रकार शंभुनाथ शुक्ल के फेसबुक वॉल से साभार, ये लेखक के निजी विचार हैं)