गले मिल कर गले पड़ना, ये सब बातें भाजपा के रणनीतिकारों को तंग किये हुए हैं

राहुल गांधी भाजपा को चारो तरफ से घेर रहे हैं. कांग्रेस के रणनीतिकार राफेल लड़ाकू विमान सौदे में प्रधानमंत्री पर भी हमला बोलने लगे हैं।

New Delhi, Jul 28 : हालाँकि मोदी सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव कांग्रेस नहीं लाई थी, पर इस प्रस्ताव के समर्थन में वह थी. इसीलिए कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने अपने भाषण से यह ज़ाहिर कर दिया कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को उन्हीं की तर्ज़ पर जवाब देने का साहस उनमें है. और अब वह राहुल नहीं हैं, जिन्हें भाजपा पप्पू बताकर खारिज़ करती रही है. यद्यपि यह अविश्वास प्रस्ताव 126 के मुकाबले 325 वोटों से गिरा और मोदी सरकार जीत गई, लेकिन इस सरकार के लिए अब आने वाले दिन इतने आसान नहीं रहेंगे, यह कांग्रेस ने जता दिया है. तेलगू देशम पार्टी यह अविश्वास प्रस्ताव लाई थी. पर इसमें लीड कांग्रेस ने ली. कहना चाहिए कि कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के गले मिल कर गले पड़ गए. अकाली दल की तरफ से केंद्र में मंत्री सिमरनजीत कौर बादल कितना भी इस गले मिलने को असंसदीय बताएं, लेकिन जनता के बीच एक मेसेज तो चला ही गया कि राहुल गाँधी ने यह जता दिया है कि घृणा, नफ़रत और बांटने वाली राजनीति से प्यार की राजनीति सदैव भरी होती है.

इसमें कोई शक नहीं कि राहुल अब एकदम घाघ राजनेता बनने लगा हैं. जिस किसी ने भी उनको ट्रेंड किया हो, लेकिन उनका संसद में हाथ झटका कर बोलना और अपनी बात को दृढ़तापूर्वक रखना, उनकी नई शैली का अनूठा अंदाज़ है. इसलिए भले सत्तारूढ़ भाजपा ने अविश्वास प्रस्ताव को गिरा दिया हो, लेकिन यह जाता भी दिया कि राहुल में नेतृत्त्व के पूरे गुण हैं. इस अविश्वास प्रस्ताव के विरोध में 325 वोट पड़े जबकि इसके पक्ष में महज 126 ही वोट ही पड़े. इस प्रस्ताव पर कुल 451 सदस्यों ने वोट डाले. वोटिंग से पहले भाजपा की सहयोगी पार्टी रही शिवसेना और बीजू जनता दल ने वोटिंग का बहिष्कार कर दिया. वहीं बिहार के सांसद पप्पू यादव ने सदन का वाकआउट कर दिया. इस अविश्वास प्रस्ताव के दौरान भाजपा को एक झटका तब लगा, जब उसने अपनी पुराणी सहयोगी पार्टी शिवसेना को अपने से दूर कर लिया. भले भाजपा खुश हो कि शिवसेना खोई तो क्या हुआ! आल इंडिया अन्ना द्रमुक कडगम (एआईएडीएमके) के रूप में उसने एक नया साथी तलाश लिया है, जो तमिलनाडु में उसका खता खोलने में सहायक होगा. लेकिन जय ललिता की मृत्यु से एआईएडीएमके वैसे ही पस्त पड़ी है. वह भला भाजपा को क्या उबारेगी!

इस अविश्वास प्रस्ताव के गिर जाने से यकीनन भाजपा के नेता गदगद हैं. पर अन्दर ही अन्दर वे सहम भी गए हैं. सबको लगाने लगा है कि 2019 का समर जीतना अब 2014 जैसा सहज और सुगम नहीं है. इसकी कई वज़हें हैं, एक तो तेलगू देशम पार्टी भाजपा गठबंधन से बाहर हो गई है. दूसरे एआईएडीएमके का भविष्य अब पहले जैसा उज्जवल नहीं रहा है. बीजू जनता दल और शिवसेना भी गठबंधन के साथ शायद नहीं रहें. तब अकेले हिंदी भाषी प्रान्तों के भरोसे रहकर चुनाव में उतरना जोखिम भरा है. इसके अलावा कांग्रेस की तरफ से उसके अध्यक्ष राहुल गाँधी का भाषण भी भाजपा को सांसत में डालने वाला रहा. पहली बार लगा कि राहुल गाँधी में कूवत है, उनका भाषण देने का अंदाज़ थोड़ा हट कर था. ऐसा लग रहा था कि पूर्व प्रधानमंत्री अटलबिहारी बाजपेई की भाषण शैली को उन्होंने सप्रयास सीखा है. ख़ास बात तो यह रही कि राहुल ने भाजपा पर तंज़ कसते हुए कहा कि “आप लोग मुझे पप्पू कहते हैं. हाँ, मैं पप्पू हूँ, मगर ऐसा पप्पू जो नफ़रत नहीं प्यार बाँटता है.” राहुल गाँधी अपने भाषण के बाद अपनी सीट से उठ कर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के पास गए और उनसे लिपट कर गले मिले. भले यह ‘भरत-मिलाप’ नौटंकी प्रतीत हुआ हो, किन्तु आम भारतीय जन-मानस में यह एक अच्छा संकेत था.

ये सब बातें भाजपा के रणनीतिकारों को तंग किये हुए हैं. अभी तक भाजपा मान रही थी कि उसके नेता नरेंद्र मोदी के समक्ष जो भी विकल्प हैं, वे बहुत ही कमजोर हैं, और मोदी की आंच वे सहन नहीं कर पायेंगे. पर इस बार राहुल गांधी के प्रदर्शन से वे हैरान हैं. जिस व्यक्ति को वे ‘बच्चा’ या ‘पप्पू’ समझ रहे थे, वही भारी पड़ने लगा. और अगर वे राहुल की उड़ान नहीं रोक पाए, तो मुश्किल होगी. दिक्कत यह है कि भाजपा के रणनीतिकारों के पास कोई राजनीतिक प्लान नहीं है. सिवाय भावनात्मक मुद्दों, अतीत के अत्याचारों के विशद वर्णन के उनके पास कुछ नहीं है. इसलिए आशंका है कि भाजपा राष्ट्रवाद के नाम पर भावनाएं भड़काने अथवा हिंदू-मुस्लिम कार्ड खेलने का दांव ही चलेगी, क्योंकि उनके पास यह एक ऐसा धोबीपाट है, जिसकी काट किसी के पास नहीं है. भाजपा समझ रही है कि यदि उत्तर प्रदेश में सपा-बसपा ने मिलकर अगला लोकसभा चुनाव लड़ा तो उसका हश्र 2009 सरीखा हो जाएगा, इसलिए वह इन्हें न मिलने देने के लिए प्रयासरत रहेगी.

इसके अलावा राहुल गांधी भाजपा को चारो तरफ से घेर रहे हैं. कांग्रेस के रणनीतिकार राफेल लड़ाकू विमान सौदे में प्रधानमंत्री पर भी हमला बोलने लगे हैं. इस सौदे पर भाजपा सरकार को बुरी तरह से घेर लिया गया है. राहुल गांधी ने सीधे-सीधे प्रधानमंत्री को ही कठघरे में खड़ा कर दिया. उन्होंने प्रधानमंत्री को चौकीदार नहीं इस सौदे में भागीदार बताया. इससे भाजपा नेता बुरी तरह बिफर गए. रक्षा मंत्री निर्मला सीतारमण ने कहा कि यह सौदा तो प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के कार्यकाल में रक्षा मंत्री एके एंटोनी ने किया था, पर जब कांग्रेस ने पलटवार किया तो भाजपा चुप साध गयी. दरअसल अविश्वास प्रस्ताव के दौरान हुई बहस में 20 जुलाई को राहुल गांधी ने राफेल लड़ाकू विमान सौदे में विमान की कीमत को लेकर बरती जाने वाली गोपनीयता पर सवालिया निशान लगा दिया. और उन्होंने रक्षा मंत्री निर्मला सीतारमण और प्रधानमंत्री पर गंभीर आरोप लगा दिए. राहुल ने कहा था कि इस राफेल विमान सौदे के जरिए एक कारोबारी को फायदा पहुंचाया जा रहा है. मोदी सरकार ने राफेल सौदे की कीमतों के बारे में गलत जानकारी देने वाले कांग्रेस के आरोपों को नकार दिया. केंद्रीय मंत्री रविशंकर प्रसाद ने बताया कि 2011 में कांग्रेस के शासन में हुई डील में एक राफेल जेट की कीमत 813 करोड़ रुपए रखी गई थी. जबकि 2016 में हमारी सरकार के दौरान हुए समझौते में इसकी कीमत 739 करोड़ रुपए तय हुई. जो यूपीए सरकार की कुल कीमत से 9 प्रतिशत कम है, इससे हर विमान पर 67 करोड़ रुपए की बचत होगी.

इसके बाद से ही भाजपा रक्षात्मक हो गई. रविशंकर प्रसाद ने 23 जुलाई को ट्विटर पर कहा, “एके एंटनी आठ साल तक देश के रक्षामंत्री थे, वे देश के रक्षा क्षेत्रों से जुड़े संवेदनशील मुद्दों को समझते हैं. लेकिन जब एक पार्टी किसी परिवार के चारो तरफ चौकड़ी बना लेती है तो सभी नेता भीड़-तंत्र का हिस्सा बन जाते हैं. 2004 से 2014 तक कांग्रेस की सरकार भ्रष्टाचार से ग्रस्त थी. आज हम ईमानदारी से काम कर रहे हैं और देश विश्व की बड़ी अर्थ-व्यवस्था बन रही है, तब राहुल ने राफेल डील के बारे में लोकसभा में झूठ बोला. फ्रांस के राष्ट्रपति से बातचीत को लेकर बोले गए झूठ ने तो मनमोहन सिंह और आनंद शर्मा को भी कठघरे में खड़ा कर दिया है. राहुल को देश की संवेदनशील मुद्दों की कितनी समझ हैं? यह जनता समझ गई है.”

भाजपा अब कांग्रेस के विरुद्ध विशेषाधिकार हनन का प्रस्ताव लाने के मूड में है. भाजपा सांसद निशिकांत दुबे, अनुराग ठाकुर, दुष्यंत सिंह और प्रह्लाद जोशी ने इसमें पहल की है. सोमवार 23 जुलाई को प्रश्नकाल के फौरन निशिकांत दुबे ने यह विशेषाधिकार का नोटिस दिया. उन्होंने कहा- राहुल गांधी जब भी बोलते हैं तो इससे केवल भारतीय जनता पार्टी के वोट बैंक में बढ़ोत्तरी होती है. कांग्रेस सदस्यों के विरोधी स्वरों के बीच लोकसभा अध्यक्ष सुमित्र महाजन ने कहा कि “मैं इस बारे में विचार करूंगी, इसके बाद आपको फैसले की जानकारी दे दी जाएगी” मगर इसमें शक नहीं कि भाजपा शायद चार साल बाद इस तरह रक्षात्मक हुई है. और पहली बार खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को भी लगा है कि अगला समर मुश्किल होगा.”

(वरिष्ठ पत्रकार शंभुनाथ शुक्ल के फेसबुक वॉल से साभार, ये लेखक के निजी विचार हैं)