धन्यवाद सुप्रीम कोर्ट, लोकतंत्र में विरोध के अधिकार को सम्मान दिया

बोट क्लब को बंद तब किया गया था जब महेंद्र सिंह टिकैत अपने समर्थकों के साथ वहां कई हफ्तों के लिए जम गए थे जबकि उन्होंने पुलिस को केवल यह बताया था कि केवल एक सभा के लिए आ रहे थे . महीने भर के करीब वे वहां जमे रहे थे।

New Delhi, Jul 24 : जंतर मंतर को सुप्रीम कोर्ट ने फिर धरना प्रदर्शन के लिए खोल दिया है . इसके पहले एक सरकारी आदेश के मुताबिक़ वह बंद कर दिया गया था और आदेश दे दिया गया था कि सरकार से विरोध प्रदर्शन करने के लिए लोग तुर्कमान गेट के पास ,रामलीला मैदान का प्रयोग करें. जन्तर मंतर को खोलने के साथ साथ माननीय सुप्रीम कोर्ट ने बोट क्लब को भी लोकतंत्र के महत्वपूर्ण हथियार, सार्वजनिक सभा, धरना और प्रदर्शन के लिए खोल दिया है .

बोट क्लब को बंद तब किया गया था जब महेंद्र सिंह टिकैत अपने समर्थकों के साथ वहां कई हफ्तों के लिए जम गए थे जबकि उन्होंने पुलिस को केवल यह बताया था कि केवल एक सभा के लिए आ रहे थे . महीने भर के करीब वे वहां जमे रहे थे . बोट क्लब के नाम कुछ ऐसी भी रैलियाँ लिखी हुयी हैं जिनके बाद दिल्ली में सत्ता परिवर्तन हुआ था. १९७५ में जब सारा देश इंदिरा गांधी के खिलाफ हो गया था लेकिन उनको मुगालता था कि वे ‘ गरीबी हटाओ ‘ वाले नारे के बाद मिली लोकप्रियता बचाए हुए हैं, उसी माहौल में वहां जयप्रकाश नारायण की सभा हुयी थी .यह इमरजेंसी के पहले की घटना है . उसके बाद इंदिरा गांधी को समझ में आया कि जनता उनको नापसंद करने लगी है . घबडाई इंदिरा गांधी ने उसके बाद ही इमरजेंसी लगाई थी. मैंने वह जुलूस देखा नहीं था लेकिन बीबीसी हिंदी रेडियो पर मार्क टली की रिपोर्ट सुनी थी. लंदन से रत्नाकर भारतीय ने बहुत ही प्रभावशाली तरीक़े से उसको हिंदी सर्विस के लिए पढ़ा था. बेहतरीन रिपोर्ट थी , आजतक उसके कुछ नारे याद हैं . हम लोग ‘इन्कलाब जिंदाबाद ‘ का नारा लगाते थे . अपने गाँव में बैठे हुए मैंने जब बीबीसी पर सुना,” इन्कलाब जिंदाबाद,जिंदाबाद “ तो मुझे बहुत अच्छा लगा था . आडियो रिपोर्ट में नारों के पैच जिस तरह से लगाये गए थे ,वह बहुत ही रोमांचक था.

बोट क्लब पर ही १९६६ में स्वामी करपात्री जी ने गौ रक्षा वाला जुलूस निकाला था और रैली की थी. तब तक जनसंघ को दिल्ली के अलावा कहीं भी मान्यता नहीं मिली थी लेकिन गौरक्षा के बोट क्लब वाले प्रदर्शन के बाद जनसंघ के कार्यकर्ता पूरे देश में मिलने लगे. मेरे खानदान की नौगवां शाखा की इंदिरा फुआ भी उस जुलूस में आयी थीं , साध्वी हो गयी थीं, शायद करपात्री जी की ही शिष्या थीं, उनके बाद हमारे यहाँ भी जनसंघ के उम्मीदवार का प्रचार हुआ और १९६७ के चुनाव में उदय प्रताप सिंह दूसरे नम्बर पर आये . उसके पहले सोशलिस्ट दूसरे नंबर पर रहते थे. कांग्रेस के उमादत्त ने विधायक का चुनाव जीता था. उसी साल लोकसभा चुनाव में जनसंघ के बाबू बेचू सिंह की भी उपस्थिति दर्ज हुयी .

उत्तर प्रदेश विधानसभा में जनसंघ को ९८ सीटें मिली थीं और पार्टी के नेताओं ने खुशियाँ मनाई थीं.
बोट क्लब पर ही चरण सिंह की जन्मदिन वाली सभा १९७८ में हुयी थी . उसके बाद मोरारजी देसाई की सरकार की अलविदा पढ़ दी गयी थी. दर असल चौधरी चरण सिंह कभी जन्मदिन नहीं मनाते थे लेकिन उस बार वह कार्यक्रम रच दिया गया था क्योंकि वे ही जनता पार्टी में तोड़फोड़ के साधन बने थे. राजनारायण उन दिनों अपने को उनका हनुमान कहते फिरते थे.
जन्तर मन्तर पर तो मैंने अपनी आँखों से बहुत सारे धरने जुलूस देखे हैं . कुछ लोग तो उस स्थान पर महीनों पड़े रहते थे और रिकार्ड बनाते थे . अगर वहां जम जाने की प्रवृत्ति पर लगाम लगाई जा सके तो जंतर मंतर विरोध प्रदर्शन के लिए सही जगह है. धन्यवाद सुप्रीम कोर्ट .

(वरिष्ठ पत्रकार शेष नारायण सिंह के फेसबुक वॉल से साभार, ये लेखक के निजी विचार हैं)