पैसे तो कई लोगों के पास होते हैं, पर उदारता कम ही लोगों में आ पाती है

विनोद खन्ना शत्रुघ्न सिन्हा के पास गए। मदद मांगी। मित्र ने मात्र 5 हजार रुपए दिए। खन्ना भीतर -भीतर दुःखी हो गए। 

New Delhi, Mar 20 : पैसे तो कई लोगों के पास होते हैं। पर उदारता कम ही लोगों में आ पाती है। एक तरफ सिंघानिया परिवार की कहानी छपती रहती है। बाप -बेटे में संपत्ति को लेकर मुकदमेबाजी चल रही है। दूसरी ओर, आज के अखबारों में यह खबर आई कि सिनियर अंबानी यानी बड़े भाई ने जूनियर अंबानी यानी अनुज को पैसे देकर कानूनी जाल से बचा लिया।
इस तरह की एक तुलना दो नामी -गिरामी बिहारियों के बीच भी की जा सकती है।

उनमें एक तो ‘बिहारी बाबू’ ही हैं-पूर्व केंद्रीय मंत्री व लोक सभा सदस्य-अपने शतरू भैया ! दूसरे हैं राज्य सभा के सदस्य और कभी के तेजाबी पत्रकार आर.के.सिन्हा यानी रवीन्द्र किशोर। इन दोनों का अलग -अलग प्रशंसक वर्ग भी है। दोनों बुद्धि और प्रतिभा से बहुत आगे बढ़े।
पर शत्रुघ्न सिन्हा जितने मितव्ययी, आर.के.सिन्हा उतने ही उदार। किसी फिल्मी पत्रिका में कुछ दशक पहले विनोद खन्ना का एक इंटरव्यू पढ़ा था। कभी बिहारी बाबू के गहरे दोस्त रहे खन्ना कुछ साल के लिए रजनीश के आश्रम में बस गए थे। पर फिल्मी दुनिया में जब एक बार फिर लौट कर आए तो उनके पास पैसे नहीं थे।

वे शत्रुघ्न सिन्हा के पास गए। मदद मांगी। मित्र ने मात्र 5 हजार रुपए दिए। खन्ना भीतर -भीतर दुःखी हो गए। भला 5 हजार में कैसे मुम्बई में फिर से फिल्मी जीवन शुरू करें ! मैं खुद दो बातों को लेकर बिहारी बाबू से प्रभावित रहा हूं। 

एक तो खुद को बिहारी बाबू कहलाना उन्होंने पसंद किया,जब अनेक लोग खुद को बिहारी कहलाना भी पसंद नहीं करते थे।दूसरे उनका अभिनय भी मुझे पसंद है–विलेन की भूमिका में भी उन्होंने ताली पिटवाई।
पर, अपने खन्ना को सिर्फ 5 हजार रुपए ! ? दूसरी ओर आर.के.सिन्हा ने अपने उन कई पुराने मित्रों को भी याद रखा जिन्हें अरबपति बन जाने पर कम ही लोग याद रखते हैं।ऐसे कई ‘केस’ मैं जानता हूं।

(वरिष्ठ पत्रकार  सुरेन्द्र किशोर के फेसबुक वॉल से साभार, ये लेखक के निजी विचार हैं)