राजनीति में वंशवाद की कमजोरियों में उलझ गया है चौटाला परिवार

इनेलो न तो मेरे बाप की पार्टी है और नहीं किसी और के बाप की – अजय चौटाला

New Delhi, Nov 09 : किसी भी राजनीतिक परिवार में उत्तराधिकार की लड़ाई कठिन व दिलचस्प होती है। पर, यदि वह ‘युद्ध’ किसी हरियाणवी परिवार में हो तो उसमें महाभारत का पुट होना स्वाभाविक है। इंडियन नेशनल लोक दल के सुप्रीमो व पूर्व मुख्य मंत्री ओम प्रकाश चैटाला इन दिनों इसी परेशानी से जूझ रहे हैं। उन्होंने अपने पुत्र अभय चौटाला को अपना उत्तराधिकारी बनाने का निर्णय कर लिया। पर अजय चैटाला के पुत्र द्वय अपने दादा का आदेश नहीं मान रहे हैं। याद रहे कि ओम प्रकाश जी के एक पुत्र अजय चैटाला अपने पिता ओम प्रकाश चाटाला के साथ सजा काट रहे हैं।

पर अजय का कहना है कि ‘इंडियन नेशनल लोक दल न तो मेरे बाप की पार्टी है और न ही किसी और के बाप की।’ अजय ने महाभारत शैली में यह भी कहा है कि ‘अब याचना नहीं, रण होगा, जीवन या मरण होगा।’ यह कार्यकत्र्ताओं की पार्टी है,वही निर्णय करेंगे। अजय गुट के कार्यकत्र्ताओं की बैठक होने वाली है। जेल से पेरोल पर निकल कर अजय चौटाला अपने पुत्र की मदद में जुट गए हैं। इस बीच अजय के पुत्र ने भाजपा नेता व केंद्रीय मंत्री राव इंद्रजीत से भी संपर्क साधा है। यानी हरियाणा के राजनीतिक समीकरण के बदलने के भी संकेत मिल रहे हैं। याद रहे कि अभय सिंह चौटाला हरियाणा विधान सभा में प्रतिपक्ष के नेता है। अजय चैटाला के पुत्र दुष्यंत चौटाला सांसद हैं।

दुष्यंत के छोटे भाई दिग्विजय चैटाला पार्टी के छात्र संगठन के प्रमुख थे। अब नहीं हैं। दुष्यंत के साथ -साथ दिग्विजय को भी ओम प्रकाश चौटाला के दल ने इसी माह अपनी पार्टी से निकाल दिया । दुष्यंत कहते हैं कि मेरे पिता ने 40 साल तक पार्टी की सेवा की है। गत 7 अक्तूबर को दुष्यंत चौटाला के समर्थकों ने पार्टी रैली में अभय के भाषण के दौरान उपद्रव किया था। उस कारण उन्हें निलंबित किया गया था। उनके भाई दिग्विजय के खिलाफ भी पार्टी ने कार्रवाई की थी। इस बीच एक बार फिर मेल जोल की कोशिश भी हो रही है। पर समझौता कठिन माना जा रहा है। देवीलाल द्वारा खड़ी की गयी इस पार्टी का हरियाणा में अच्छा- खासा जनाधार रहा है। पर लगता है कि पारिवारिक झगड़े का लाभ अगले चुनाव में भाजपा या कांग्रेस को मिल सकता है।

राजनीति में वंशवाद की कई बुराइयां हैं। पर उत्तराधिकार की समस्या को हल कर पाना किसी भी सुप्रीमो के लिए सबसे कठिन काम होता है। ऐसे झगड़े में कई बार कुछ दल अपने मूल उद्देश्य से भटक जाते हैं। सर्वाधिक नुकसान उन आम लोगों को होता है जो लोग ऐसे दलों से अपने भले की बड़ी उम्मीद लगाए बैठे होते हैं। वंशवाद जो न कराए !

(वरिष्ठ पत्रकार सुरेन्द्र किशोर के फेसबुक वॉल से साभार, ये लेखक के निजी विचार हैं)