महागठबंधन से निपटने के लिये बीजेपी की खास रणनीति, पांडेय की जाएगी कुर्सी, इन्हें मिल सकती है कमान

रिपोर्ट के अनुसार अत्यंत पिछड़ा जातियों के वोटरों को साधने के लिये बीजेपी जल्द ही यूपी के प्रदेश अध्यक्ष को बदल सकती है।

New Delhi, Jul 16 : 2019 लोकसभा चुनाव से पहले यूपी में सियासी पारा चढा हुआ है, सपा-बसपा और कांग्रेस के महागठबंधन ने बीजेपी को रणनीति बदलने पर मजबूर कर दिया है। अब बीजेपी यूपी जातिय समीकरण को भरपूर तवज्जो दे रही है। रिपोर्ट के अनुसार अत्यंत पिछड़ा जातियों के वोटरों को साधने के लिये बीजेपी जल्द ही यूपी के प्रदेश अध्यक्ष को बदल सकती है। आपको बता दें कि फिलहाल चंदौली सांसद महेन्द्र नाथ पांडेय यूपी बीजेपी अध्यक्ष हैं।

जातिय समुदाय को साधने की कोशिश
हिंदुस्तान टाइम्स में छपी एक रिपोर्ट के अनुसार पार्टी के एक वरिष्ठ नेता ने कहा है कि बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह पिछले सप्ताह यूपी के दौरे से गये हैं। जातिय रुप से अहम यूपी की सियासत को साधने के लिये घेरेबंदी करना होगा। सीएम योगी आदित्यनाथ राजपूत समाज से आते हैं, योगी का सपोर्ट बेस मुख्य रुप से पूर्वांचल में है, हालांकि पश्चिमी उत्तर प्रदेश में भी विधानसभा चुनाव में उन्होने खूब प्रचार किया था।

राजभवन भेजा जा सकता है
आपको बता दें कि वर्तमान यूपी बीजेपी अध्यक्ष महेन्द्र नाथ पांडेय ब्राह्मण समुदाय से ताल्लुक रखते हैं, वो भी पूर्वांचल से ही आते हैं, उनका संसदीय क्षेत्र वाराणसी के करीब है। पीएम मोदी खुद वाराणसी से सांसद हैं, सूत्रों का दावा है कि महेन्द्र नाथ पांडेय से अध्यक्ष की कुर्सी ली जा सकती हैं, उन्हें किसी राज्य के राजभवन में राज्यपाल की कुर्सी दी जा सकती है। ताकि ब्राह्मण लॉबी भी खुश रहे और पिछड़ा कार्ड भी खेला जा सके।

ये हैं रेस में
रिपोर्ट में इस नेता ने दावा किया गया है कि अगर यूपी में संगठनात्मक बदलाव किया जाता है, तो प्रदेश के परिवहन मंत्री स्वतंत्रदेव सिंह को संगठन की जिम्मेदारी सौंपी जा सकती है, आपको बता दें कि स्वतंत्रदेव सिंह कुर्मी समुदाय से आते हैं, साथ ही वो यूपी के बुदेलखंड इलाके से आते हैं, हाल के दिनों में उनकी गिनती अमित शाह के करीबियों में बढी है। इस वजह से उन्हें रेस में सबसे आगे माना जाता है।

महासचिव रह चुके हैं
आपको बता दें कि स्वतंत्रदेव सिंह यूपी बीजेपी में महासचिव रह चुके हैं, संगठन के कामों में उनका अच्छा खासा अनुभव भी है, इससे पहले भी वो यूपी बीजेपी अध्यक्ष बनने की रेस में शामिल थे, लेकिन तब बीजेपी के फूलपुर सांसद केशव प्रसाद मौर्य को अध्यक्ष बनाया गया था। हालांकि पिछले साल जब यूपी में बीजेपी की सरकार बनी, तो उन्हें परिवहन मंत्रालय सौंपा गया।

ओबीसी कार्ड खेलने का तैयारी
हिंदुस्तान टाइम्स की इस रिपोर्ट के अनुसार बीजेपी नेता का कहना है कि पार्टी के ओबीसी नेताओं में एक धारणा बनती जा रही है कि पिछले दो चुनावों 2017 और 2017 में उन्होने बीजेपी को सपोर्ट किया था, लेकिन उन्हें कुछ भी हासिल नहीं हुआ। रिपोर्ट के अनुसार बीजेपी इसी धारणा को तोड़ने की कोशिश कर रही है।

ओबीसी पर सबकी नजर
मालूम हो कि यूपी में ओबीसी की आबादी 52 से 53 फीसदी है, इनमें से यादवों की आबादी 8 फीसदी है, बीजेपी ने लोकसभा और विधानसभा चुनाव में गैर यादव ओबीसी वोटों की सफलतापूर्वक गोलबंदी अपने पक्ष में की है। लेकिन एसपी, बीएसपी के गठबंधन के बाद बीजेपी को इस वोट बैंक में सेंध की आशंका है। लिहाजा बीजेपी ओबीसी नेतृत्व को बढावा देने पर विचार कर रही है। बीजेपी के एक दूसरे नेता का कहना है कि 2019 में यूपी पर कब्जा बरकरार रखने के लिये पार्टी को बैकवर्ड वोटों की जरुरत होगी, इसलिये लगातार रणनीति पर काम जारी है।