राहुल गांधी अभी इंतजार करे

सबसे बड़ी समस्या यह है कि विभिन्न राष्ट्रीय और प्रांतीय पार्टियों के नेता राहुल गांधी को अपना नेता कैसे मान लेंगे ?

New Delhi, Jul 25 : राहुल गांधी के अध्यक्ष बनने के बाद कांग्रेस कार्यसमिति की जो पहली बैठक हुई, उसमें खुशामद के अलावा क्या हुआ है ? उस बैठक में सोनिया गांधी से भी उम्रदराज नेता बैठे हुए थे लेकिन उन्होंने राहुल को क्या सलाह दी ? जो भाजपा में मार्गदर्शक मंडल का हाल है, वही कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं का हाल है। सारे बहस-मुबाहिसे का सार यह निकला कि देश का अगला प्रधानमंत्री राहुल गांधी को बनाएंगे।

राहुल ने यह बात कर्नाटक के चुनाव में साफ-साफ कह दी थी, क्योंकि वह सरल-हृदय नौजवान है जबकि कांग्रेस के रचे-पचे और खाए-धाए नेताओं ने इस मुद्दे पर काफी उस्तादी दिखाई। किसी ने कहा कि हमको 150 सीटें तो मिलेंगी ही मिलेंगी और गठबंधन-पार्टियों को भी 150 मिल जाएंगी। जब तीन सौ सीटें होंगी और कांग्रेस पार्टी सबसे बड़ी होगी तो आप ही सोचिए कि गठबंधन और अगली सरकार का नेता कौन होगा। उनसे किसी ने यह नहीं पूछा कि कर्नाटक में मुख्यमंत्री कौन हैं ? किसी ने यह नहीं बताया कि कांग्रेस को अब से तीन या चार गुना सीटें कैसे मिलेंगी ? यदि प्रांतीय पार्टियों से गठबंधन हो गया तो वे कांग्रेस को 200 सीटों पर भी नहीं लड़ने देंगी।

यदि राष्ट्रीय पार्टियां इस गठबंधन में शामिल हो गईं तो वे अपनी कीमत वसूलेंगी। जुमलेबाज नेताओं के मुकाबले क्या उस गठबंधन के पास संपन्न और सबल भारत का कोई सपना भी है ? सबसे बड़ी समस्या यह है कि विभिन्न राष्ट्रीय और प्रांतीय पार्टियों के नेता राहुल गांधी को अपना नेता कैसे मान लेंगे ? हां, राहुल यदि कांग्रेस के वयोवृद्ध नेताओं को इस काम पर लगवाए और खुद को गठबंधन का नेता या प्र.मं. पद का उम्मीदवार घोषित न करे तो कुछ बात बन सकती है। इसमें शक नहीं कि अविश्वास प्रस्ताव में राहुल की नौटंकी ने मोदी की नौटंकी को पछाड़ दिया है लेकिन इस वक्त सारा देश बहुत परेशान है।

वह एक नौटंकीबाज की जगह दूसरे नौटंकीबाज को कतई पसंद नहीं करेगा। इस समय देश में गंभीर और अनुभवी नेतृत्व की जरुरत है। देश की इस सख्त जरुरत का जवाब कांग्रेस स्वयं बन सकती है, क्योंकि उसके कार्यकर्त्ता देश के हर जिले में मौजूद हैं और उसके पास कई बुद्धिमान और अनुभवी नेता भी हैं। राहुल थोड़ा इंतजार करे, कुछ पटकनीमार पैंतरे और सीखे, मैदानी अनुभव ग्रहण करे तो वह 2024 में अपने सपने को साकार कर सकता है। यदि कांग्रेस गठबंधन और भावी सरकार की नेतागीरी पर अटक गई तो वह लटक जाएगी और तीसरा मोर्चा अपने आप खम ठोकने लगेगा।

(वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार ़डॉ. वेद प्रताप वैदिक के फेसबुक वॉल से साभार, ये लेखक के निजी विचार हैं)