श्रीलंका – जिन प्रधानमंत्री रनिल को हटाया गया है, वे पिछले हफ्ते ही भारत आए थे। उनकी भारत-यात्रा के दो-तीन दिन पहले राष्ट्रपति श्रीसेन ने आरोप लगाया था कि भारत की गुप्तचर एजेंसी उनकी हत्या करना चाहती है।
New Delhi, Oct 29 : श्रीलंका में कल रात अचानक सत्ता-पलट हो गया। प्रधानमंत्री रनिल विक्रमसिंघ को राष्ट्रपति मैत्रीपाल श्रीसेन ने अपदस्थ करके उनके स्थान पर महिंद राजपक्ष को प्रधानमंत्री पद की शपथ दिला दी। अब श्रीलंका के राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री दोनों नेता ऐसे हैं, जिन्हें भारत-विरोधी माना जाता है। दूसरे शब्दों में श्रीलंका में अब उसी तरह भारत-विरोधियों की सरकार बन गई है, जिस तरह नेपाल में बनी हुई है।
श्रीलंका के ये दोनों नेता चीन के अत्यंत चहेते हैं। जिन प्रधानमंत्री रनिल को हटाया गया है, वे पिछले हफ्ते ही भारत आए थे। उनकी भारत-यात्रा के दो-तीन दिन पहले राष्ट्रपति श्रीसेन ने आरोप लगाया था कि भारत की गुप्तचर एजेंसी उनकी हत्या करना चाहती है। जिन राजपक्ष को नया प्रधानमंत्री नियुक्त किया गया है, वे महिंद राजपक्ष, दो बार श्रीलंका के राष्ट्रपति रह चुके हैं।
श्रीलंका में राष्ट्रपति का पद ध्वजमात्र नहीं होता है। वह प्रधानमंत्री से अधिक शक्तिशाली होता है। राजपक्ष की पार्टी-श्रीलंका फ्रीडम पार्टी- में ही पहले श्रीसेन मंत्री थे लेकिन दोनों नेताओं में झगड़ा हुआ और श्रीसेन ने नई पार्टी खड़ी कर ली। 2014 में वे राष्ट्रपति चुने गए लेकिन अब महिंद राजपक्ष के साथ आ जाने से संसद में इसी पार्टी के दोनों धड़ों का बहुमत हो गया है।
प्रधानमंत्री रनिल और श्रीसेन की पार्टी का जो गठबंधन संसद में बहुमत में था, वह भंग हो गया है। रनिल की युनाइटेड नेशनल पार्टी कह रही है कि राष्ट्रपति की यह कार्रवाई असंवैधानिक है, क्योंकि संसद में शक्ति-परीक्षा के बिना प्रधानमंत्री को अपदस्थ कैसे किया जा सकता है? राष्ट्रपति श्रीसेन का जवाब है कि संविधान की धारा 42 (4) के मुताबिक उन्हें अधिकार है कि वे प्रधानमंत्री को बर्खास्त कर सकें। हो सकता है कि यह मामला अब श्रीलंका के सर्वोच्च न्यायालय में चला जाए। जो भी हो, श्रीलंका का यह ताजा घटना-चक्र भारत के लिए चिंता का विषय है, क्योंकि राष्ट्रपति श्रीसेन से भी ज्यादा राजपक्ष बड़े जोरों से चीनपरस्ती करते रहे। उन्होंने अपने राष्ट्रपति-काल में श्रीलंका को चीन की गोद में ही बिठा दिया था और अब आशंका यह है कि वे तीसरी बार श्रीलंका के राष्ट्रपति बनने पर पूरा जोर लगाएंगे। भारतीय विदेश नीति के लिए यह गंभीर चुनौती है।