‘नीरज के नश्वर देह का कारवां तो गुजर गया लेकिन उनके गीतों का गुबार सदियों सदियों तक नही थमेगा’

शब्दो से करतब कराना , देशज शब्दों से हृदय तक उतर जाना , गीतों की गेयता और अर्थ की गहराई – नीरज जी की विशेषता थी ।

New Delhi, Jul 20 : गोपालदास नीरज के पास एक फ़िल्म निर्माता आये और अपनी फिल्म में गीत लिखने का प्रस्ताव दिया। नीरज जी ने कहा — मुझसे गीत नही लिखवाए तो आपके लिए बेहतर होगा क्योंकि लगभग यह परंपरा है कि मेरा गीत तो हिट हो जाएगा लेकिन आपकी फ़िल्म फ्लॉप हो जाएगी । और ऐसा हुआ भी । लेकिन नीरज के गीत इतने जोरदार हुआ करते थे कि फ़िल्म निर्माता अपनी फिल्म भी कुर्बान करने को तैयार हो जाता था। दर्जनों फ़िल्म की किस्मत ऐसी ही निकली। लेकिन हर फिल्म निर्माता नीरज से गीत लिखवाने का लोभ नही छोड़ पाया।

धुर्वा के शहीद मैदान में सालाना कवि सम्मेलन हुआ करता था । भीड़ जुटने तक लोकल कवियों को निबटा दिया जाता था फिर महिला कवियित्रियों की बारी होती थी । हास्य कवि जब कवि सम्मेलनों का माहौल बना चुके होते तो नीरज जी को बुलाया जाता। आयोजक जानते थे कि नीरज जी को पहले चला दिया तो भीड़ भी चली जायेगी । कवि सम्मेलनों की सफलता का पैमाना होते थे नीरज। अपनी फसी हुई आवाज को अगर इतना मीठा बनाया तो इसमें उनके गीतों की धमक ही थी। विभावरी से आसावरी तक उन्होंने कवित्व के हर रस को बहाया। प्रेम पर लिखा तो विरह पर भी लिखा । सुख पर लिखा तो दर्द पर भी लिखा , रहस्य पर लिखा तो स्थूल पर भी लिखा । यही वजह है कि किसी वाद में बंधे नही रहे नीरज। वे खुद कहते भी हैं —
“चमचम चूनर-चोली पर तो
लाखों ही थे लिखने वाले,
मेरी मगर ढिठाई मैंने
फटी कमीज़ों के गुन गाये, ”

शब्दो से करतब कराना , देशज शब्दों से हृदय तक उतर जाना , गीतों की गेयता और अर्थ की गहराई – नीरज जी की विशेषता थी । राज कपूर की फ़िल्म तीसरी कसम अगर आपने देखी है और फणीश्वर नाथ रेणु की कहानी पढ़ी हो तो आप पाएंगे कि जितनी कुशलता से ,जितनी सुंदरता से और जितनी
कल्पनाशीलता से कहानी फिल्माया गया उतनी बढ़िया तो कहानी भी नही बन पड़ी थी । फ़िल्म समीक्षकों ने कहा था कि रेणु को इस फ़िल्म ने अधिक बड़ा कैनवास दिया। लेकिन इसके विपरीत नीरज के लिखे गीतों को आप सुने तो वे गीत जितने कर्णप्रिय लगेंगे उतना देखने मे मजा नही क्योंकि फ़िल्म निर्माता नीरज की गहराई को सपाट पर्दे पर फिल्माने की हैसियत नही रखते थे ।

एक गीतकार का जाना समय के भीतर स्मृति के गान का मौन हो जाना होता है । नीरज, जीवन के दर्शन के रचनाकार थे, उजाले के भीतर अंधकार को सहेजते और शून्य के भीतर सृजन तलाशते । उनकी रचनात्मकता में जीवन मूल्य धड़कते रहे समाज और राष्ट्र हर समय के साथ दर्ज होते रहे । नीरज के नश्वर देह का कारवां तो गुजर गया लेकिन उनके गीतों का गुबार सदियों सदियों तक नही थमेगा।
श्रद्धांजलि तो फेसबुक पर कल ही दी थी लेकिन शब्दांजलि नही देना एक गीतकार की प्रतिष्ठा के अनुरूप नही होता ।

(वरिष्ठ पत्रकार योगेश किसलय के फेसबुक वॉल से साभार, ये लेखक के निजी विचार हैं)