बॉलीवुड

संघ की शाखा से निकलकर हीरो बन गये ‘गैंग्स ऑफ बासेपुर’ के सुुल्तान, कभी होटल में छिला करते थे प्याज

बॉलीवुड एक्टर ने बताया कि पहली बार एक दोस्त के कहने पर मैं नाटक देखने गया, जिसके बाद मैं नाटक का दर्शक बन गया।

New Delhi, Jul 16 : गैंग्स ऑफ बासेपुर में सुल्तान का किरदार निभाने वाले पंकज त्रिपाठी के जिंदगी का सफर भी फिल्मी ही है। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की पाठशाला से निकलकर छात्र राजनीति में जेल जाने वाले पंकज एक्टर बनने से पहले होटल में सेफ का काम भी कर चुके हैं। कभी जिस होटल के किचन में बैठकर वो प्याज छिलते थे, आज वहीं बैठकर इंटरव्यू देते हैं। पंकज त्रिपाठी ने एक टीवी चैनल को दिये इंटरव्यू में अपने जीवन से जुड़ी कई बातों को साझा किया।

संघ की शाखा में जाता था
पंकज त्रिपाठी ने बताया कि वो अपने गांव में आरएसएस की शाखा में जाते थे। लेकिन वहां राजनीति की ट्रेनिंग नहीं दी जाती थी। एक लीडरशिप क्वालिटी उनके अंदर बचपन से ही थी। खेलकूद में आगे रहते थे। फिर पढाई करने के लिये गांव से निकल कर पटना आये, जब पढाई में मन नहीं लगा, तो छात्र राजनीति करने लगे।

भीड़ इकट्ठा कर लेते था
गैंग्स ऑफ बासेपुर के सुल्तान ने बताया कि वो एक साधारण छात्रनेता थे। लेकिन इतना उनके अंदर जरुर था कि कुछ हास्य, व्यंग्य या चुटकुला सुनाकर भीड़ इकट्ठा कर लेते थे। ताकि इसके बाद कोई आए और भाषण दे। करीब तीन -चार साल तक उन्होने पटना में छात्र राजनीति की, विद्यार्थी परिषद में रहते हुए एक बार जेल भी गये।

चमचई से मन हट गया
उन्होने आगे बोलते हुए कहा कि मैंने देखा कि यहां सामाजिक हित नहीं है, जिसके बाद मुझे लगा कि कितने दिन चमचई करूंगा, मेरा मन इन सब चीजों से हट गया। लेकिन अब तो नेता का मतलब ही बदल गया है, लोग यदि कहें, कि मेरा बेटा नेता है, तो उन्हें समाज के लोग सही दृष्टि से नहीं देखते हैं। हालांकि सभी ऐसे नहीं होते हैं।

दोस्त के कहने पर नाटक देखने गया
बॉलीवुड एक्टर ने बताया कि पहली बार एक दोस्त के कहने पर मैं नाटक देखने गया, जिसके बाद मैं नाटक का दर्शक बन गया। तब मेरे मन में विचार आया, कि मुझे भी यही करना चाहिये। ये लोगों को रुलाते भी हैं और हंसाते भी हैं। साल 1995 से 2001 तक पटना में नाटक का सिलसिला चला, मेरा पहला नाटर भीष्ण साहनी की लीला नंद शाग की कहानी थी। इस नाटक में उन्हें चोर की छोटी सी भूमिका उन्हें मिली थी।

होटल में नौकरी की
पंकज ने बताया कि पहले नाटक में ही छोटी सी भूमिका को लोगों ने पसंद किया, अखबार ने लिखा कि उस कलाकार में काफी संभावनाएं है, जिससे मेरा हौसला बढा। हालांकि उन्होने ये भी बताया कि नाटक से तो पेट नहीं भरता, इसलिये मैंने पटना में अपने गुजारे के लिये होटल मौर्या में किचन सुपरवाइजर की नौकरी कर ली। कई बार थियेटर करने के लेकर मैनेजर से डांट भी पड़ी, इसके बावजूद दोनों काम करता रहा।

नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा पहुंचा 
साल 2001 में नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा पहुंचे, चार साल यहां रहे, जिसके बाद छोटे-मोटे विज्ञापनों में काम मिलना शुरु हो गया। फिर फिल्में भी मिलने लगी। गैंग्स ऑफ बासेपुर में सुल्तान के किरदार ने उन्हें फेमस कर दिया। इसके बाद और भी फिल्मों से उन्हें किरदार ऑफर होने लगे। उन्होने बताया कि परिवार का पहला सदस्य था, जिसने फिल्म इंडस्ट्री की ओर रुख किया था, कहीं कोई पहचान नहीं थी। इसलिये संघर्ष थोड़ा लंबा चला। जिंदगी में आये उतार-चढाव ने मेरे एक्टिंग को और पक्का कर दिया।

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