New Delhi, May 29 : ट्रेन से उतरते यात्रियों की एक आवाज की आस में पुरुष कुलियों के बीच बैठी इस महिला कुली का नाम है मंजू देवी। वो जयपुर रेलवे स्टेशन पर काम करने वाली एक मात्र महिला कुली हैं, अपने तीन बच्चों के परिवार में वो अकेली कमाने वाली है। पति की मौत हो जाने के बाद उन्हें मजबूरी में ये काम करना पड़ रहा है, ताकि वो अपने बच्चों का लालन-पालन कर सके। लेकिन आज उन्हें ना तो इस काम को करने में शर्म महसूस होती है, और ना ही यात्रियों के वजनी सामान को उठा कर ले जाने में तकलीफ महसूस होती है।
राष्ट्रपति ने किया पुरस्कृत
मंजू देवी ग्राम पंचायत रामजीपुरा कलां के गांव सुन्दरपुरा की रहने वाली हैं, इसी साल 20 जनवरी को देशभर की 90 महिलाओं को अपनी अलग पहचान बनाने के लिये राष्ट्रपति महामहिम रामनाथ कोविंद ने पुरस्कृत किया था।
शुरुआत में शर्म आती थी
मंजू देवी ने बताया कि जब उन्होने कुली का काम करना शुरु किया था, तो उन्हें शर्म महसूस होती थी, वो किसी से भी काम मांगने में शर्माती थी,
मां ने बढाया हौसला
रिपोर्ट के अनुसार मंजू के पति की मौत करीब दस साल पहले हुई थी। पारिवारिक कलह और मानसिक तनाव के बीच उनकी मां ने उनका हौसला बढाया,
यूनिफॉर्म बनी चुनौती
रेलवे अधिकारियों ने उन्हें बताया कि चूंकि जयपुर रेलवे स्टेशन पर कोई महिला कुली नहीं है, इस वजह से उन्हें परेशानियों से दो-चार होना पड़ सकता है।
सुनाई अपनी संघर्ष की कहानी
राष्ट्रपति भवन में अपने-अपने क्षेत्र में उपलब्धियां हासिल करने वाली महिलाओं को संबोधित करते हुए मंजू ने कहा कि मेरा वजन 30 किलोग्राम था और रेल यात्रियों के बैग का वजन भी तीस किलो होता था,
भाई ने दूसरा काम करने की सलाह दी थी
मंजू ने बताया कि उनके भाई ने उन्हें कोई दूसरा आसान काम करने की सलाह दी थी। लेकिन वो कुली बनकर लोगों के सामान उठाती रही।
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