New Delhi, Mar 28 : चर्चित उद्योगपति तथा वेदांता समूह के चेयरमैन अनिल अग्रवाल आज किसी परिचय के मोहताज नहीं है, हालांकि मेटल किंग के जीवन में काफी संघर्ष रहा, उन्हें सालों तक डिप्रेशन से गुजरना पड़ा, हालांकि इसके बाद भी उन्होने कभी हिम्मत नहीं हारी, सफल होने की जिद पर अड़े रहे, कहावत है कि अगर आप प्रयास करते रहे, तो जीवन आपको सफल होने के मौके देता रहता है, ये कहावत अनिल अग्रवाल पर पूरी तरह से सटीक साबित होती है।
लंदन में रहते हैं
अनिल अग्रवाल इन दिनों लगातार सोशल मीडिया पर अपने संघर्ष का कहानियां साझा करते हैं, पिछले अपडेट में उन्होने ये बताया था कि कैसे उन्हें पहली कंपनी खरीदने के लिये दोस्तों और परिजनों से कर्ज लेना पड़ा था, अब उन्होने इससे आगे की कहानी साझा की है, जिसमें उन्होने बताया कि कैसे उन्हें एक के बाद एक असफलताओं का सामना करना पड़ा, 10 साल का लंबा संघर्ष करना पड़ा, इस दौरान 3 साल का डिप्रेशन का दौर भी आया, फिर सरकार के एक फैसले ने उन्हें मौका दिया, सफलता का ऐसा सिलसिला शुरु हुआ, जिसने लंदन हेडक्वार्टर वाले वेदांता समूह का रुप ले लिया।
वर्कर्स को सैलरी देने के नहीं थे पैसे
अनिल अग्रवाल लिखते हैं, बड़ी उम्मीदों के साथ मैंने अपनी पहली कंपनी खरीदी, उसके बाद के 10 साल मेरे जीवन के सबसे कठिन साल थे, 1976 में मैंने शमशेर स्टर्लिंग केबल कंपनी खरीदी, लेकिन मेरे पास वर्कर्स को सैलरी देने या जरुरी रॉ मटीरियल खरीदने के पैसे नहीं थे, मेरे दिन पेमेंट क्लियर करवाने के लिये बैंकों के चक्कर लगाने में बीतते थे, रातें इस प्रयास में गुजर जाती थी कि बंद पड़े केबल प्लांट को फिर कैसे खड़ा करें, अपनी जरुरतों को पूरा करने के लिये मैंने मैग्नेटिक वायर, डिफरेंट केबल्स, एल्युमीनियम रॉड, वॉर्नर ब्रदर्स के साथ मल्टीप्लेक्स जैसे अलग-अलग फील्ड में 9 बिजनेस शुरु किये, एक के बाद एक, हर बिजनेस में मुझे असफलता ही मिली, लेकिन मैंने हार नहीं मानी।
असफलताओं से हो गया था डिप्रेशन
उद्योगपति ने बताया कि कैसे वो डिप्रेशन में चले गये, किस तरह उन्हें इससे उबरने में मदद मिली, उन्होने कहा कि इस वित्तीय संकट के स्ट्रेस के कारण मैं तीन साल तक डिप्रेस्ड रहा,
नहीं खरीद पाये थे शोले के टिकट
आज भले ही अनिल अग्रवाल 40 करोड़ डॉलर यानी करीब 35 हजार करोड़ रुपये की संपत्ति के मालिक हों, लेकिन असफलता और डिप्रेशन के दौर में एक समय ऐसा भी था, जब उनके पास पसंदीदा फिल्म के टिकट खरीदने के पैसे नहीं थे, इस बारे में वो खुद बताते हैं कि स्ट्रेस को कम करना था, सिनेमा से बढकर क्या हो सकता था, मेरा सबसे बड़ा पैशन, तो निकल पड़ा मिनर्वा टॉकीज में फिल्म शोले देखने, वहां भीड़ में खड़े होकर अपने पसंदीदा स्टार्स अमिताभ बच्चन, जया भादुड़ी, धर्मेन्द्र और दूसरे कईयों को रेड कारपेट पर चलते हुए देखा, हॉल में घुसना ऐर टिकट पाना तो नामुमकिन था, लेकिन बाहर खड़े होकर अपने चहेते स्टार्स की एक झलक देख पाना भी मेरे लिये काफी था, कुछ समय के लिये मानो मैं अपनी सारी चिंताओं से दूर हो गया था।
इस एक बात ने बना दी किस्मत
लगातार कोशिश करते रहने का फल अनिल अग्रवाल को तब मिला, जब सरकार ने 1986 में एक पॉलिसी में छोटा सा बदलाव किया, ये बदलाव था टेलीफोन केबल बनाने के लिये प्राइवेट सेक्टर को मंजूरी देने का, मेटल किंग ने इस बारे में लिखा, आज जब मैं पीछे मुड़कर देखता हूं, तो मुझे एहसास होता है, कि ब्रह्मांड ने मेरी शुरुआती कठिन परीक्षा इसलिये ली, ताकि आने वाले समय में जीवन की सबसे बड़ी उपलब्धि वेदांता को संभालने के लिये तैयार हो सकूं, सक्सेस पाने के लिये हमें फेलियर्स का सामना तो करना ही होगा, 10 साल बाद 1986 में सरकार ने पहली बार टेलीफोन केबल को प्राइवेट सेक्टर में फैक्युफैक्चर करने की अनुमति दी, फिर इसके बाद सबकुछ बदल गया।
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