अध्यात्म

क्या आप जानते हैं, वैष्णो माता मंदिर में मौजूद तीन अलौकिक पिंडियों का रहस्य ?

जय माता दी कहते जाओ, पौड़ी-पौड़ी चढ़ते जाओ । लेकिन क्‍या आप जानना नहीं चाहते वैष्‍णो माता मंदिर में मौजूद तीन पिंडियां किसका प्रतीक हैं ।

New Delhi, 09 Oct : वैष्‍णो देवी का मंदिर हमेशा से ही हिंदुओं का एक प्रमुख पूजनीय और पवित्र तीर्थ स्‍थल रहा है । माता के दरबार में जो भी जाता है झोलियां भर के पाता है । भारत के सबसे खूबसूरत शहर जम्‍मू कश्‍मीर के ऊधमपुर जिले में कटरा से 12 किमी. दूर स्थित है माता का भव्‍य भवन । मान्‍यता है कि इस मंदिर में वैष्‍णो देवी जागृत रूप में रहती हैं । इसी वजह से यहां आने वाले भक्‍त को ये एहसास होता है कि उसने स्‍वयं वैष्णो माता के दर्शन कर लिए हैं ।

वैष्‍णो माता के मंदिर में तीन अलौकिक पिंडियां हैं, यही देवी का स्‍वरूप है और इसी की यहां आराधना पूजा अर्चना होती है । इन तीन पिंडियो की कथा बेहद रोचक है । यह तीनों पिंड आदिशक्ति मां भवानी के ही 3 रूप माने जाते हैं । पहली पिंडी मां महासरस्वती का प्रतीक हैं, दूसरी पिंडी मां महालक्ष्मी का प्रतीक हैं तो वहीं तीसरी पिंडी मां महाकाली का स्‍वरूप मानी जाती हैं । ज्ञान, धन और शक्ति की ये तीन देवियां मनुष्‍य जीवन से सीधे तौर पर जुड़ी हुई हैं । इन तीन शक्तियों की प्राप्ति के लिए ही मनुष्‍य जीवनभर तप करता है, परिश्रम करता है । कटरा से माता के भवन की ये यात्रा पूरे श्रद्धा भाव से जो करता है उसकी हर इच्‍छा पूर्ण होती है । वैष्‍णो माता के मंदिर में आने वाले किसी भी श्रद्धालु की मनोकामना को माता खाली नहीं छोड़तीं ।

वैष्‍णो माता से जुड़ी एक पौराणिक कथा है जो इस प्रकार है – कटरा से 2 कि.मी. दूर हंसाली गांव में मां वैष्णवी के परम भक्त श्रीधर रहा करते थे । वो नि:संतान थे, इसीलिए अपने दुखों को दूर करने के लिए देवी की आराधना में लीन रहते थे । नवरात्रि पूजन के दौरान एक बार जब वो कंजक पूजा कर रहे थे तब स्‍वयं मां वैष्‍णवी कन्‍या वेश में उनके घर आ गईं । पूजन के बाद सभी कन्‍याएं चली गईं लेकिन मां वैष्‍णवी वहीं रहीं । उन्‍होने श्रीधर को नगर भर में भंडारे का निमंत्रण देने को कहा । श्रीधर चिंता में पड़ गए कि वो इतने बड़े नगर को भंडारा कैसे करा पाएंगे । माता के आश्‍वासन पर उन्‍होने निमंत्रण दे दिया । इसी कड़ी में श्रीधर ने गुरु गोरखनाथ व उनके शिष्य बाबा भैरवनाथ को भी भोजन का निमंत्रण दिया।

भंडारा शुरू हुआ तो माता वैष्‍णवी ने अपने एक खास पात्र से सभी को भोजन परोसना शुरू किया । बाबा भैरवनाथ के समीप पहुंचने पर उन्‍होने माता से मांस भक्षण और मदिरापान की मांग की । ये समझाने पर कि ब्राह्मण भोज में ऐसी मांग उचित नहीं बाबा भैरवनाथ नहीं मानें और उन्‍होने कन्‍या रूपी माता वैष्‍णवी को पकड़ना चाहा । वैष्णो माता तुरंत अंतरध्‍यान हो गईं और त्रिकूटा पर्वत की ओर चली गईं । भैरवनाथ भी उनके पीछे-पीछे आ गये । माता एक गुफा में चली गईं और वहां नौ महीने तक तप किया । इस बीच हनुमान को गुफा के द्वार पर पहरेदारी करने के लिए आह्वाहन किया । आज इसी पवित्र गुफा को ‘अर्धक्वारी’ के नाम से जाना जाता है।

पहरेदारी के दौरान जब हनुमानजी ने प्‍यास बुझाने के लिए माता को कहा तो उन्‍होने एक जलधारा निकाल दी जो आज ‘बाणगंगा’ के नाम से जानी जाती है । कथा के अनुसार 9 महीने बाद माता गुफा से निकलीं और भैरवनाथ का वध किया । उसका सिर कटकर भवन से 8 कि. मी. दूर त्रिकूट पर्वत की भैरव घाटी में जा गिरा, इस स्‍थान को आज भैरवनाथ मंदिर के नाम से जाना जाता है। माता के दर्शन के बाद भौरवनाथ के दर्शन करना भी जरूरी माना जाता है । मान्‍यता है कि ऐसा माता ने स्‍वयं करने के लिए कहा था । जो लोग भैरवनाथ के दर्शन नहीं करते उनकी यात्रा पूर्ण नहीं मानी जाती । भैरवनाथ के वध के बात वैष्णो देवी तीन पिंड के रूप में ध्यानमग्न हो गईं । वहीं माता के परम भक्‍त श्रीधर को एक रात स्‍वप्‍न में त्रिकूटा पर्वत दिखा और माता की अलौकिक पिंडियों के दर्शन हुए । उन्‍हें ढूढ़ते-ढूढ़ते वह पहाड़ी तक जा पहुंचे । तब से अब तक श्रीधर के वंशज ही माता की पूजा आराधना करते हैं ।

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