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Opinion – एक बार फिर से लोकतंत्र को बंधक बनाने का प्रयास कर रही है कांग्रेस

मतलब लोकतंत्र किस चिड़िया का नाम है, यह कांग्रेस को पता ही नहीं है। पता हो भी तो कैसे? देश ने भले लोकतंत्र अपनाया, लेकिन कांग्रेस ने राजतंत्र अपनाया।

New Delhi, Dec 18 : मैं हमेशा कहता रहा हूं कि लोकतंत्र के तो केवल 4 स्तंभ हैं, लेकिन कांग्रेस के 40 स्तंभ हैं, न जाने कौन कब कहाँ किस तरह का बवाल खड़ा कर दें। इसीलिए कांग्रेस के सत्ता में रहते हुए भी और नहीं रहते हुए भी उसकी अराजकतावादी ताकतें अलग-अलग वेष धारण करके सामने आती रहती हैं। अक्सर लोग कम्युनिस्टों को कांग्रेस से अलग समझने की भूल करते हैं, लेकिन मैं उन्हें भी कांग्रेसी थैले के उन 40 चट्टों-बट्टों में से ही एक मानता हूँ।

कांग्रेस को पता है कि लोकतंत्र को बंधक कैसे बनाया जाता है। बहुमत का सम्मान उसकी बुनियाद में ही नहीं है। 1939 में कांग्रेस अध्यक्ष के चुनाव में सुभाष चंद्र बोस का खड़ा होना और जीतना महात्मा गांधी को रास नहीं आया। 1946 में कांग्रेस की 15 में से 12 प्रांतीय कमेटियों का मत सरदार पटेल को कांग्रेस अध्यक्ष और देश का प्रधानमंत्री बनाने के पक्ष में था, लेकिन गांधी जी के दबाव में बहुमत धरा का धरा रह गया और वीर जवाहरलाल भारत के भाग्य विधाता बना दिए गए।
तो जब महात्मा कहलाने वाले गांधी जी में ही लोकतांत्रिक मूल्यों का अभाव था, तो कथित रूप से उनके पदचिह्नों पर चलने वाली कांग्रेस के दूसरे नेताओं में यह कहां से आता? कांग्रेस हमेशा “चित भी मेरी पट भी मेरी” के फार्मूले पर चलती रही। आज़ाद भारत में कई चुनावों को येन केन प्रकारेण जीतने के बाद 1975 में जब कांग्रेस की सबसे बड़ी नेता और प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के चुनाव को ही इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अवैध ठहरा दिया और सुप्रीम कोर्ट से भी पूरी राहत नहीं मिली, तो 25 जून 1975 को रातों रात देश पर इमरजेंसी लाद दी गयी।

मीडिया को तो कांग्रेस ने हमेशा अपना पालतू बनाकर रखने की कोशिश की। मैं खुद इस बात का गवाह हूँ। एनडीटीवी में मेरे कई लेख सेंसर किए गए। 2008 में मुंबई पर आतंकवादी हमले के ठीक बाद आतंकवाद पर सरकार की ढुलमुल नीति की आलोचना में लिखे गए एक लेख को तो एनडीटीवी की वेबसाइट पर छपने के बाद हटा लिया गया था, क्योंकि उसे भारी समर्थन मिल रहा था और उसे हटाने के लिए मनमोहन सरकार का गुप्त फरमान आ गया था।
1975 की इमरजेंसी में इंदिरा सरकार ने और 1988 में डिफेमेशन बिल के ज़रिए राजीव सरकार ने मीडिया के साथ क्या किया और क्या करने की कोशिश की, यह भी किसी से नहीं छिपा है।

मतलब लोकतंत्र किस चिड़िया का नाम है, यह कांग्रेस को पता ही नहीं है। पता हो भी तो कैसे? देश ने भले लोकतंत्र अपनाया, लेकिन कांग्रेस ने राजतंत्र अपनाया। जवाहरलाल नेहरू > इंदिरा गांधी > संजय गांधी > राजीव गांधी > सोनिया गांधी > राहुल गांधी > प्रियंका गांधी – कांग्रेस में विरासत के इस स्पष्ट क्रम को देखते हुए भी अगर कोई कांग्रेस में लोकतंत्र ढूंढ़ना चाहता है, तो वह भूसे के ढेर में सुई ढूंढ़ने की मूर्खता कर रहा है।
और आज भी नागरिकता कानून के विरोध में देश भर में आग लगाने के जो प्रयास चल रहे हैं, मुझे इसमें कोई शक नहीं कि उनके पीछे कांग्रेस का ही रोल है। वह मुख्य विपक्षी दल है और जो दल या लोग इसके विरोध में आग लगा रहे हैं, वे बिना कांग्रेस के प्रत्यक्ष और परोक्ष बहकावे के नहीं लगा रहे हैं। कांग्रेस और उसके 40 स्तंभ मुसलमान भाइयों-बहनों के कंधों का इस्तेमाल अपनी अपनी बंदूकें चलाने के लिए कर रहे हैं। जबकि हकीकत यह है कि इस कानून से किसी भी भारतीय मुसलमान पर कोई फर्क नहीं पड़ना है। यह नागरिकता देने का कानून है, छीनने का नहीं। जहां तक एनआरसी का सवाल है, उसके ज़रिए भी केवल घुसपैठिए ही निकाले जाने हैं, नागरिक नहीं।

नागरिकता कानून अपार बहुमत से चुनी गई सरकार द्वारा बनाया गया कानून है, जो देश की संसद के दोनों सदनों में पास होने के बाद बना है। जबकि एनआरसी पर अमल देश के सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर उसकी देख रेख में होना है। लेकिन कांग्रेस ने सच्चाई से आंखें मूंद रखी हैं। लगातार दो चुनाव हारने और जनता की बड़ी आबादी का समर्थन खो चुकने के बाद उसने हिंसा के सहारे लोकतंत्र और जनादेश को बंधक बनाने का प्लान बनाया है। यह कुछ कुछ वैसा ही है जैसे किसी आक्रामक बल्लेबाज के छक्के चौके रोकने का आपके किसी गेंदबाज और फील्डर में दम न हो, तो मैदान और पिच पर पथराव शुरू करा दीजिए।

लेकिन संयमी जनता सब देख रही है। इस गलती का उसे इतना बड़ा खमियाजा भुगतना पड़ेगा कि भारत में वह मुस्लिम लीग और एआईएमआईएम की तरह दो-चार सीटें लाने वाली पार्टी बनकर रह जाएगी। देश का तो कुछ नहीं बिगड़ेगा, क्योंकि अब यह देश अपने सुरक्षा हितों का खयाल रखने में पूरी तरह सक्षम है। इसलिए कांग्रेस के बहकावे में आकर कोई देश को तोड़ने का मंसूबा न पालें। यह देश 1947 में एक बार बंट चुका है और अब यहां ऐसी कोई स्थिति पैदा होने नहीं दी जा सकती, जिससे कि भविष्य में दोबारा इसके बंटवारे की नौबत आ जाए।

(वरिष्ठ पत्रकार अभिरंजन कुमार के फेसबुक वॉल से साभार, ये लेखक के निजी विचार हैं)
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