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‘प्रयागराज और अयोध्या तो ठीक, पर ‘भारत’ का अंग्रेज़ी अनुवाद ‘इंडिया’ कब हटेगा’

हमें यह भी नहीं भूलना चाहिए कि नाम बदलने का यह चलन कोई आज शुरू नहीं हुआ है, बल्कि इतिहास के हर कालखंड में हर शासक ने अपने-अपने हिसाब से जगहों के नाम बदले हैं।

New Delhi, Nov 09 : इलाहाबाद का नाम बदलकर प्रयागराज और फ़ैज़ाबाद का नाम बदलकर अयोध्या किए जाने की आलोचना केवल वे लोग ही कर रहे हैं, जो या तो भारत की आत्मा को नहीं समझते, या फिर जिनके लिए भारत का इतिहास केवल 800 या 900 साल पुराना है। लेकिन अब तो करीब 5000 साल का प्रामाणिक इतिहास हमारे पास है। राम और कृष्ण के काल से जुड़ी अनेक कथाओं के प्रामाणिक सबूत अब मिल रहे हैं। यहां तक कि भारत और श्रीलंका के बीच के समुद्र में रामसेतु तक के प्रामाणिक अवशेष मिल चुके हैं।

हमें यह भी नहीं भूलना चाहिए कि नाम बदलने का यह चलन कोई आज शुरू नहीं हुआ है, बल्कि इतिहास के हर कालखंड में हर शासक ने अपने-अपने हिसाब से जगहों के नाम बदले हैं। मुगलों ने भी बदले हैं, अंग्रेज़ों ने भी बदले हैं, कांग्रेस-कम्युनिस्ट, सपा-बसपा सबने बदले हैं। इसलिए भाजपा की सरकारें भी अगर यह काम कर रही हैं, तो इसमें हाय-तौबा मचाने जैसा मुझे कुछ दिखाई नहीं देता।

हां, इस मौके पर, एक टीस जो मेरे मन में दशकों से उठ रही है, उसे आप सबसे साझा करना चाहता हूं। हम सभी जानते हैं कि व्यक्तियों और जगहों के नामों का अनुवाद नहीं किया जाता और तमाम भाषाओं में ये एक समान ही रहते हैं, लेकिन हमारे संविधान ने अपने देश के नाम का ही अनुवाद कर डाला है। हिन्दी और अन्य भारतीय भाषाओं के लिए “भारत” और अंग्रेज़ी तथा अन्य विदेशी भाषाओं के लिए “इंडिया।” यह न केवल अटपटा है, बल्कि हास्यास्पद और दुर्भाग्यपूर्ण भी है।

इस संदर्भ में अनेक लोगों की दलील होती है कि “चीन” और “चाइना”, “रूस” और “रसिया” भी तो हैं। लेकिन यहां हमें समझना पड़ेगा कि “चीन” और “चाइना”, “रूस” और “रसिया” इत्यादि अलग-अलग भाषाओं में बोले जाने की अलग-अलग शैलियो के कारण बने हैं, जबकि “भारत” और “इंडिया” के साथ ऐसी बात नहीं है। “भारत” आम है, तो “इंडिया” इमली। इन दो शब्दों का उद्भव, विकास, अर्थ, भाषा, सोच सब अलग है।
क्या मेरे देश की सरकार संविधान में संशोधन करके सभी भाषाओं में अपने देश के एक ही नाम “भारत” को स्वीकार कर सकती है? अगर नहीं, तो नामों में इन छोटे-मोटे बदलावों का मैं विरोध तो नहीं करने वाला, लेकिन इससे अधिक उत्साहित भी नहीं होने वाला। यह उतना ही है, जितना सबने किया है, आप कुछ अलग नहीं कर रहे।

(वरिष्ठ पत्रकार अभिरंजन कुमार के फेसबुक वॉल से साभार, ये लेखक के निजी विचार हैं)
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