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पहली बार पीएम बनने के बाद क्यों रो पड़े थे वाजपेयी ? क्यों बंद किए थे कैमरे ?

कोई सहज सा जवाब हो सकता था . लेकिन जवाब देने वाले वाजपेयी थे . कवि हृदय एक भावुक राजनेता . सवाल खत्म होते ही वाजपेयी भावुक हो गए।

New Delhi, Aug 16 : करीब छह साल तक देश के पीएम रहे अटल बिहारी वाजपेयी के बारे में बुरी खबर आने वाली है . कई सालों से बीमार वाजपेयी जिंदा होकर भी बेजान हो चुके थे . लाइफ सपोर्ट सिस्टम और दुनिया भर की दवाओं ने उनकी धड़कनों को थाम जरुर रखा लेकिन बोलने , सुनने और समझने की क्षमता काफी पहले खत्म हो चुकी थी . बीते तीन महीनों के दौरान दो बार एम्स ले जाया गया . एक बार फिर वाजपेयी एम्स में उन्हें बचाने की कोशिश तो हुई लेकिन नियति ने इस बार इस बार शायद कुछ और ही तय कर रखा है .देश में अभी भी दुआओं का दौर चल रहा है . पीएम मोदी खुद एम्स जा चुके हैं . देश के तमाम नेताओं का जमावड़ा एम्स में लगने लगा है . कई राज्यों के मुख्यमंत्री दिल्ली पहुंच गए हैं . कुछ पहुंच रहे हैं . बीजेपी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक टाल दी गई है . वाजपेयी जन्मदिन के मौके पर मैने उनके बारे में कई किस्से लिखे थे . उन्हीं में कुछ किस्से एक बार फिर पढ़िए . अटल बिहारी वाजपेयी से तो यूं तो मैं कई बार और कई मौकों पर मिला हूं . जब वो नेता विपक्ष थे तब भी . जब वो 1996 में पहली बार तेरह दिन के लिए देश के प्रधानमंत्री बने , तब भी . जब वो 1998 और 1999 में पीएम बने तब भी . टीवी इंटरव्यू के लिए इन मुलाकातों के दौरान मैंने संवेदनाओं से भरा वाजपेयी का ऐसा भावुक चेहरा देखा है , जो कभी भूल नहीं पाऊंगा .
बात मई 1996 की है . उस दिन अटल बिहारी वाजपेयी प्रधानमंत्री पद की शपथ लेकर 6 रायसीना रोड वाले बंगले पर लौटे थे . उसी बंगले पर, जहां सालों से वो रहा करते थे . बंगले का मेन गेट हमेशा खुला रहता था . नेता विपक्ष के नाते उन्हें मामूली सुरक्षा जरुर मिली हुई थी लेकिन उनसे मिलने वालों का वहां आना -जाना लगा रहता था . मुलाकातियों के लिए वो सहज उपलब्ध रहते थे . लेकिन उस दिन सब कुछ बदल गया था .

प्रधानमंत्री की सुरक्षा करने वाली एसपीजी ने उनके बंगले को अपने घेरे में ले लिया था . रेल भवन से उनके घर की तरफ जाने वाली सड़क से आम लोगों की आवाजाही रोक दी गई थी . दिल्ली पुलिस के पचासों सिपाहियों का दस्ता उनके घर के आस -पास तैनात कर दिया गया था . जिस बंगले में मामूली पूछताछ के बाद कोई भी दाखिल हो जाता था , उस बंगले के बाहर रस्सियों से दूर तक घेराबंदी कर दी गई थी . गेट से काफी पहले ही मेटल डिटेक्टर लगा दिया गया था . वाजपेयी अब मिलना तो दूर , उनके बंदले तक पहुंचना भी किसी के लिए आसान नहीं था .

एसपीजी की गाड़ियों से घिरी कार में बैठकर राष्ट्रपति भवन से शपथ लेकर लौटते हुए वाजपेयी ये सब देखते हुए अपने बंगले में दाखिल हुए थे . ये सब देखकर वाजपेयी के जेहन में ऐसी बेचैनियां उग आई थीं , जिसका अंदाजा किसी को नहीं था . खुलकर ठहाके लगाने वाला एक खुला -खुला सा शख्स ‘बंद’ होकर अपने इस बंगले में पहली बार दाखिल हुआ था . उसी शाम प्रधानमंत्री वाजपेयी एक टेलीविजन प्रोग्राम ‘रुबरू’ के लिए वक्त दिया था . उस प्रोग्राम के लिए इंटरव्यू करने वाले थे राजीव शुक्ला और शो का डायरेक्टर था मैं . हम दोनों उस बंगले के एक कमरे में कैमरा -लाइट सेट करके वाजपेयी जी का इंतजार कर रहे थे . वो आए और सवाल जवाब का दौर शुरु हुआ .
सवालों के बीच राजीव शुक्ला ने उनसे पूछा – ‘ सारी सुरक्षा , सारा तामझाम , मुलाकातियों की भीड़ , इतना कुछ हो गया तो आप बंधे -बंधे नहीं महसूस करते हैं ? ‘

ये एक सहज सा सवाल था . कोई सहज सा जवाब हो सकता था . लेकिन जवाब देने वाले वाजपेयी थे . कवि हृदय एक भावुक राजनेता . सवाल खत्म होते ही वाजपेयी भावुक हो गए . जवाब में उन्होंने सात शब्द कहे – ‘ मैं बहुत बंधा हुआ अनुभव करता हूं . ‘ वाक्य खत्म करते ही उन्होंने नजरें नीची कर ली . ऐसे जैसे कैमरे से अपने चेहरे का भाव छिपाना चाह रहे हों . भावुक हो गए . गला रुंध गया . राजीव शुक्ला ने उनसे कहा – ‘आप इमोशनल हो रहे हैं ‘ . वाजपेयी कुछ सेकेंड तक चुप रहे . फिर तकलीफ भरी मुद्रा में बोले – ‘ जब से आया हूं , तब से कह रहा हूं कि इतनी सुरक्षा की जरुरत क्या है ? रास्ते बंद हैं . सड़कें सुनसान हैं . ऐसा लग रहा है जैसे हड़ताल हो गई है . देशवासी इतनी दूर खड़े कर दिए जाएं कि हमारे अपने लोग पास न आ सकें . उचित प्रबंध तो ठीक है लेकिन उसमें दिखावा नहीं होना चाहिए . ‘ इतना कहकर वाजपेयी फिर चुप हो गए . नजरें झुका ली . मैंने राजीव शुक्ला को इशारा किया कि उनकी बेचैनी पर उनसे कुछ और बात की जाए . पास ही उनके बेहद करीबी माने जाने वाले पत्रकार बलवीर पुंज खड़े थे . वो नहीं चाहते थे कि वाजपेयी इस कदर भावुक और परेशान हों या दिखें . वो नहीं चाहते थे कि भावुक वाजपेयी को और कुरेदा जाए या रोते हुए उनकी तस्वीर कैमरे में कैद हो .

बलवीर पुंज ने बीच में रोककर बात बदलने को कहा . एक मिनट के लिए कैमरा बंद किया गया और फिर बात बदल गई . एक -दो सवालों के बाद फिर वाजपेयी थोड़े सहज हुए . जो शख्स प्रधानमंत्री पद की शपथ लेकर कुछ ही मिनट पहले राष्ट्रपति भवन से लौटा हो , वो अपने घर के बाहर सुरक्षा एजेंसियों का ताम-झाम देखकर इस कदर परेशान हो जाए कि सवालों का जवाब आंसुओं से देने लगे तो समझिए कि उसके भीतर कितना भावुक इंसान बसता होगा . और हां , ये आंसू बनावटी नहीं थे . दिखावटी नहीं थे . सुरक्षा दस्ते और घेरे को अपना स्टेटस सिंबल मानने वाले नेताओं के दौर में वाजपेयी अलग थे . हमने बीते सालों पर दर्जनों ऐसे नेता देखे हैं , जो खुद की वीवीआईपी बनाए रखने के लिए अपने इर्द-गिर्द सैकड़ों पुलिस वालों की तैनाती करवाते हैं . सायरन और हूटर के शोर के साथ गाड़ियों के काफिले में चलने को अपनी शान समझते हैं . वाजपेयी ऐसे नहीं थे .
ये बात तब की है , जब लोकसभा चुनाव के बाद सबसे बड़ी पार्टी के तौर पर उभरी बीजेपी को 161 सीटें मिली थी . बीजेपी के रणनीतिकार बहुमत जुटाने के लिए जोड़-तोड़ में लगे थे . दूसरी तरफ कांग्रेस , राष्ट्रीय मोर्चा और वामदलों के नेता गैर भाजपा सरकार का विकल्प तलाशने में जुटे थे . बीजेपी संसदीय दल के नेता के रुप में अटल बिहारी वाजपेयी ने सरकार बनाने का दावा पेश किया . राष्ट्रपति शंकर दयाल शर्मा ने उन्हें प्रधानमंत्री पद की शपथ दिला दी और तेरह दिन के भीतर बहुमत साबित करने का वक्त दिया . तमाम कोशिशों के बाद भी वाजपेयी बहुमत साबित नही कर सके . उन्हें इस्तीफा देना पड़ा . फिर जोड़-तोड़ के बाद राष्ट्रीय मोर्चा के सरकार बनी थी .

(वरिष्ठ पत्रकार अजीत अंजुम के ब्लॉग से साभार, ये लेखक के निजी विचार हैं)
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