New Delhi, Dec 01: उत्तर प्रदेश चुनाव सिर पर हैं और सभी दल चुनावी समीकरणों पर माथापच्ची में जुटे हुए हैं । इस बार के चुनाव में वेस्टर्न यूपी पर भी दलों की नजर है । बीजेपी इस क्षेत्र में कुछ कमजोर नजर आ रही है । वहीं सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने पहला दांव खेलते हुए यहां आरएलडी अध्यक्ष जयंत चौधरी के साथ हाथ मिला लिया । वहीं अब मायावती भी इस क्षेत्र में सक्रिय हैं और जाट-मुस्लिम-दलित समीकरण पर काम कर रही हैं ।
मायावती की नजर में हैं अखिलेश की हर चाल
अखिलेश यादव ने जिस तरह से आरएलडी अध्यक्ष जयंत चौधरी के साथ हाथ मिलाकर पश्चिमी यूपी में जाट-मुस्लिम समीकरण को मजबूत करने का दांव चला है, वहीं, अखिलेश के इस जातीय कॉम्बिनेशन पर बसपा सुप्रीमो मायावती की तीखी नजर है ।
मायावती ने ली बैठक
बसपा प्रमुख मायावती ने मंगलवार को लखनऊ में बैठक ली, इसमें पार्टी के ओबीसी (अन्य पिछड़ा वर्ग), मुस्लिम और जाट समाज के मुख्य और मंडल सेक्टर स्तर के वरिष्ठ नेताओं की बैठक हुई। मायावती ने बैठक में अनुसूचित वर्ग के लिए आरक्षित
बीजेपी पर लगाए आरोप
मायावती ने समीक्षा बैठक में सत्ताधारी बीजेपी पर जमकर आरोप लगाए । बसपा प्रमुख ने कहा कि बीजेपी ने मुसलमानों के साथ अन्याय किया है, प्रदेश का मुस्लिम समाज दुखी है । मायावती ने कहा कि बीजेपी सरकार में ज्यादातर फर्जी मुकदमों में फंसाकर मुसलमानों का उत्पीड़न किया जा रहा है । वहीं जाट समाज के साथ सौतेले व्यवहार की बात भी कही । मायावती ने कहा- ‘मुसलमानों की तरह जाट समाज के साथ भी बीजेपी सरकार का सौतेला रवैया साफ नजर आता है । बसपा सरकार में मुस्लिमों को तरक्की के साथ साथ इनके जान माल की पूरी हिफाजत की गई है और जाट समाज की तरक्की का पूरा पूरा ध्यान रखा गया है।’
बसपा के लिए मुश्किल हैं राहें
गोरतलब है कि पश्चिमी यूपी में बसपा के कई मुस्लिम नेता मायावती का साथ छोड़कर सपा और आरएलडी में शामिल हो गए हैं । कुछ बड़े चेहरों की बात करें तो कादिर राणा, असलम अली चौधरी, शेख सुलेमान ये सपा में जा चुके हैं । वहीं पूर्व सांसद शाहिद सिद्दीकी, चौधरी मोहम्मद इस्लाम, मीरापुर से पूर्व विधायक मौलाना जमील और पूर्व विधायक अब्दुल वारिस राव आरएलडी में शामिल हो चुके हैं । इन भी मुस्लिम नेताओं के बसपा छोड़ने से पश्चिमी यूपी में पार्टी का सियासी समीकरण बिगड़ता नजर आ रहा है । यही वजह है कि पार्टी न सिर्फ मुस्लिमों को टिकट देने में प्राथमिकता दे रही है, बल्कि कई विधानसभा क्षेत्रों में मुस्लिम विधानसभा प्रभारी भी घोषित किए जा चुके हैं मायावती घोषणा कर चुकी हैं कि वो बिना किसी गठबंधन के चुनावी रण में जा रही हैं ।
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