New Delhi, Aug 09 : बेहद कम समय के अंतराल में, करूणानिधि और जयललिता, यानि पक्ष और विपक्ष, दोनों के जाने के बाद तमिलनाडु की राजनीति शून्य में सिमट गयी लगती है। शून्य इसलिए क्यूंकि हिंदी बेल्ट में आम आदमी उन तमिल नेताओं से परिचित नहीं है जिनके हाथों में अब सत्ता की लगाम है।
काले चश्मे वाले करूणानिधि और चेहरे पर ज़बरदस्त मेकअप ओढ़ने वाली चटक जयललिता किसी न किसी वजह से दिल्ली के अख़बार और चैनलों की हेडलाइंस में हमेशा जमे रहे।
बीजेपी और कांग्रेस के लिए भी मैदान अब थोड़ा साफ़ है।
सुब्रमण्यम स्वामी, टीएन शेषन, हेमा मालिनी या एआर रेहमान की तरह चेन्नई को अब हिंदी का विरोध छोड़कर आगे बढ़ना होगा वर्ना हैदराबाद, बंगलौर और कोच्ची जैसे शहर “मेट्रोपोल्टियन कल्चर” में उसे बहुत पीछे छोड़ देंगे।
फिलहाल एक बार फिर काले चश्मे वाले नेता के पर्याय और तमिल राजनीति के दिग्गज करूणानिधि को सलाम।
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