वायरल

NRC – विदेशी नेता और विदेशी वोटर से चलेगा भारत का प्रजातंत्र?

NRC – ममता को डर है कि अगर असम की तरह बंगाल में लिस्ट बनी और बाग्लादेशियों का नाम वोटर्स लिस्ट से हटा दिया गया तो वो चुनाव जीतना तो दूर जमानत भी नहीं बचा पाएगी।

New Delhi, Aug 06 : विपक्ष वैचारिक रूप से दरिद्र है ये तो सब पहले से जानते हैं. लेकिन, ये दरिद्रता इतने निम्न स्तर की है ये अब साफ साफ दिखने लगा है. NRC के मुद्दे पर विपक्ष की घृणित वोटबैंक राजनीति खुल कर सामने आ गई है. इनकी सत्ता की भूख ऐसी है कि इन्हें न तो देश की सुरक्षा की चिंता है. न भारत के नागरिकों की फिक्र है. विपक्ष का रुख साफ है – भले देश ही क्यों न टूट जाए लेकिन वो वोटबैंक की खातिर देश में गृह युद्ध कराने को तैयार है. असम और बंगाल का एक बड़ा हिस्सा मुस्लिम बहुल बन चुका है. अगर बांग्लादेशियों की पहचान नहीं की गई, उन्हें विदेशी धोषित नहीं किया गया तो आने वाले दिनों में ये विभाजन की मांग करने लग जाएंगे. ये देश के सामने एक बड़ा खतरा है लेकिन वोटबैंक की राजनीति करने वाली पार्टियों की आंखों पर पट्टी बंधी हैं.

इन खतरों से निपटने के बजाए, विपक्ष पार्टियों लगातार गृहयुद्ध की चेतावनी दे रही है. देश की जनता को ब्लैकमेल करने में जुटी है. इस्लामी कट्टरवादियों के नोट और कांग्रेस के वोट से जीतने वाला टुटपुंजिया जिग्ने श मेवाणी जैसे लोग भी गृहयुद्ध की धमकी दे चुके हैं. मुसलमानों को गुमराह करने वाले फर्जी सेकुलर नेता भी गृहयुद्ध की भविष्यावाणी करते रहे हैं. हैरानी की बात तो ये है कि अब पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने तो न सिर्फ ऐलान कर दिया बल्कि उसका समर्थन करती नजर आ रही हैं. ममता बनर्जी और राहुल गांधी की राजनीति मूर्खतापूर्ण है. मोदी को हराने और हटाने की सनक में ये हिंदुस्तान के विरोधी बन चुके हैं. ये तथाकथित सेकुलर पार्टियां बांग्लादेशी घुसपैठियों के वोट के चक्कर में आम भारतीय मुसलमानों की स्थिति खतरे में डाल रहे हैं. क्योंकि अगर असम और पश्चिम बंगाल में हिंसा भड़कती है तो इसकी लपट देश के हर इलाके में फैलेगी.

सवाल ये है कि ममता बनर्जी को सबसे ज्यादा क्यों चीख रही है? इसे समझने के लिए असम और बंगाल के राजनीतिक अंकगणित को समझना जरूरी है. असम में 40 लाख बांग्लादेशी मुस्लिम घुसपैठियों का मतलब ये है कि यहां के हर लोकसभा क्षेत्र में औसतन 2.85 लाख और हर विधानसभा सीट में 31 हजार वोटर्स विदेशी हैं. ये हार और जीत के औसतन फासले से कहीं ज्यादा हैं. तो इसका मतलब ये कि ये विदेशी घुसपैठिए की संख्या इतनी बढ़ चुकी है कि वो चुनाव नतीजे को जैसा चाहें वैसा बदल सकते हैं. मतलब ये कि असम की राजनीति इनके वोटों की मोहताज हो गई. इतना ही नहीं, एक मौलाना ने बांग्लादेशी मुसलमानों के लिए एक पार्टी बना दी – AIUDF. मौलाना की ये पार्टी पिछले विधानसभा में मुख्य विपक्षी पार्टी बन गई. फिलहाल इसके 3 सांसद भी हैं. AIUDF की बढ़ती ताकत के देख असम के हिंदुओं की आंखे खुली और बीजेपी, जो असम में न के बराबर थी, उसे बहुमत देकर जिता दिया. असम का असर त्रिपुरा पर भी हुआ. ममता का डर बस इतना है कि कहीं इसका असर बंगाल पर न पड़ जाए.

हकीकत ये है कि पश्चिम बंगाल की स्थिति असम से ज्यादा खतरनाक है. फर्क बस इतना है कि असम के लोगों ने बांग्लादेशी घुसपैठियों के खिलाफ आंदोलन किया जबकि पश्चिम बंगाल में घुसपैठियों को राज्य सरकार का समर्थन मिलता रहा. जब यहां लेफ्ट की सरकार थी. जब मुसलमान लेफ्ट पार्टी का वोटबैंक था तब यही ममता बनर्जी संसद में चीख चीख कर बांग्लादेशियों के खिलाफ आग उगलती थी. टीवी पर वो सीन दिखाया जा रहा है जिसमें ममता स्पीकर पर कागज फेंकते नजर आ रही है. वक्त बदला तो मुसमलान, जिन्हें पहले लेफ्ट पार्टियां ठगा करती थी, ममता से ठगे जाने का तय कर लिया. अब वो ममता को वोट देते हैं. इन्ही के दम पर ममता इतनी सीटें जीत रही है.

ममता को डर है कि अगर असम की तरह बंगाल में लिस्ट बनी और बाग्लादेशियों का नाम वोटर्स लिस्ट से हटा दिया गया तो वो चुनाव जीतना तो दूर जमानत भी नहीं बचा पाएगी. दरअसल, बंगाल में 40 लाख नहीं, बल्कि 1 करोड़ बाग्लादेशियों के छिपे रहने का अनुमान है. इस हिसाब से औसतन दो लाख हर लोकसभा क्षेत्र में और हर विधानसभा में औसतन 30 हजार बांग्लादेशी वोटर्स हैं. ये लोग हर चुनाव का रुख बदलने की ताकत आ चुकी है.
यूपीए की सरकार, कांग्रेस पार्टी, लेफ्ट पार्टी के गृह मंत्री इंद्रजीत गुप्ता के साथ साथ तमाम सरकारी रिपोर्ट्स और सुप्रीम कोर्ट के फैसले में एक बार नहीं, कई बार बांग्लादेशी घुसपैठियों को देश के लिए खतरा बता चुके हैं. राजीव गांधी के असम एकॉर्ड में भी बांग्लादेशियों के देश से बाहर निकालने की बात पर करार हो चुका है. बांग्लादेशियों के समर्थन में तो न तो अब कोई दलीलें बची है और न ही इसका खतरा कम हुआ है. हैरानी की बात ये है कि असम में राहुल और ममता की पार्टी के नेताओं ने भी बगावत कर दी है. फिर भी इन लोग नहीं समझ पा रहे हैं कि ये मुद्दा ऐसा है कि जिसका फायदा सिर्फ और सिर्फ बीजेपी को मिलने वाला है. विरोध और नौटंकी करके ममता और राहुल में बीजेपी के फायदे में इजाफा ही किया है.

टुकड़े टुकड़े गैंग का तर्क भी अजीबोगरीब है. पहला ये कि कई भारतीयों का नाम लिस्ट में है, इसलिए इस प्रक्रिया को रद्द कर दिया जाए. दरअसल, ये अपने वोटबैंक को खुश करने के लिए ऐसा कर रहे हैं. NRC की पूरी प्रक्रिया सुप्रीम कोर्ट की देखरेख में हुआ है. दूसरा ये कि 40 लाख लोग कहां जाएंगे? बांग्लादेश ने भी लेने से मना कर दिया है? अब इनको कौन समझाए कि उन्हें कहीं भेजने की जरूरत नहीं है. वो खुद ब खुद चले जाएंगे. इसके लिए लिस्ट फाइनल होने के बाद घुसपैठियों से वोटिंग का अधिकार छीनना, नौकरियों से हटाना, संपत्ति से उनका नाम हटाना (बेचने के लिए कुछ वक्त देने के बाद), स्कूल कॉलेज में दाखिला पर पाबंदी आदि जैसे कई उपाय है. ये लोग जिस रास्ते.. जिन एजेंटों के जरिए भारत आए थे उन्हीं के जरिए ये वापस अपने घर चले जाएंगे. वैसे भी ममता बनर्जी ने बंगाल की हालत ऐसी बना दी है कि लोगों के पास न तो रोजगार है और न ही विकास के कोई आसार दिख रहे हैं.

समस्या ये है कि तथाकथित सेकुलर गैंग के पास जब दलीलें खत्म हो जाती है तो अचानक से ये मानवाधिकार की दुहाई देने लगते हैं. अब ये लोग बांग्लादेशियों के मानवाधिकारों की बात शुरु कर दी है. ये भूल गए हैं कि मानवाधिकार आसमान से नहीं टपकता है. यह अधिकार संविधान द्वारा ही तय होता है. बांग्लादेशियों के मामले में भी इनकी दाल नहीं गलने वाली है. बाबा भीमराव रामजी अंबेदकर इन चोंचलेबाजों से कहीं ज्यादा होशियार थे, इसलिए उन्होंने मौलिक अधिकार वाले आर्टिकल 19 और 21 को काफी बारिकी से संविधान में शामिल किया था. आर्टिकल 19 के तहत हिंदुस्तान के किसी भी इलाके में जाना और वहां रोजगार या बसने का अधिकार सिर्फ और सिर्फ भारत के नागरिकों को है. किसी विदेशी या घुसपैठिये को ये अधिकार नहीं दिया गया है. लेकिन, वोटबैंक की खातिर विपक्ष बेशर्म हो कर संविधान की धज्जियां उड़ा रहा है. बांग्लादेशी मुसलमानों की वोट पर गिद्ध की तरह नोचने वाली ममता बनर्जी और कांग्रेस पार्टी की दलीलें संविधान के खिलाफ है.

2005 में ही सुप्रीम कोर्ट ने एक फैसले (Sarbananda Sonowal vs UOI) में कहा था कि ‘बांग्लादेशी घुसपैठियों की वजह से असम के कई जिले मुस्लिम बहुल बन रहे हैं. वो दिन दूर नहीं है जब ये लोग इस इलाके को बांग्लादेश में मिलाने की मांग करेंगे. दुनिया भर में तेजी से फैल रहे इस्लामी कट्टरवाद ऐसे मांग की प्रेरक-शक्ति बन जाएगी.’ ये सुप्रीम कोर्ट ने कहा है किसी बीजेपी के नेता ने नहीं. इसलिए, जिम्मेदार राजनीतिक दलों को संभल जाना चाहिए. वोटबैंक की राजनीति और झूठा-सेकुलरवाद को इस मामले से दूर ही रखने की जरूरत है. लेकिन इनसे उम्मीद नहीं रखनी चाहिए, क्योंकि ये लोग मोदी से धृणा में इतने अंधे हो चुके हैं ये किसी भी हद तक नीचे गिर सकते हैं. ये ऐसे मानसिक गुलाम हैं जो विदेशी नेता और विदेशी वोटर के जरिए देश में प्रजातंत्र चलाना चाहते हैं.

(वरिष्ठ पत्रकार मनीष कुमार के फेसबुक वॉल से साभार, ये लेखक के निजी विचार हैं)
IBNNews Network

Recent Posts

निवेशकों को मालामाल कर रहा ये शेयर, एक साल में 21 हजार फीसदी से ज्यादा रिटर्न

कैसर कॉरपोरेशन लिमिटेड के शेयर प्राइस पैटर्न के अनुसार अगर किसी निवेशक के इस शेयर…

2 years ago

500 एनकाउंटर, 192 करोड़ की संपत्ति जब्त, योगी कार्यकाल के 100 दिन के आंकड़ें चौंकाने वाले

दूसरे कार्यकाल में यूपी पुलिस ने माफिया को चिन्हित करने की संख्या भी बढा दी,…

2 years ago

गोवा में पति संग छुट्टियां मना रही IAS टॉपर टीना डाबी, एक-एक तस्वीर पर प्यार लूटा रहे लोग

प्रदीप गवांडे राजस्थान पुरातत्व विभाग में डायरेक्टर हैं, वहीं टीना डाबी राजस्थान सरकार में संयुक्त…

2 years ago

5 जुलाई, मंगलवार का राशिफल: धैर्य से काम लें मकर राशि के जातक, बनता काम बिगड़ जाएगा

आय के नए रास्‍ते खुल रहे हैं, अवसर का लाभ उठाएं ।मित्रों और सगे- सम्बंधियों…

2 years ago

बोल्ड ड्रेस में लेट गई आश्रम की बबीता, खूब पसंद की जा रही तस्वीरें

इस तस्वीर में त्रिधा चौधरी ब्रालेस तो है, ही साथ ही बोल्ड कपड़े पहने नजर…

2 years ago

मलाइका से भी दो कदम आगे निकली अर्जुन कपूर की बहन, कैमरे के सामने उतार दिया ‘जरुरी कपड़ा’

अंशुला के इस वीडियो में आप देख सकते हैं कि वो अपनी वन पीस ड्रेस…

2 years ago