New Delhi, Jul 05 : दिल्ली के अफ़सर फिर “हड़ताल” पर आमादा हैं। सुप्रीम कोर्ट ने कल अपने बड़े फ़ैसले में कहा कि सिर्फ़ ज़मीन, पुलिस और क़ानून-व्यवस्था केंद्र सरकार के ज़िम्मे है, बाक़ी ज़िम्मे दिल्ली सरकार के अधीन हैं। अफ़सर कहते हैं नहीं, हमारी माईबाप तो केंद्र सरकार है। किसी पुराने परिपत्र का हवाला निकाल लाए हैं।
क्या यह सरासर सर्वोच्च अदालत की अवज्ञा नहीं? पाँच जजों की संविधान पीठ का फ़ैसला पिछले हर आदेश-परिपत्र को ख़ारिज कर देता है, जो संविधान के अनुच्छेद 239-एए के छठे प्रावधान की अवहेलना करता हो। अनुच्छेद के अनुसार दिल्ली की सरकार (मंत्रिपरिषद्) जनता से चुन कर आई विधानसभा के प्रति उत्तरदायी होगी, उपराज्यपाल (एलजी) या उनकी पीठ पर सवार केंद्र सरकार नहीं। उलटे एलजी मंत्रिपरिषद् के फ़ैसलों को मानने के लिए बाध्य होंगे। इस प्रावधान की समुचित व्याख्या दो साल पहले हाईकोर्ट भले न कर सका, पर सर्वोच्च न्यायालय ने अब कर दी है।
आज सुबह इस मसले पर मैंने सुप्रीम कोर्ट से हाल में सेवानिवृत्त एक परिचित जज से बात की। उनका कहना था कि कल के आदेश को दूसरा कोई आदेश ढक नहीं सकता।
फिर तो यही उपाय है कि काम न करना चाहने वाले अफ़सर अपने तबादले आदि के आदेश लेकर पिछवाड़े से एलजी साहब की शरण में चले जाएँ। सरकार अपने फ़ैसले की इत्तला एलजी को देगी, एलजी उसे ‘असाधारण’ मुद्दा बनाकर राष्ट्रपति को भेज सकते हैं (रोज़-ब-रोज़ के फ़ैसलों की इत्तला बस पढ़कर रख छोड़नी होगी)।
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