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हम इमरान खान से उम्मीद क्यों ना करें ?

इमरान खान : एक ऐसा सेनापति जिसने खेल की दुनिया में अग्रिम रह कर देश का नेतृत्व किया, हम उससे राजनीति के मोर्चे पर भी ऐसी उम्मीद क्यों न करें ?

New Delhi, Jul 28 : बेशक इमरान खान पाकिस्तानी फौज की पसंद थे और यह भी सही है कि दहशतगर्दो के प्रति सहानुभूति के चलते उन पर तालिबानी खान का भी ठप्पा लगा हुआ है.
इसमे दो राय नही कि आम चुनाव में तहरीक-ए-इन्साफ पार्टी ( पीटीआई ) का यह कप्तान जो बहुमत के आँकड़े से कुछ दूर रहने के बावजूद पाकिस्तान का प्रधानमंत्री होने जा रहा है, राजनीति और कूटनीति के मामले में अनाड़ी है. लेकिन क्या इसीलिए हम यह मान कर चलें कि वह सत्ता के दाँव पेच में एकदम नाकाम रहेंगे ? नही कतई नहीं. दो दशकों के जबरदस्त राजनीतिक संघर्ष के पश्चात देश की बागडोर संभालने जा रहा यह पूर्व क्रिकेटर देश को सही नेतृत्व देने में यदि कामयाब होता हैं तो मुझे आश्चर्य नही होगा.

सच तो यह है कि मेरी किताब में बतौर क्रिकेट कप्तान इमरान नंबर एक पर हैं. रिची बेनो, सर फ्रैन्क वारेल, नवाब पटौदी, माइक ब्रियर्ली, रे इलिन्गवर्थ, क्लाइव लायड, एलन बार्डर, अर्जुन रणतुन्गा, रिकी पोन्टिग, हैन्सी क्रोनिए, सौरभ गांगुली और महेन्द्र सिंह धोनी भिन्न कारणों से महान कप्तानों की सूची में शुमार हैं . मगर इन सभी में सर्वोपरि मैं इमरान को ही मानता हूँ. मैं जानता हूँ कि कितने ही मेरी इस पसंद पर मुंह बिचकाऐगे. मगर अधिकांश इस पर सहमत होंगे कि इमरान की मैदान पर उपस्थिति मात्र से ही टीम जिस तरह चार्ज होती थी. वह कलासी दुनिया के किसी भी अन्य कप्तान में नहीं देखी गयी.
हो सकता है कि मेरा आकलन गलत साबित हो और इमरान बतौर प्रधानमंत्री अपेक्षाओं के साथ न्याय न कर सकें. लेकिन जिस तरह से उन्होंने अपने देश की बिखरी हुई राष्ट्रीय क्रिकेट टीम को, जिसके बारे में कहा जाता था कि टीम में ग्यारह कप्तान होते है, एकता के सूत्र में पिरोते हुए सफलता की बुलंदियो पर पहुँचाया वह बेमिसाल है. अपने विराट प्रभामंडल से उन्होने टीम में पहली बार राष्ट्रवाद की भावना का जिस तरह से संचार किया यह उनका कट्टर आलोचक भी स्वीकार करेगा. मुझे याद है कि शारजाह में जब उनको पता चला कि कुछ खिलाड़ी मैच फिक्स करने की फिराक में रहते हैं तो उन्होंने टीम के हर सदस्य से न केवल कुरान पर हाथ रख कर कसम खिलवाई बल्कि मैचों में देश की जीत पर सभी से सट्टा बजार में दाँव भी लगवाया.

देश के अम्पायरो पर जब पक्षपाती होने का आरोप लगा तब इमरान ने अपने बोर्ड पर दबाव डाल कर घरेलू टेस्ट सिरीज में तटस्थ अम्पायरो की नियुक्ति जैसे कदमों से आलोचकों की जुबान पर ताले भी लगा दिये थे.
एक ऐसा सेनापति जिसने खेल की दुनिया में अग्रिम रह कर देश का नेतृत्व किया, हम उससे राजनीति के मोर्चे पर भी ऐसी उम्मीद क्यों न करें.
अपनी पहली ही प्रेस वार्ता में इस पठान ने हिन्दुस्तान के साथ द्विपक्षीय संबंधों को लेकर जब यह कहा कि वे एक कदम बढ़ाए तो हम दो कदम बढाएगे, तब लगा कि वो संबंधों में सुधार के पक्षधर हैं.
हालाँकि उन्होंने कश्मीर में मानवाधिकार हनन की बात की मगर आतंकवाद पर वो चुप्पी साध गये. लेकिन हम यह भी न भूलें कि भारत इमरान के दूसरे घर जैसा रहा है और वह भारतीय समाज से जिस कदर घुले मिले है, उससे हमको कुछ सकारात्मक परिणाम की अपेक्षा रखनी चाहिए. भारतीय मीडिया ने उनको हमेशा सिर माथे पर बिठाया है. न जाने कितने कान्क्लेव में हम उन्हें शिरकत करते देखते रहे हैं.

इमरान भारतीय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की कार्यशैली के भी प्रशंसकों मे रहे हैं. वह मोदी की ईमानदारी के भी कायल हैं. खुद उन्होने भी उनकी राह पर चलने और सादगी अपनाने की बात कही है. जब वह कहते हैं कि बजाय प्रधानमंत्री के महल मे रहने के, एक छोटे धर में रहना पसंद करेंगे और एक नया पाकिस्तान बनाएँगे तो लगता नहीं कि वह दूसरे अरविंद केजरीवाल साबित होंगे.
ठीक है कि इमरान एक रंगीन मिजाज शख्स के रूप में देखे जाते हैं और मैने अपने पाकिस्तान भ्रमण के दौरान स्वयं ही उनकी रंगीन तबियत देखी है. एक औरतखोर के रूप में भी मैं उन्हें जानता हूँ और यह भी कि न जाने कितनी भारतीय अभिनेत्रियो के साथ उनके अफेयर रहे है. उनकी नशाखोरी के भी चटखारे लेकर किस्से सुनाए जाते रहे हैं .लेकिन क्या इससे हम यह मान लें कि वह एक नाकाबिल प्रधानमंत्री साबित होंगे ? इतिहास में भारत सहित न जाने ऐसे कितने उदाहरण है कि रंगीन मिजाज शख्सियत के स्वामियो ने अपने अपने देश को सफल और सबल नेतृत्व प्रदान किया है.
हम इस तथ्य से परिचित हैं कि ताकतवर फौज के साए में उनको काम करना है और भारत के साथ पाकिस्तान के दौत्य संबंधों में गिरावट भी आ सकती है. मगर हम जितना इमरान को जानते हैं उस हिसाब से हमें धैर्य के साथ प्रतीक्षा करनी चाहिए. कौन जानता है कि इमरान जन्मपत्री को ठोकर मार कर कुछ ऐसा कर गुजरे जो अभी तक अनपेक्षित रहा हो.

(चर्चित वरिष्ठ खेल पत्रकार पद्मपति शर्मा के फेसबुक वॉल से साभार, ये लेखक के निजी विचार हैं)
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