New Delhi, Jul 24 : अविश्वास प्रस्ताव की बहस को दो तरह से देखा जा सकता है. एक तो ये कि हम राहुल की झप्पी और आँख मारने को बहस के केंद्र में ले आयें और अपनी अपनी राजनीतिक समझ और पसंद के आधार पर राहुल की इन हरकतों और प्रधानमंत्री ने हाथ नचाकर, आँख मटका कर उनका जो जबाब दिया उसी की व्याख्या करते रहें. दूसरा तरीका ये है कि हम विपक्ष के आरोपों और प्रधानमंत्री के जबाब के अलोक में इस बहस की मीमांसा करें. अपन दूसरे वाले रस्ते पर चलेंगे. ये रास्ता इसलिए भी ज़रूरी है क्योंकि २०१९ सर पर है और अब संसद में ऐसी किसी और बहस की सम्भावना कम ही है.
राहुल के भाषण का एक छोटा सा टुकड़ा आजकल सोशल मीडिया पर खूब दिखाई दे रहा है. इसमें राहुल गाँधी पूरा ज़ोर लगाकर कह रहे हैं कि राफेल विमान के मुद्दे पर “ रक्षा मंत्री ने प्रधान मंत्री के कहने पर देश से झूठ बोला”…”The prime minister has not been truthful “… विपक्ष का एक नेता जब सदन के पटल पर प्रधानमंत्री और रक्षा मंत्री को स्पष्ट शब्दों में “झूठा” बोल रहा हो तो ये कोई मामूली बात नहीं है. “झूठा” शब्द अभी भी सदन की कार्यवाही में मौजूद है. इसे हटाया नहीं गया. न ही इस शब्द को हटाने की कोई मांग ही हुई. प्रधान मंत्री ने अपने जबाब में राफेल का ज़िक्र तो किया, अच्छे से किया लेकिन “झूठ” शब्द को लेकर राहुल की खिंचाई नहीं की. हज़ारों करोड़ के सौदे में रक्षामंत्री और प्रधानमंत्री को सदन के भीतर झूठा कह देने के इस मामले में विशेषाधिकार का मामला तो बनता ही था. लेकिन अभी तक तो सत्ता पक्ष ने ऐसा कोई नोटिस नहीं दिया है. मुझे लगता है कि राहुल ने जानबूझकर इतने कड़े शब्द इस्तेमाल किया. प्रधनमंत्री के कहने पर झूठ बोला ये कहने की जगह देश को गुमराह किया ये कहा जा सकता था. पर राहुल ने जानबूझकर कड़वी भाषा का इस्तेमाल किया. सरकार के पास मौका था कि वो राहुल को लपेट लेते. लेकिन ऐसा करके वो राफेल डील पर बहस का दरवाज़ा खोल देते जो वो नहीं चाहते थे.
राफेल कोई छोटा मामला नहीं है. जो विमान पिछली सरकार ५०० करोड़ में खरीद रही थी उसे अब १५२० करोड़ में खरीदा जा रहा है और सबसे बड़ी बात ये कि ये विमान भारत में विमान बनाने वाली सरकारी कंपनी हिंदुस्तान एरोनॉटिक्स में नहीं अम्बानी के उस कारखाने में असैम्बल होगा जो अभी तक बना ही नहीं है. हज़ारों करोड़ की डील है और अम्बानी जी का नाम भी इस डील में है, इसलिए जब भी इसका ज़िक्र होगा भृकुटियां तनेंगी. नए विमान में हज़ार करोड़ का ऐसा क्या लग गया जिसके बारे में देश को कुछ नहीं बताया जा सकता. हम जब मिसाइल बनाते हैं तो छत पर चढ़ कर चिल्लाते हैं कि ये मिसाइल पेशावर तक या शंघाई तक मार कर सकती है, तब गोपनीयता कहाँ चली जाती है – ये सवाल पूछा जाएगा. प्रधानमंत्री ने रक्षा सौदे में गोपनीयता और देश की सुरक्षा के नाम पर इस बहस से बचने का प्रयास किया जो शायद बहुत प्रभावशाली बचाव नहीं रहा. इससे पहले के ऐसे सौदों में समूचे देश को नहीं तो विपक्ष को तो विश्वास में लिया जाता रहा है.
अपन को लगता है कि राफेल का मुद्दा उठाकर और “ झूठा” जैसे कड़े शब्दों का इस्तेमाल करके राहुल ने राफेल डील को २०१९ के चुनावी मुद्दे का रूप देने की कोशिश की है.
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