New Delhi, Jul 20 : पहले नैन मटक्का और उसके बाद गलबहियां। पटने-पटाने का शास्त्रीय विधान यही है। राहुल गांधी भी पटाना चाहते हैं। विरोधियों से प्यार जताएंगे तो वोटर अपने आप पट जाएगा। ताज्जुब नहीं अगर उन्हे स्प्राइट वाले एड ने इंस्पायर किया हो।
लेकिन झप्पी उन्होने पहले डाल दी और आंखें बाद में मटकाई। व्यवहार का यह क्लासिक राहुल पैटर्न है, जिसमें वे करते तो सीधा हैं लेकिन सबकुछ अपने आप उल्टा हो जाता है। `जवाब के सवाल’ की तरह।
झप्पी मोदीजी के गले में डाली थी। आंख भी उन्हे ही मार देते तो क्या बिगड़ जाता?
सच बताउं तो आंख मारते राहुल गांधी मुझे बहुत क्यूट लगे। एक आंख बंद और दूसरे गाल पर पड़ता डिंपल। लेकिन भारतीय वोटर राजनेताओं को चालूपने के प्रतिमानों पर कसता है।
राहुल की एक कनखी ने राफेल को लेकर लगाये गये आक्रमक और बेहद गंभीर आरोप को नेपथ्य में धकेल दिया। झप्पी और कनखी अब नेशनल डिबेट के यही दो मुद्धे होंगे। राहुल ने तमाशा करके जो मीडिया अटेंशन लूटा है, वह मोदीजी के लिए राफेल पर लगे इल्जाम से कहीं ज्यादा अखरने वाली चीज़ है।
मोदीजी सबकुछ बर्दाश्त कर सकते हैं लेकिन उनके होते महफिल कोई और लूटे यह मुमकिन नहीं है। इसलिए करारा जवाब मिलेगा। राफेल डील पर मिले या ना मिले महफिल लूटने की गुस्ताख अदा पर ज़रूर मिलेगा।
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