New Delhi, Jul 23 : राहुल गांधी के भाषण के दौरान लगातार सत्तापक्ष शोर मचाता रहा. कहीं से आवाज़ आयी कि अपनी दादी को याद करो. राहुल ने सुना भी, चेहरे के भावों से लगा कि ज़रा ठिठके भी लेकिन भाषण देते रहे.
बचपन में जब मैं राजनीति नहीं समझती थी, मुझे चुनावी जीत-हार के बारे में कुछ नहीं पता था तब हरियाणा के किसी शहर में दीवारें एक पोस्टर से अटी पड़ी थी. किसी राजनीतिक दल ने लिखा था – सोनिया, इटली वापस जाओ.
और सालों बाद भी सोनिया गांधी को इटली की ही कहा जाता है. चाहे राजनीति के लिए ही सही, अपना परिधान, अपनी भाषा, अपना रहन-सहन तक वो पूरा बदल चुकीं लेकिन फिर भी इन भारतीय नेताओं के पास बस एक ही बात है कहने के लिए.
राहुल गांधी ने जब 2013 में एक भाषण के दौरान अपनी दादी और पिता को याद किया था और कहा था कि ‘वो कभी उन्हें मारने वालों से नफ़रत करते थे, लेकिन उस नफ़रत को पीछे छोड़ा है और मुज़फ़्फ़रनगर में इस नफ़रत ने ही पड़ोसी को पड़ोसी का दुश्मन बना दिया.’
कल पहले तो नरेंद्र मोदी और सत्तापक्ष राहुल गांधी पर हँसते रहे और मोदी ने अपने भाषण में फिर से बच्चों की तरह उन्हें ज़लील करना चाहा. ऐसा करके उन्होंने क्या संदेश दिया जनता को?
अपनी कुंठा दिखाई या बचपना दिखाया? हर वक़्त और हर मंच से गांधी परिवार पर निजी टिप्पणी करना और कहाँ तक घसीटेंगे?
…और भारतीय लोग राजनीति को शायद ना समझते हों लेकिन बड़प्पन को ज़रूर समझते हैं.
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