New Delhi, Sep 27 : अयोध्या राम मंदिर-बाबरी मस्जिद विवाद से जुड़े एक मामले में सर्वोच्च न्यायालय के तीन जजों की बेंच में से चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा और जस्टिस अशोक भूषण ने संयुक्त फैसला सुनाते हुए कहा कि पुराना फैसला उस समय के तथ्यों के अनुसार था, इस्माइल फारुकी का फैसला मस्जिद की जमीन के मामले में था, जस्टिस भूषण ने कहा कि फैसले में दो राय एक तो मेरी और चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा की और दूसरी जस्टिस नजीर की।
जस्टिस भूषण ने कहा कि मस्जिद में नमाज पढना इस्लाम का अटूट हिस्सा नहीं है, पूरे मामले को बड़ी बेंच को नहीं भेजा जाएगा।
मुस्लिम पक्षों ने दायर की थी अर्जी
आपको बता दें कि कोर्ट को ये फैसला करना था कि मस्जिद में नमाज पढना इस्लाम का अनिवार्य हिस्सा है या नहीं,
1994 के फैसले में दी गई थी ये व्यवस्था
सुप्रीम कोर्ट की 5 जजों की संविधान पीठ ने साल 1994 में अयोध्या में भूमि अधिग्रहन को चुनौती देने वाले डॉ. एम इस्माइल फारुकी के मामले में 3-2 के बहुमत से फैसला सुनाया था कि
क्या है पूरा मामला ?
राम जन्मभूमि पर भव्य मंदिर के लिये होने वाले आंदोलन के दौरान 6 दिसंबर 1992 को अयोध्या में बाबरी मस्जिद को गिरा दिया गया खा, इस मामले में आपराधिक केस के साथ-साथ दीवानी मुकदमा भी चला, मामला सुप्रीम कोर्ट में लंबित है,
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