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राम मंदिर पर सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला, अगले महीने शुरु होगी केस की सुनवाई

सुप्रीम कोर्ट को ये फैसला करना था कि मस्जिद में नमाज पढना इस्लाम का अनिवार्य हिस्सा है या नहीं, क्या इस मसले को बड़ी संवैधानिक बेंच को भेजा जाए या नहीं।

New Delhi, Sep 27 : अयोध्या राम मंदिर-बाबरी मस्जिद विवाद से जुड़े एक मामले में सर्वोच्च न्यायालय के तीन जजों की बेंच में से चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा और जस्टिस अशोक भूषण ने संयुक्त फैसला सुनाते हुए कहा कि पुराना फैसला उस समय के तथ्यों के अनुसार था, इस्माइल फारुकी का फैसला मस्जिद की जमीन के मामले में था, जस्टिस भूषण ने कहा कि फैसले में दो राय एक तो मेरी और चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा की और दूसरी जस्टिस नजीर की।

जस्टिस भूषण ने कहा कि मस्जिद में नमाज पढना इस्लाम का अटूट हिस्सा नहीं है, पूरे मामले को बड़ी बेंच को नहीं भेजा जाएगा। साथ ही जस्टिस ने ये भी कहा कि इस्माइल फारुकी के फैसले पर दोबारा विचार करने की जरुरत नहीं है। सुप्रीम कोर्ट ने इस मसले पर कहा कि 29 अक्टूबर से राम मंदिर मामले पर सुनवाई शुरु होगी। वहीं बाद में अपना फैसला सुनाते हुए जस्टिस अब्दुल नजीर ने मामले में कहा कि मामला बड़ी बेंच को भेजा जाना चाहिये, मस्जिद में नमाज पर दोबारा विचार की आवश्यकता है। पुराने फैसले में सभी तथ्यों पर विचार किया गया था।

मुस्लिम पक्षों ने दायर की थी अर्जी
आपको बता दें कि कोर्ट को ये फैसला करना था कि मस्जिद में नमाज पढना इस्लाम का अनिवार्य हिस्सा है या नहीं, क्या इस मसले को बड़ी संवैधानिक बेंच को भेजा जाए या नहीं। राम जन्मभूमि मामले में साल 1994 के इस्माइल फारुकी के फैसले पर पुर्नविचार के लिये मामले को संविधान पीठ भेजने की मांग वाली मुस्लिम पक्षों की अर्जी पर सुप्रीम कोर्ट को फैसला सुनाना था।

1994 के फैसले में दी गई थी ये व्यवस्था
सुप्रीम कोर्ट की 5 जजों की संविधान पीठ ने साल 1994 में अयोध्या में भूमि अधिग्रहन को चुनौती देने वाले डॉ. एम इस्माइल फारुकी के मामले में 3-2 के बहुमत से फैसला सुनाया था कि नमाज के लिये मस्जिद इस्लाम धर्म का अभिन्न हिस्सा नहीं है, मुसलमान को कहीं भी नमाज अदा कर सकते हैं, यहां तक की वो खुली सड़क पर भी नमाज पढ सकते हैं, मुस्लिम पक्षकार एम सिद्दीकी के वकील राजीव धवन ने बीते 5 दिसंबर को इस फैसले के खिलाफ सवाल उठाते हुए पुर्नविचार के लिये संविधान पीठ को भेजे जाने की मांग की थी।

क्या है पूरा मामला ?
राम जन्मभूमि पर भव्य मंदिर के लिये होने वाले आंदोलन के दौरान 6 दिसंबर 1992 को अयोध्या में बाबरी मस्जिद को गिरा दिया गया खा, इस मामले में आपराधिक केस के साथ-साथ दीवानी मुकदमा भी चला, मामला सुप्रीम कोर्ट में लंबित है, इलाहाबाद हाईकोर्ट ने 30 सितंबर 2010 को अयोध्या मामले में फैसला सुनाया था, जिसमें कहा गया था कि विवादित जमीन को 3 बराबर हिस्सो में बांट दिया जाए, जिस स्थान पर रामलला की मूर्ति हैं, वहां रामलला को विराजमान किया जाए। सीता रसोई और राम चबूतरा निर्मोही अखाड़े को दिया जाए, जबकि बाकी का एक तिहाई जमीन सुन्नी वक्फ बोर्ड को दिया जाए।

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