New Delhi, Sep 26 : सुप्रीम कोर्ट ने कल संसद से ऐसा कानून बनाने को कहा है ताकि राजनीति में अपराधियों के प्रवेश को रोका जा सके। इतना ही नहीं, अदालत ने राजनीति के अपराधीकरण को कैंसर की भी संज्ञा दी है। सुप्रीम कोर्ट ने वही कहा है कि जैसी उम्मीद इस देश की शांतिप्रिय जनता उससे करती है। पर, संकेत बताते हैं कि इस देश की संसद यानी राजनीतिक पार्टियां कत्तई यह काम करने वाली हैं नहीं।
यदि यही करना होता तो संसद ‘झारखंड मुक्ति मोर्चा सांसद रिश्वत कांड’ के बाद आए सुप्रीम कोर्ट के निर्णय के आलेाक में संविधान में जरूरी संशोधन अब तक कर देती। यही करना होता तो 2002 में संसद यानी अधिकतर राजनीतिक दल चुनाव आयोग के उस खास निदेश का नख-शिख विरोध नहीं करते। उसके तहत उम्मीदवारों को अपना आपराधिक रिकाॅर्ड, संपत्ति का विवरण व शैक्षणिक योग्यता बताने को कहा गया था। उस संबंध में यदि सुप्रीम कोर्ट ने तब कड़ा रुख नहीं अपनाया होता तो वे विवरण जो आम लोगों को आज मिल रहे हैं, वे भी नहीं मिलते। याद रहे कि नर सिंह राव की अल्पमत सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लोक सभा में आया था।
अल्पमत को बहुमत में बदलने के लिए तब की सरकार ने झारखंड मुक्ति मोर्चा के सांसदों को भारी रिश्वत दी थी। उन संसद सदस्यांे के बैंक खातों में वे रुपए पाए भी गए। इसके बावजूद सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हम रिश्वत लेकर सदन में वोट देने वालों के खिलाफ कुछ नहीं कर सकते क्योंकि संविधान के अनुच्छेद-105@2@ने हमारे हाथ बांध दिए हैं। हां, जिस सांसद ने घूस लेकर भी सदन में वोट नहीं किया, वह कानून के दायरे में जरूर आ सकता है। अब देखिए उस अनुच्छेद में क्या है– भारतीय संविधान के अनुच्छेद-105@2@मंे प्रावधान है कि
‘संसद में या उसकी किसी समिति में संसद के किसी सदस्य द्वारा कही गई किसी बात या दिए गए किसी मत के संबंध में उसके विरूद्व किसी न्यायालय में कोई कार्यवाही नहीं की जाएगी और किसी व्यक्ति के विरूद्व संसद के किसी सदन के प्राधिकार द्वारा या उसके अधीन किसी प्रतिवेदन, पत्र, मतों या कार्यवाहियों के प्रकाशन के संबंध में इस प्रकार की कोई कार्यवाही नहीं की जाएगी।’
यदि राजनीतिक दल इस देश के व्यापक हित में सोचते होते तो संसद इस अजीबो गरीब प्रावधान को अपनी पहली बैठक में ही खत्म कर देती। इस प्रावधान के तहत घूस लेकर वोट देने वाले सांसदों को तो कुछ नहीं होगा,पर जिसने पैसे लेकर सदन में वोट नहीं दिया उसके खिलाफ कानूनी कार्रवाई हो सकती है। इसलिए भले सुप्रीम कोर्ट ने कल अपना निदेश दे दिया,पर वह इस पीढ़ी के नेताओं से ऐसी उम्मीद कत्तई नहीं करे। शायद अगली पीढि़यां तब कुछ करंे जब स्थिति पूरी तरह बिगड़ जाएगी और जनता खुद उठ खड़ी होगी। आज के अधिकतर नौजवान तो अभी स्मार्ट फोन में व्यस्त हंै।उस किसी संभावित विद्रोह से शायद कोई सही नेता पैदा हो। आज के तो अधिकतर नेता व दल देश के व्यापक कल्याण के बदले अपना अगला चुनाव देखते रहते हैं। हमारे अधिकतर नेता आपराधिक पृष्ठभूमि के माफिया टाइप के उन नेताओं से भी डरते हैं जो आम तौर पर सरकारी संरक्षण व खुद उन्हीं नेताओं के आशीर्वाद से ही टिके हुए हैं और आम लोगों के सुख-चैन समय -समय पर छीनते रहते हैं।
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