New Delhi, Dec 12 : देश के लिये खेलना किसी भी स्पोर्ट्समैन का सपना होता है, इसके साथ ही अगर कप्तानी करने का मौका मिल जाए, तो फिर बात ही क्या, ऐसा ही कुछ दिल्ली के जनकपुरी के रहने वाली यश ढुल के साथ हुआ है, वो यूएई में होने वाले अंडर-19 एशिया कप में भारत की कप्तानी करेंगे, वो विराट कोहली के नक्शेकदम पर चलने जा रहे हैं, विराट भी अंडर-19 टीम इंडिया की कप्तानी कर चुके हैं, उनकी अगुवाई में भारत ने 2008 में अंडर-19 विश्वकप जीता था, अब यश से भी यही उम्मीदें होगी।
मिडिल ऑर्डर बल्लेबाज
अंडर-19 एशिया कप के लिये टीम इंडिया की कप्तानी मिलने के बाद यश ढुल ने टाइम्स ऑफ इंडिया से बातचीत की, जिसमें उनके क्रिकेटर बनने की कहानी और परिवार का त्याग सामने आया है।
पिता ने छोड़ी नौकरी
बेटे के टीम इंडिया के कप्तान बनने से पिता विजय भी काफी खुश हैं, उन्हें पिछले सारे संघर्ष याद आ रहे हैं कि कैसे बेटे को क्रिकेटर बनाने के लिये उन्होने अपनी नौकरी तक छोड़ दी थी, वो फिलहाल एक कॉस्मेटिक ब्रांड के लिये बतौर एग्जीक्यूटिव काम कर रहे हैं।
दादा के पेंशन से चला घर
यश के पिता ने बताया कि मुझे ये सुनिश्चित करना था कि उन्हें कम उम्र में ही खेलने के लिये सबसे अच्छी किट मिले। मैंने उन्हें सबसे अच्छे बैट दिये, यश के पास सिर्फ एक बल्ला नहीं था, मैं लगातार बैट अपग्रेड करता रहा, हमने अपने खर्चों में कटौती की, मेरे पिता एक फौजी थे, रिटायरमेंट के बाद उन्हें मिलने वाली पेंशन से घर का खर्चा चलता था, यश को हमेशा लगता था कि हम कैसे उसके लिये ये सब कर रहे हैं। पिता को आज भी याद है, पहली बार यश में किसे क्रिकेटर बनने के गुण नजर आये थे, उन्होने बताया कि पत्नी ने पहली बार 4 साल के यश को गेंद की समझ और क्रिकेट में रुचि देखी, उन्होने मुझे और मेरे पिताजी को ये बात बताई, इसके बाद परिवार को ये एहसास हुआ कि यश को क्रिकेटर बनाया जा सकता है, फिर घर के छत से शुरुआत हुई।
खुद कराते थे प्रैक्टिस
खुद पिता घंटों छत पर यश को बल्लेबाजी की प्रैक्टिस कराते थे, 11 साल की उम्र में बाल भवन स्कूल की एकेडमी में जाने से पहले उन्हें भारती कॉलेज में एक लोकल क्रिकेट एकेडमी में ले जाया गया, 12 साल की उम्र में यश ने अंडर-14 में दिल्ली टीम का प्रतिनिधित्व किया था, तब परिवार को एहसास हुआ, कि वो सही रास्ते पर है,
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